Wednesday, December 28, 2022

शौर्य गाथा : Pure Love


 भाईसाहब अपने मामा के यहां गए हैं और पापा को एक दिन में ही उनकी याद सताने लगी है. पापा उन्हें वीडियो कॉल करते हैं, वो खेल में मग्न हैं. उन्हें दोस्त मिल गए हैं, ममेरे भाई बहन के साथ ढेरों खेल खेल रहे हैं. वे अपने खिलौने दिखाते हैं, भाई बहन से मिलवाते हैं पापा ये... पापा ये... कह कर वीडियो कॉल पर बता रहे हैं. पापा उन्हें देखते हैं और फोन रख देते हैं.


पापा ने उनके पुराने वीडियो देखना शुरू कर दिए हैं और देखकर लग रहा है कि क्या सच ये बच्चा इतना छोटा भी था! शायद एक साल बाद आज के शौर्य के फोटो वीडियो देखकर यही लगे. बच्चे पंख लगाकर उड़ते हैं, तीव्रता से बड़े होते हैं... इतनी जल्दी की हम बस पलक झपकाते हैं और वो बढ़ जाते हैं.

मुझसे किसी ने कहा था कि जब आपकी संतान अपको प्यार करेगी तब आपको Pure Love के मायने पता चलेंगे. हालांकि उस उम्र में मैंने ये नहीं समझा था लेकिन अब पैरंटहुड के फेज में हूं तो वो बात अक्षरश सही लगती है। महज शौर्य 'पापा... पापा...' दिनभर चिल्लाते रहते हैं, पापा के बिना सोते नहीं हैं, जागते ही पापा चाहिए, पापा ऑफिस से आए नहीं को खुश होकर उनके पांव से लिपट 'पापा आ दए... आ दए...' कह कर खुश होना, दौड़ना.... सब, सब प्रेम के मायने सिखाने काफी है।

एक बार मैं निधि से पूछता हूं ' You know, what is love?' वो मुस्कुराकर गोद में बैठे शौर्य की ओर इशारा करती है ' ये... ये...' शौर्य भी अपनी तरफ उंगली कर खुश हो जोर जोर चिल्ला रहे हैं ' मम्मा ये... ये... '

#शौर्य_गाथा

Wednesday, December 21, 2022

शौर्य गाथा : Papa's Notes 1

 तुम्हारे हथेलियों में समा जाने वाले छोटे छोटे हाथ. ऑफिस से लौट आते ही पापा पापा कह चिपक जाना. हर एक चीज के लिए पापा को बुलाना. तुम ना होते तो जीवन में इतना खुश न होता. ये Phase जिंदगी का कभी जी ही नहीं पाता. तुमने यूं आकर जीवन को खूबसूरत बना दिया है कि सोच ही नहीं पाता हूं कि पहले जब तुम नहीं थे तो उस वक्त हम जी कैसे रहे थे! 


तुम्हारे रोने में अंदर से खुद रोने लगता हूं, तुम्हारे हंसने में सबकुछ हंसता सा लगता है. 


तुम्हारी जितनी उम्र के जितना ही बड़ा पिता हूं मैं. तुमने मुझे सिखाया है समझदार होना, थोड़ा सा ज्यादा Kind होना, थोड़े अपनी खुद की केयर अधिक करने लगा हूं, थोड़ा ज्यादा सा जीने लगा हूं.


Child is Father of Man (William Wordsworth) के मायने धीमे धीमे समझ आने लगे हैं। थोड़ा थोड़ा तुमसा होना चाहता हूं. तुम्हारे जितना ही मासूम... बिल्कुल 21 महीने के तुम्हारे जितना मासूम होना चाहता हूं.


#शौर्य_गाथा #पापाकेनोट्स Papa's Notes

Saturday, December 17, 2022

Avatar and Beyond...

 


अवतार पूरी ट्रिब्यूट लगी थी अमेरिका एशिया अफ्रीका के लिए, जब पहली बार 2009 में देखा था. उस वक्त कोलोनियल हिस्ट्री की इतनी समझ नहीं थी. लेकिन जो थी, जितना समझता था वह मेरे दृश्य पटल पर उग आ रहा था. 

 नॉर्थ अमेरिका... मरते नेटिव रेड इंडियंस, बढ़ती यूरोपियन कॉलोनीज, खनिज, अयस्कों का दोहन, वनों की सफाई... वाइल्डलाइफ का धीमा खात्मा...

अफ्रीका... गोल्ड कोस्ट (Gold Coast), आइवरी कोस्ट (Ivory Coast) , स्लेव कोस्ट (Slave Coast), ग्रेन कोस्ट (Grain Coast)... साउथ अफ्रीका... 20% गोरों के पास 80% भूमि... 80% संसाधन (Resources)...

इंडिया...लूट खसोट, मार-काट... 1857 विद्रोह... बहादुर शाह जफर के बेटों के थाली में परोसे गए सिर... निर्माण हत्याएं... तीर कमान लिए लड़ते, ब्रिटिश गोलियों से भूने जाते हजारों संथाल... मात्र 17 साल के लड़के खुदीराम बोस का फांसी पर झूलता मृत शरीर... और जाने क्या-क्या...

अवतार में पंडोरा ग्रह वासियों का जो प्रकृति से कनेक्शन था वह मुझे अफ्रीका के ट्राइब्स का... भारतीय संस्कृति का, नेटिव इंडियंस का प्रकृति के अत्यधिक करीब होना याद दिला रहा था...

अवतार एक बहुत बड़े कैनवास पर बनाई गई कोई पेंटिंग सी है. जो नीले रंग में कोलोनियल हिस्ट्री में झेली यातनाओं के सुर्ख लाल रंग को बखूबी प्रदर्शित करती है.

अवतार-2 (Avatar: The Way of Water) उस कैनवास का एक्सपेंशन बस लगती है. इसलिए जब मेरे साथ फिल्म देखने गई मेरी सासू मां कहती हैं कि 'मुझे ज्यादा समझ नहीं आ रही है' तो मैं बस कहता हूं कि :जो नीली आकृतियां हैं उन्हें भारतीय मान लीजिए और जो इंसानी आकृतियां हैं उन्हें ब्रिटिश राज... अपको समझ आने लगेगा.'

 मैं कटनी में हूं. फिल्म देख कर बाहर निकलते लॉर्ड स्लीमन आंखों के सामने दिखने लगता है. लाशें... पेड़ के दोनों ओर लटकी ठगी बंजारे पिंडारियों की कई सौ लाशें... कटनी का मुड़वारा स्टेशन आंखों के सामने घूमने लगता है... 1857 के विद्रोहियों के इतने नरमुंड पेड़ों पर लटके पड़े हैं कि इस जगह का नाम ही मुड़वारा पड़ गया है! विजयराघौगढ़ किले में धंसी गोलियां... लाशों से बना टीला... राजा सरजू प्रसाद सिंह का मृत शरीर... सब आंखों के सामने घूम गया है.

अवतार, अवतार-2 बस ग्राफिक्स, विजुअल्स के लिए ही नहीं देखी जानी चाहिए. ये फिल्में डॉक्यूमेंटेशन है मनुष्यता के साथ किए गए अपराध का, मानव के लालच का, दासप्रथा का, जुल्मों का और उससे अधिक उठ खड़े होने वाले उन चंद लोगों का जो जुर्म के खिलाफ खड़े हुए लड़े भिड़े और अनजान मौत ही मर गए.

Friday, December 16, 2022

शौर्य गाथा : Replies


 भाईसाहब ने पहला प्रयुत्तर (Reply) दिवाली के समय अक्टूबर में दिया था. जब इनसे पूछा गया कि खाना कैसा लग रहा है, भाईसाहब ने अप्रत्याशित रूप से कहा 'अच्छा'. हम सब दादा-दादी, पापा-मम्मा, चाचा-चाची, छोटू चाचू बहुत हंसे. अब भाईसाहब दो महीने बाद कुल इक्कीस महीने के हो गए हैं और हाथों में नहीं आते हैं. बोलना तो इतना लगे हैं कि हर प्रश्न का जवाब इनके पास होता है. मसलन पूछो 'क्या खाओगे?' जवाब आएगा 'दूद बिस्सिट' (दूध बिस्किट). 'क्या ये गेम खेलेंगे?' 'नहीं.. पापा नहीं...' और जाने क्या क्या... 

एक बार तो हद हो गई. भाईसाहब पापा मम्मा के साथ मार्केट गए थे. लौट कर आए और मम्मा से बोले 'की..स.., की..स..' (Keys) मतलब इन्हें घर की चाबियां चाहिए. मम्मा ने चाबी दे दी है, अब भाईसाहब दरवाज़े पर जाते हैं, Keyhole इनकी रीच में है ये कोशिश कर रहे हैं खोलने की. पापा मम्मा बेचारे बैग्स हाथ में लिए ठंड में बाहर खड़े हैं. पापा थोड़ा इरिटेट होकर बोलते हैं 'अरे यार शौर्य ऐसा नहीं करो.' लंबा वाक्य था, हम सोच रहे थे कि प्रत्युत्तर में भाईसाहब वही का वही वाक्य दोहरा देंगे लेकिन भाईसाहब का जवाब होता है 'आले याल पापा.. ए..छा.. नई कलो' हम लोगों का हंस-हंस कर बुरा हाल है और भाईसाहब वही दरवाजा खोलने में तल्लीन हैं.

#शौर्य_गाथा

Thursday, December 8, 2022

शौर्य गाथा : Parents' Struggle 2


 सुबह के नौ बज रहे हैं पापा मां ऑफिस के लिए तैयार हो रहे हैं. ब्रेकफास्ट में परांठे और दही है. पापा-मम्मा खाना शुरू करते हैं, अभी-अभी जागे भाईसाहब पूरे घर के एक-दो राउंड लगाने के बाद पास आते हैं. बोलते हैं 'ये चा.. इये...' पापा उन्हें उठाकर उनकी चेयर पर बिठा देते हैं. भाईसाहब की थाली लगाते हैं, परांठे का टुकड़ा मुंह में डालते हैं. भाईसाहब कौर उगल देते हैं. कहते हैं 'नइ पापा..नइ..' मतलब उन्हें ये नहीं खाना है. अब भाईसाहब के हाथ में चम्मच है और भाईसाहब शुरू हो गए हैं. टारगेट सिर्फ दही है. दही इनका फेवरेट है. आधा दही मुंह में, आधा कपड़ों पर है. बिलकुल कान्हा लग रहे हैं. पापा बोलते हैं 'बिल्कुल कन्हैया कुमार लग रहे हो.' मम्मा पापा को टोकती है 'नो पोलिटिकल टॉक एट होम.' पापा को एहसास होता है कि गलती से उन्होंने राजनेता का नाम ले दिया है पापा गलती सुधारते हैं 'बेटा बिल्कुल माखनचोर लग रहे हैं. ठीक है शौर्य?' :D भाईसाहब बोलते हैं 'ती..क... है'

छोटे से कान्हा कि हरकतें देख देख ख़ुशी तो बहुत हुई है लेकिन समय इतना हो गया है कि पापा-मम्मा बेचारे तेज़ी से तैयार हुए हैं, जल्दी जल्दी भाईसाहब को नहलाया गया है और बेचारे पापा बिना नहाये ही ऑफिस निकल गए हैं. गीज़र चालू छूट गया है, जिसके लिए शाम में बेचारी मम्मा को नानी की डांट पड़ती है.

#शौर्य_गाथा

शौर्य गाथा : Parents' Struggle


 रात के साढ़े ग्यारह बज रहे हैं, मां पापा दोनों को नींद आ रही है और भाईसाहब अभी भी एक्टिव हैं. सीलिंग फैन की और इशारा कर बोलते हैं, 'पापा, वो?' पापा उन्हें बताते हैं कि 'ये फैन है, गर्मी में काम आता है.' अब वो दूसरे फैन की और इशारा करते हैं 'पापा. वो?' पापा फिर वही जवाब दोहराते हैं. अब ये अपने छोटे-छोटे पांव से बेड से नीचे उतर ठन्डे फ्लोर पर आ गए हैं. पापा उन्हें मोज़े पहनने के लिए कहते हैं वो जवाब देते हैं, 'नहीं पापा, नहीं.' पापा उन्हें पकड़ कर फिर से बेड पे रखते हैं, भाईसाहब फिर से पूरी ताकत लगाकर अपने को पापा से छुड़ा लेते हैं और फिर से वही काम शुरू. 

बेचारे पापा-मम्मा को डर है कि इन्हें सर्दी न हो जाये. भाईसाहब को बेड पे चढ़ाने की वही कोशिश मम्मा भी दो बार करती हैं और मामला सिफर रहता है. इन्होंने आईने में खुद को देखना शुरू कर दिया है. खुद को देखकर कहते हैं 'पापा, वो?' पापा जवाब देते हैं कि 'ये आप हैं.' भाईसाहब अपनी छोटी सी उंगली मुंह पर रखकर बोलते हैं 'अच्छा...'

पापा दूध गर्मकर लाते हैं, मम्मा बार-बार मोज़े पहनाती है. भाईसाहब न दूध पीते हैं, न मोज़े ही पहनते हैं. 

अंत में थककर मम्मा रूम की लाइट बंद कर देती है और बोलती है 'लाइट गई शौर्य.' भाईसाहब अँधेरे में ही बोलते हैं 'पापा लाइ.. त... गई... लाइ.. त...'

पापा उन्हें उठाते हैं, रजाई में छिपाते हैं और कहते हैं 'बेटा, अँधेरा हो गया है अब सो जाओ.' भाईसाहब 'ओते पापा' कहते हैं.

पापा घडी देखते हैं. भाईसाहब को सुलाते सुलाते डेढ़ बज गया है. मम्मा बेचारी इम्पोर्टेन्ट फाइल पढ़ सुबह चार बजे सोती है.

#शौर्य_गाथा 

Monday, December 5, 2022

शौर्य गाथा : mountaineer Shaurya

 


भाईसाहब माउंटेनियर हैं. बड़े होकर एडमंड हिलेरी या मध्यप्रदेश गौरव मेघा परमार बनेंगे. चाचू जब भी आते हैं उनके साथ क्लाइंबिंग शुरू कर देते हैं. चाचू के पैर-पिट्ट पर से चढ़ कंधे तक जायेंगे और बस फैन, हैंगिंग लैंप आदि छूने की कोशिश करेंगे.

थो.. तू.. तातु.. तलो..' (छोटू चाचू... चलो) और शुरू हो जाते हैं. बिचारे चाचा थक जाएं लेकिन भाईसाहब का एनर्जी लेवल कम नहीं होता है.

 चाचू के बचपन से भाईसाहब की हरकतें इतनी मिलती- जुलती लगती हैं कि कोई भी कह सकता है कि ये चाचू के पक्के वाले भतीजे हैं.

#शौर्य_गाथा

Friday, December 2, 2022

भोपालनामा 11

         'यूनियन कार्बाइड' से तबाह और उससे ज्यादा खूबसूरती से आबाद हुए भोपाल से ज्यादा खूबसूरत जगह मिले तो बताना.

                         भोपाल तुम शहर नहीं, कुछ मरे और कुछ जिंदा लम्हों की निशानी हो, जिन्हें याद करके मैं फिर से जीने की तमन्ना जगाता हूँ, कहीं भी, किसी भी अजनबी शहर में. हर शहर में मैं अपना भोपाल बसा लेता हूँ!

                        इस शहर में फिर मौत आये तो मैं कहूँगा, 'रात में ही आना' क्यूंकि जागते रहे तो हमारे जिंदा रहने के इरादे जज़्ब नहीं होंगे और मौत यक़ीनन तुझे भागना पड़ेगा. 


02.12.2013. #Bhopal,  #Bhopal_Gas_Tragedy (2-3 Dec Night 1984 )

शौर्य गाथा : सीताफल

 


पापा ऑफिस से आए हैं, भाईसाहब सो रहे हैं. कुछ देर में भाईसाहब जागते हैं और पापा को hug कर लेते हैं. उन्हें जागते ही पापा पर बहुत लाड़ आ रहा है.

पापा अब तक की सबसे टफ टास्क - भाईसाहब को गोद में लेकर सीताफल खिलाने में संलग्न होते हैं. हर पॉड के बीज से दल को अलग कर भाईसाहब को खिलाना होता है. साथ में पापा भी खा रहे हैं. दोनों मिलकर 4-5 सीताफल चट कर जाते हैं.

मम्मा ऑफिस से आती है, दृश्य देख पापा को डांट पड़ती है. भाईसाहब को सर्दी जल्दी हो जाती है और शाम में सीताफल खिलाया जा रहा है! थोड़ी थोड़ी सर्दी तो उन्हें अभी भी है.

भाईसाहब मम्मा के पास जाते हैं और मम्मा से सीताफल की ओर हाथ से इशारा कर बोलते हैं मम्मा 'औल ताहिए.' पापा की हंसी निकल जाती है, मम्मा उन्हें लुक देती हैं.

रात में भाईसाहब को खांसी होती है, पापा पर डांट पड़ती है. अगले दिन डॉक्टर साहब सर्दी खांसी का कारण शाम में फल खाना बोलते हैं, पापा पर फिर डांट पड़ती है. दो दिन बाद दादू आते हैं, भाईसाहब को बीमार देखते हैं और पापा को फिर डांट पड़ती है.

पापा अकेले में भाईसाहब के पास जाते हैं उनसे रिक्वेस्ट करते हैं को बेटा आप जल्दी ठीक हो जाओ नहीं तो मैं डांट ही खाता रहूंगा. भाईसाहब बोलते हैं 'ओते पापा.'

बेचारे पापा ने घर में सीताफल लाने से ही तौबा कर लिया है.

#शौर्य_गाथा

Tuesday, November 29, 2022

शौर्य गाथा : Kisses



भाईसाहब पापा की गोद में बैठे हुए हैं. मम्मा को ऑफिस से आने में देरी हो गई है, तब तक पापा भाईसाहब का मन बहला रहे हैं. मम्मा आती है, भाईसाहब दौड़ के मम्मा की गोदी चढ़ जाते हैं, गले में हाथ डाल लेते हैं. मम्मा बहुत सारी चुम्मी देती है, भाईसाहब मम्मा के गाल हाथों में ले लाड़ जताते हैं. फिर भाईसाहब एक हाथ मम्मा के गले में ही डाल, दूसरे हाथ से पापा को पास बुलाते हैं. पापा पास आते हैं, भाईसाहब अपना हाथ पापा के गले में डालते हैं और अपना गाल पापा की तरह कर बोलते है 'ये...ये...' मतलब आप भी चुम्मी लो मेरी.

फिर पापा मम्मा एक साथ दोनों गालों पर चुम्मी देते हैं और भाईसाहब खुश हो जाते हैं.

#शौर्य_गाथा

Sunday, November 27, 2022

शौर्य गाथा : Shaurya's Dadu, Dadu's Shaurya




भाईसाहब के दादू आए हैं. अब वो मम्मा पापा को भी भूल गए हैं. अगर उन्हें साइकिल से उतरना है तो भले ही मम्मा पापा पास हों, आवाज आती है 'दा..दू...' बाहर झूले पे जाना है तो भी दादू ही लेकर जाएंगे, ग्राउंड में साइकिल चलाना है तो भी आवाज दादू को ही दी जायेगी 'दादू त..ओ.., दादू त..ओ...'


दादू भी उन्हें खुद की थकान भूलकर घुमाते रहते हैं.

कभी-कभी भाईसाहब पापा नाम लेकर 'वि..देत...' बोलते हैं अब दादू को भी उनसे क्यूट और तोतली आवाज में अपना नाम सुनने की इच्छा है. चाचू उन्हें दादू का नाम लेना सिखा रहे हैं. वो 1-2 दिन में सीख भी गए हैं. अब उन्हें किसी बात पर दादू की जरूरत है, वो चिल्लाते हैं 'दा..दू...' दादू सुन नहीं पाते हैं तो जोर से चिल्लाते हैं 'दादू... दा..दू... वि.. ब.. ल...' हम सब लोटपोट हो रहे हैं. चाचू और पापा को हंस हंसकर पेटदर्द हो गया है.

दादू ने भाईसाहब को खुशी से गोद में उठा लिया है और ढेर सारा प्यार कर रहे हैं और भाईसाहब की हंसी रूक नहीं रही है.

#शौर्य_गाथा

Saturday, November 26, 2022

शौर्य गाथा : Children's Day


 हल्के जाड़े वाली बड़ी खुशनुमा सी सुबह है. भाईसाहब की गुडमॉर्निंग हो गई है. जागते ही स्माइल करते हुए बोलते हैं, 'पापा...' सुबह और खुशनुमा लगने लगती है.

मैं उन्हें उठाकर Hug करता हूं और दो तीन बार चूमने के बाद बोलता हूं 'हैप्पी चिल्ड्रें'स डे बच्चा.' वो बदले में गले के दोनों तरफ बाहें डाल देते हैं, फिर बोलते है 'पापा... प्याये पापा...' अब सुबह और भी अधिक खूबसूरत लगने लगती है. जैसे सूरज लालिमा लिए धीमे धीमे आसमान चढ़ रहा हो, जैसे हवाओं संग कमरे में खुशबू फैल गई हो.'
मैं मुस्कुराते हुए लगभग उन्हीं के लहजे में बोलता हूं 'हम्म...' वो गर्दन मटका कर बोलते हैं 'पापा पुट्टी आई... पुट्टी (Potty).'
... और पापा को एहसास होता है कि हवाओं में जो फैल रही थी, वो खुशबू नहीं थी, कुछ और था।😀😄

Friday, November 25, 2022

शौर्य गाथा : 'वि.. देत.. पानी ताओ'

 


भाईसाहब को रात 8 बजे से 10 बजे तक सुलाने की पूरी कोशिशें की जा चुकी हैं लेकिन भाईसाहब तो भाईसाहब हैं. 'यदा मनः तदा कर्म.' इसलिए वो उछल कूद में ही लगे हुए हैं.

अब मम्मा उन्हें कुछ खिला रही हैं, पापा मम्मा को दृश्यम-2 देखने जाना है इसलिए दृश्यम के रिवीजन के लिए टीवी साथ में देखी जा रही है.

मम्मा पापा बोलती हैं, 'यार विवेक, इन्हें पीने पानी ले आओ न.' पापा अजय देवगन की 'दो अक्टूबर वाली कहानी' में उलझे हैं, टीवी पर आंख गड़ाए रहते हैं.

अब भाईसाहब मम्मा की गोदी से उठते हैं, पापा के पास आते हैं, पापा का हाथ पकड़ते हैं और तेज आवाज में बोलते हैं 'वि.. देत.. पानी ताओ... पानी...'

पापा मम्मा की हंसी छूट जाती है. पापा पानी लाते हैं, भाईसाहब अपनी छोटी सी चोंच डालकर पानी पीते हैं. पापा उनसे पूछते हैं 'ठीक है?' भाईसाहब बोलते है 'ती..क... है'

रात 11.30 बज गए हैं. भाईसाहब अपनी कार पे बैठ हॉल में घूम रहे हैं, पापा मम्मा उनके थकने का इंतजार कर रहे हैं.

#शौर्य_गाथा

शौर्य गाथा : पा..पा.., पा..पा.. वि.. देत..



 इनकी मम्मा मुझे आवाज दे रही हैं 'विवेक... विवेक...' मैं मोबाइल में घुसा हुआ हूं इसलिए सुन नहीं पाता हूं. इतने में भाईसाहब एक्टिव हो जाते हैं. दूर से चिल्ला कर कहते हैं 'वि.. दे.. त.. मम्मा बुलाई.' मैं उनके बोलने पर हंस देता हूं लेकिन जानबूझकर इग्नोर करता हूं तो ये फिर से आवाज देते हैं 'विदे.. त.. मम्मा बुलाई' अब मैं इनकी ओर देखता हूं और भाईसाहब क्यूट सी स्माइल करते हुए कहते हैं 'पा..पा.., पा..पा.. वि.. देत..'

अब मम्मा इन्हें मोरल एजुकेशन का पाठ पढ़ाती हैं, 'पापा को पापा कहते हैं नाम नहीं लेते.' इतने में मैं बोल देता हूं 'निधि... निधि...' और भाईसाहब शुरू हो जाते हैं 'नि.. धी... पापा बुलाई.' 😃
अब मम्मा मुझे घूर रही हैं.😄

Wednesday, November 23, 2022

शौर्य गाथा : श्रवणकुमार

 


भाईसाहब लीलाधर हैं. उनकी लीलायें देखकर ऐसा लगता है कि बस देखते ही रहें. तीन चार दिन से सर्दी ज़ुकाम से पीड़ित थे, आज कुछ राहत में हैं. राहत मिलते ही लीलायें शुरू हो गई हैं. रात के पौने ग्यारह बज रहे हैं और भाईसाहब की आंखों में नींद नहीं है. उनको सुलाने के सारे जतन किए जा चुके हैं और सारे ही व्यर्थ गए हैं. थककर पापा बोलते हैं 'बेटा, अब हम थक गए हैं और आपको सुलाने के चक्कर में हमें Headache भी होने लगा है.'

भाईसाहब ने ये सुना और पापा के पास आए और पापा के गाल पर प्यार से हाथ फेर बोले ' प्याये.. प्याये.. पापा', फिर बड़े जतन कर भाईसाहब पलंग से नीचे उतर गए हैं. जबतक हम कुछ समझ पाएं उसके पहले ही ड्रेसिंग टेबल पर रीच में आई कोई सी शीशी उठा लिए हैं. बड़े जतन से फिर बेड पर चढ़े हैं.
जैसा हम उनकी मालिश करने के लिए तेल की शीशी को उल्टा कर हथेली में तेल लेते हैं वैसे ही उन्होंने बंद शीशी को किया और पापा के पास खड़े होकर पापा के सर की मालिश शुरू कर दी है. पापा मम्मा उनकी यह लीला देख हंस देते हैं और उन्हें रोकते हैं लेकिन वे मानने को तैयार नहीं हैं. पापा को सरदर्द है और कुल उन्नीस महीने के हमारे श्रवणकुमार सेवा में लग गए हैं.
उनकी नन्हीं कोमल हथेलियों का स्पर्श बहुत प्यारा लग रहा है इसलिए पापा भी थोड़ी देर उन्हें ये करने देते हैं. थोड़ी देर वह मुस्कुरा कर करते रहते हैं और फिर कहते हैं ' फि..नि...च्छ' (Finish). नया शब्द है जो अभी अभी ही सीखा है.
लेकिन अब मम्मा को भी उनकी लीला का लालच आ गया है. उनकी इस हरकत पर किसी को भी आ सकता है. इसलिए मम्मा बोलती है बेटा मेरे पांव में भी दर्द है... और भाईसाहब उनके पांव की मालिश करना चालू कर देते हैं. मम्मा उन्हें पकड़कर जोर से गले लगा लेती है. 😃

#शौर्य_गाथा : भरत मिलाप


 भाईसाहब और भाई का दिवाली मिलन हुआ और ये भरत मिलाप से कम नहीं था. कारण ये था कि भाई को मम्मा पापा ने तीन हफ्ते पहले से ये सिखाया कि 'आपको भाईसाहब को मारना नहीं है, वो आपके भाई हैं और उनको प्यार किया जाता है.' भाईसाहब को उनके मम्मा पापा ने ये कह तैयार किया कि 'वो बड़े हैं और उन्हें छोटे भाई को प्यार करना है.' फिर क्या था, दोनों मिले और सब रिएक्शन का फोटो लेने के लिए तैयार खड़े हो गए.

इतना प्यार तो शायद भाईसाहब के पापा, चाचू, छोटू चाचू ने भी कभी नहीं दिखलाया होगा. 😃

शौर्य गाथा : दौड़

 


भाईसाहब ने जबसे चलना सीखा है बहुत तेजी से भागते हैं. इतना कि मम्मा-पापा तो क्या कॉलोनी का कोई भी व्यक्ति न पकड़ पाए. लेकिन जब थक जाते हैं तो बस 'प्यारे प्यारे पापा' कह, हाथ बढ़ा बढ़ा कर 'पापा मुझे गोदी ले लो' की ज़िद शुरू हो जाती है... और जैसे ही थकान मिटे तो फिर वही कहानी शुरू... मम्मा-पापा की विपरीत दिशा में दौड़ चालू. 😃😃

#शौर्य_गाथा

Tuesday, November 22, 2022

शौर्य_गाथा : चाचू



 भाईसाहब को पापा नहला रहे हैं. भाईसाहब ज्यादा खुश नहीं हैं. उन्हें पानी में 'फच्च... फच्च...' करना अच्छा लगता है और पापा हमेशा मना करते हैं. थोड़ी देर में चाचू आ जाते हैं और नहलाने का ऑफर देते हैं. चाचू को देख भाईसाहब बहुत खुश हैं. पापा तुरंत 'हां' कर देते हैं. अब चाचू भाईसाहब को नहला रहे हैं और भाईसाहब बड़े खुश हैं, इतना कि इनकी हंसी सुन सुनकर घर के बाकि लोग वाशरूम के बाहर खड़े हो गए हैं. भाईसाहब ने बहुत ज्यादा फच्च... फच्च... किया है, चाचू थोड़े भींग गए हैं लेकिन नहलाकर बड़े सुकून में हैं. भाईसाहब चाचू से भी ज्यादा खुश हैं, उन्हें उनके मन का करते हुए नहलाया गया है.

चाचू अनुसार सुरेंद्र झा 'सुमन' जी के शब्दों में कहें तो दृश्य कुछ इस तरह का रहा -
दाख मधुर, मधु मधुर पुनि मधुर सिता रस घोल
ताहू सँ बढ़ि - चढ़ि मधुर लटपट तोतर बोल।
अद्भुत शिशु-संसार ई जतय अबोधे बुद्ध
अक्षर अक्षर क्षरित जत अटपट भाषे शुद्ध।
लुलितकेश, तन नगन, मन मगन, धूसरित पूत
राग द्वेष लव लेश नहि शिशु अद्भुत अवधूत।

शौर्य गाथा : भाई


 

भाईसाहब जब अपने भाई से अगस्त में मिले थे तो भाई पर अत्यधिक प्यार बरसाया था. इतना कि मम्मा से बार बार बोल रहे थे कि भाई को भी गोदी ले लो. लेकिन भाई तो छोटे हैं, भले ही तीन महीने सही. तो भाई ने एक बार जोर से एक टॉय कार हाथ से घुमाई और भाईसाहब की नाक के ऊपर हल्का कट लग गया. लेकिन मजाल की भाईसाहब ने गुस्सा किया हो. वो उतना ही प्यार बरसाते रहे.

भाईसाहब में अभी से बड़प्पन आ गया है. उनसे बड़े पर भले ही गुस्से में वो हाथ उठा दें लेकिन छोटो को उनकी गलती पर भी माफ कर देते हैं. 😃
भाईसाहब अब फिर से दीपावली पर भाई से मिलेंगे. मम्मा पापा की प्लानिंग ये है कि फिर से भाईसाहब या भाई चोटिल न हो जाएं, इसलिए दोनों बच्चों का ख्याल रखा जाएगा. लेकिन दोनों के भ्रातृ-स्नेह का असली पता तो अब दीपावली पर ही चलेगा.
फ़ोटो:- दादू की गोद में भाईसाहब और भाई.

Monday, November 21, 2022

शौर्य गाथा : Care & Hugs



 भाईसाहब की गुड मॉर्निंग हो गई है. मम्मा ने ढेर सारे Kisses भी दे दिए हैं. अब भाईसाहब को बालकनी से चिड़िया देखनी है इसलिए बोलते है 'चिईया' (चिड़िया). पापा उन्हें बालकनी तक लेकर जाते हैं. भाईसाहब को दो-तीन तोते दिखते हैं, दो-तीन कबूतर दिखते हैं. 'ये... ये...' करके भाईसाहब उनके बारे में पूछते हैं. अब भाईसाहब बोर हो गए हैं इसलिए बोलते हैं 'तओ' (चलो). उनको दूसरी बालकनी में ले जाया जाता है, वहां भी वे चिड़िया देखते हैं. एक कबूतर खिड़की में बैठी हुई है, शायद अंडे सै रही है. भाईसाहब पूछते हैं ये... पापा ज्ञान बघारते हैं कि इसे रॉक पिजन बोलते हैं, जिसका साइंटिफ नेम Columba livia है. भाईसाहब ज्यादा नहीं समझते हैं सीधा फिर से पूछते हैं 'ये...'

अब पापा बताते हैं कि जैसे आपकी मम्मा केयर करती है वैसे ही वो भी अपने बच्चो को केयर कर रही है. सुनकर भाईसाहब किचन की तरफ दौड़ जाते हैं और मम्मा को Hug कर लेते हैं. 😃👪

Sunday, November 20, 2022

शौर्य गाथा : Possessiveness



भाईसाहब की मम्मा की दोस्त आई हैं. साथ में 9 महीने की बहुत प्यारी सावी भी है. सावी बहुत क्यूट है, मम्मा उसे तुरंत प्यार करती हैं, पापा उसे गोदी में उठा लेते हैं. ये सब भाईसाहब देख रहे हैं. भाईसाहब पजेसिव हो जाते हैं, तुरंत गुस्से का इजहार करते हैं. मम्मा-पापा मुस्कुरा देते हैं.

इनकी आया के पास ये पापा-मम्मा को मौजूदगी में कम ही जाते हैं लेकिन जैसे ही सावी को उन्होंने लिया और ये भी दूसरे कंधे पे टंग गए हैं. सबकी हंसी छूट जाती है.

भाईसाहब ने सावी के साथ खेलना शुरूर कर दिया है. फ्रेंडशिप कर ली है. कुछ देर में सावी अपने मम्मा-पापा साथ वापस जा रही है और ये दुःखी हो रहे हैं. इतने में पापा ने सावी को गोद में ले लिया है, अब भाईसाहब फ्रेंड के जाने से दुःखी होना छोड़ पापा की गोद के लिए मचलने लगे हैं, इतना कि पापा को सावी को छोड़ इन्हें गोद लेना पड़ा है, तबतक इन्होंने दो चार आंसू तक बहा दिए हैं.

भाईसाहब आजकल पापा-मम्मा को लेकर बड़े पजेसिव हैं. उसूल है दोस्ती पक्की पर पापा-मम्मा अपने-अपने. 😀☺️

#शौर्य_गाथा

Friday, November 18, 2022

शौर्य गाथा : बाइक


 

भाईसाहब का पर्सनल गैराज है. इसमें इतनी गाडियां हैं जितनी पापा मम्मा के पास मिला कर भी नहीं हैं. एक घोड़ा भी है जिसपर भाईसाहब कभी कभी हॉर्स राइडिंग पर निकलते हैं, एक हाथी भी है जो मॉल में जोर- जोर से 'हाती ददा...', 'हाती दादा...' चिल्ला-चिल्लाकर रोकर खरीदा गया है. यह दौड़ता नहीं है, लेकिन भाईसाहब इसे रेंगा जरूर लेते हैं. बाकि की गाडियां, ट्राइसिकिल, बाइसिकिल इत्यादि के अलावा अब डिमांड एक बाइक की है. चाचू ने 'बडूम... बुडूम...' की आवाज निकाल गाड़ी-गाड़ी कहना सिखा भी दिया है. भाईसाहब एक बार टेस्ट ड्राइव भी ले चुके हैं. अब बस एक बार और मॉल जाने की दरकार है और फिर वही रो-रोकर चिल्लाकर ब्लैकमेलिंग शुरू हो जाएगी और इनके गैराज में बाइक का भी इज़ाफ़ा हो जाएगा.

#शौर्य_गाथा

शौर्य गाथा : लिखना


 

पापा कुछ लिख रहे हैं इसलिए भाईसाहब पास आ गए हैं. अब उन्हें भी लिखना है. उन्हें कॉपी पेन दे दिया गया है, अब पापा लिखना छोड़ उन्हें देख रहे हैं. पापा ने उनका हाथ पकड़ा और अपना नाम लिख दिया और कहा कि 'अब आप लिखिए.' भाईसाहब ने अपनी भाषा में कुछ लिखा है, जो पापा का नाम तो बिलकुल नहीं है. जिसे पढ़ने शायद भगवान को धरती पे उतरना पड़ेगा.


खैर, अब उन्हें दूसरा पन्ना चाहिए. पहले वाले पे पूरा लिख चुके हैं, या यूं कहें कि लिखकर ऊब चुके हैं. खुद से कॉपी को पलटा जाता हैं. पापा मना करते हैं, भाईसाहब गुस्से का इज़हार करते हैं. पापा उन्हें समझाते हैं कि पेपर पेड़ से बनते हैं और पापा पेड़ बचाते हैं इसलिए पेज खराब मत कीजिए. लेकिन भाईसाहब गुस्से में 'मम्मा... मम्मा...' चिल्लाकर 'बैकअप फोर्स' मंगाने लगे हैं. थककर पापा ने पन्ना उलट के दूसरा पन्ना भी सुपुर्द-ए-भाईसाहब कर दिया है.

अब भाईसाहब दूसरा पन्ने पे भी अपनी भाषा में कुछ लिखकर बहुत खुश हैं. हंस रहे हैं.

पापा इसलिए खुश हैं कि बैकअप फोर्स आने के पहले ही उन्होंने स्थिति सम्हाल ली है और आज दीवारें भी उच्च स्तर की पेंटिंग का कैनवास बनने से बच गईं हैं.

#शौर्य_गाथा

Thursday, November 17, 2022

शौर्य गाथा : रात साढ़े ग्यारह बजे

 


भाईसाहब 8 बजे सो जाते हैं और फिर रात साढ़े ग्यारह बजे जागकर 'पापा... दूध', 'पापा... मम्मा... दूध' चिल्लाने लगते हैं. मम्मा ऑफिस से थककर आई हैं, इसलिए घोड़े बेच के सो रही हैं. बेचारे पापा जाग जाते हैं, किचन जाते हैं. भाईसाहब पीछे पीछे हो लिए हैं. किचन में जो भी बर्तन रीच में है उसे उठा घूम रहे हैं. दो बर्तन मिल गए हैं तो बस रात में इनका म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट तैयार है, तरह तरह की धुन बजाई जा रही हैं. पापा ने दूध गर्म कर लिया है, तब तक इनका बर्तनों को बजा बजा, नई धुन निकाल निकालकर घर का चौथा चक्कर भी लग गया है. अब आप उनके पीछे- पीछे दौड़ के दूध पिला रहे हैं, साथ में 'ठन... ठन...' का म्यूजिक भी बज ही रहा है. आप उन्हें पकड़ते हैं, बर्तन छीनते हैं और जबरदस्ती दूध पिलाना शुरू करते हैं. 2- 3 घूंट पीते पीते भाईसाहब रोना शुरू कर देते हैं, जैसे किसी ने इन्हें जोर से पीटा हो. बस इतने शोर में मम्मा जाग जाती है. "क्या यार विवेक मैं ऑफिस से थककर आई हूं, थोड़ा सा तो ख्याल रख लो. कहां चोट आई है बेटा?"


पापा मन ही मन सोचते हैं कि 'क्या वो थककर नहीं आए हैं?' खैर! भाईसाहब का रोना बंद हो गया है, मम्मा की आवाज सुनते ही. अब वो पापा को तरफ देख देख मुस्कुरा रहे हैं, जैसे उनने पापा को डांट पिलाकर के अपना गोल अचीव कर लिया हो.

#शौर्य_गाथा

शौर्य गाथा : हाती दादा



 भाईसाहब ने 'हाथी दादा कहां चले...' rhyme को यूट्यूब से सुन सुन कर हाथी दादा कहना सीख लिया है. अब जब भी हाथी दादा की फोटो सामने आती, वीडियो आता है या खुद ही हाथी दादा सामने आ जाएं तो ये 'हाती दादा....', 'हती दादा...' चिल्लाने लगते हैं.

साहब हाथी दादा को देख उनके पास जाने की जिद कर रहे हैं... तकरीबन एक घंटे से. जब पास ले जाया गया तो डर कर मम्मा... मम्मा... कह मम्मी से चिपक गए.

उनका हाथी दादा के प्रति प्यार और हाथी दादा के पास जाने पर डर दोनों ही देखने लायक हैं.
#शौर्य_गाथा

शौर्य गाथा : अलग एहसास


 

भाईसाहब की मम्मा और दादी बाहर गए हुए हैं. भाईसाहब को सुला दिया गया है. पापा के जिम्मेदारी उनका ध्यान रखने की है. पापा हॉल में जाकर अपनी फेवरेट 'आग का दरिया' उठा लेते हैं.

एक घंटे बाद भाईसाहब की आवाज आती है.वो जाग गए हैं. पापा उन्हें लेकर किचन जाते हैं, दूध गर्म करते हैं. भाईसाहब दूध पीने से इंकार कर देते हैं. 'मम... मम...' बोलकर पानी की ओर इशारा करते हैं. पापा पानी पिलाते हैं.

अब फिर से भाईसाहब को सुलाना बड़ा टास्क है. पापा उन्हें लिटाते हैं, समझाते हैं कि 'वो अब बड़े हो गए हैं, खुद से सो सकते हैं.'

भाईसाहब पापा से चिपक के लेट जाते हैं, फिर पेट पर चढ़कर सोते हैं, फिर उतर के चिपक के लेटे हैं. पापा थोड़ा भी इधर उधर हिलते हैं तो वो पापा को और कस के पकड़ कर चिपक जाते हैं. मम्मा के साथ ये रोज ऐसे ही सोते हैं लेकिन पापा के साथ पहली बार है. पापा को अंदर से बहुत खुशी महसूस हो रही है, अलग सा एहसास जो शब्दों में यहां बयां नहीं किया जा सकता.

पापा भी 'आग का दरिया' दरिये में डाल उनसे चिपक सो जाते हैं.

रात बारह बजे पापा की आधी सी आंखे खुलती हैं. सामने दादी और मम्मा खड़े बोल रहे हैं "घर के सारे दरवाजे खुले हुए हैं... किचन में दूध खुला पड़ा है... बिलकुल ध्यान नहीं रखते... ब्लाह... ब्लाह..."

पापा उनको देखते हैं, मुस्कुराते हैं, चिपक के सोये भाईसाहब को चूमते हैं और फिर पूरी आंखे बंद कर सो जाते हैं.

पापा नींद में भी उसी अद्भुत एहसास में हैं. 🙂

#शौर्य_गाथा

*आग का दरिया : कुर्रतुलऐन हैदर रचित प्रसिद्ध उपन्यास

Wednesday, November 16, 2022

शौर्य गाथा : 'प्याये पापा'

 



भाईसाहब अभी कोई 2-3 दिन पहले ही कुल जमा डेढ़ साल के हुए हैं. इनकी मम्मा ने इन्हें 'प्यारे प्यारे पापा' कहना सिखा दिया है. अब आप ऑफिस से आते हैं तो अपनी भाषा में 'प्याये पापा' कह कर चिपक जाते हैं. झूठ झूठ गुस्सा करो तो 'प्याये प्याये पापा' कहकर पापा का गाल खिला-खिलाकर मनाने लगते हैं.

शौर्य गाथा : 'His First Painting'


जब आप ऑफिस से घर आते हैं तो पता चलता है कि आपके बेटे में हिडन टैलेंट भी है, वे आगे चलकर बहुत बड़े पेंटर साबित होने वाले हैं. उन्होंने अपना हुनर दिखाते हुए अपना पहला स्केच भी बनाया है, जो किसी कलाप्रेमी की नज़र में मॉडर्न आर्ट का एक बेहतरीन नमूना हो सकता है.
जब आप उनसे पूछते हैं कि आपने दीवार को गंदा क्यों किया? तो उनके एक्सप्रेशंस होते हैं: 'What! Where?'

Saturday, August 20, 2022

भोपालनामा 10

 मैं भोपाली हूँ, लेकिन सिर्फ भोपाली, सुरमा भोपाली नहीं. अगर हम सुरमा होते तो हज़ारों को मरने न देते, बेमौत. किसी की गलती की सजा बेचारे हम न भुगतते. Bhopal Gas Tragedy, a name which creates fear in every Bhopali, in every inidan. बहुत कुछ हो गया, पच्चीस बरस पहले, इक रात में, हजारों जानें खाक हो गई, मिट गई पल भर में.

मैं उस समय पैदा भी नहीं हुआ था पर आज यहाँ रहते वो ज़ख्म देख रहा हूँ..........आज भी कई दिलों में ताज़ा हैं. फिर भी बहुत बदल गया है यहाँ. ज़ख्म सिर्फ उन दिलों में हैं जिनने खोया है. बाकी अब राजनीति की भेंट चढ़ गया. इक मंत्रालय बना हुआ है, भोपाल गैस tragedy राहत हेतु, 100 करोड़ हर पंच बरसिये योजना में मिलते है उसे, लेकिन वो कहाँ जाते है कुछ पता नहीं. दोषी विदेशी धरती पर जमे हुए हैं, उनके दोष का दर्द हम झेल रहे हैं.


आज भी दूसरी पीड़ी पंगु पैदा हो रही है. अपंग पैदा हो रही है. इसका असर सचमुच भयानक है.

ये सच है, कम्पनी औ सरकार ने पैसा दिया है, बहुत कुछ, लेकिन कितना असली हकदार तक पंहुचा और उसने कितनी मरहम लगाईं, ये नहीं कह सकता.पैसा लोगों की जगह तो नहीं ले सकता ना!!

                  .........आज पच्चीसवीं वरसी पर देश, विदेश इन मृतकों के लिए नाम हैं, लेकिन यहाँ, निकाय चुनावो के स्पीकर्स बज रहे हैं, वोटरों को लुभाने पटाखे फोड़े जा रहे हैं. मैं यहाँ लिख रहा हूँ और बाहर की ये आवाजें भी सुन रहा हूँ. भोपाल का दर्द सिर्फ उनके ज़ेहन में है जिनने खोया है.

    मेरे यहाँ इक कामबाली आती है, ज्योति, जब हादसा हुआ वो १३ साल की थी, उसकी कच्ची आँखों ने सब देखा है, उसका वर्णन रोंकते खड़े करने बाला है. उसने लकड़ी की कमी से लाशों को इक के ऊपर इक जलते देखा है, लोगों को बिलखते मरते देखा है, अपने चाचा, दादा को खोया है. उसका दर्द इतना भयानक है की आप पूरा नहीं सुन सकते.

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हाँ, कार्बाइड फैक्ट्री की आज की स्थिति बताऊँ, तो आप भी चौंक जायेंगे. वहा से 3km दूर-दूर तक का underground water प्रदूषित है, ज़हरीला कचरा वहीँ पडा है, लेकिन आस-पास बस्तियां मौजूद हैं, इन्ही situations में रह रही हैं. कचरे के ऊपर बच्चे क्रिकेट खेलते हैं. उनको पूछने बाला शायद न तो म.प्र. सरकार है न ही केंद्र. वो ही बेचारे गरीब लोग जाये तो कहाँ जाये? विस्थापन की जरूरत पर कोई ध्यान नहीं दे रहा है.


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      इक कहानी और है, त्रासदी के बाद की कहानी. कुछ लोगों के पास 8-8 घर हैं, क्यूंकि जिन घरों में कोई नहीं बचा वहां इनने कब्ज़ा कर लिया. त्रासदी अनुदान खा-खा लोग करोड़पति हैं, नेता इसे भुना सत्ता के गलियारों में खुश हैं, त्रासदी मंत्रालय भी खुश है, पैसे पेट में पचा-पचा.

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जीवन भी अजीब है, हर घटना की कई कहानियां बन जाती हैं.

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              फिलहाल मृतकों को श्रद्धा अर्पित....काश! बचे हुए लोगों को अच्छे प्रयास किये जाएँ.

लेखन वर्ष: 2014

Tuesday, August 16, 2022

भोपालनामा 9

 भोपाल... तुम्हें भुलाने की जितनी भी कोशिशें करता हूं तुम शक्लें बदल-बदल उतने पास आते जाते हो.

तुम्हें पहले अपनी आंखों से देखा, फिर 1984 गैस हादसे में बुझ चुकी सफ़ीना बी आंखों से फिर देखा, फिर कई अन्य आंखों में तुम दिखे. मसलन ट्रेन में वारंगल की एक स्वीट आंटी की आंखों में रचे बसे थे. आज फिर एक दफे दो खूबसूरत आंखों में तुम दिखे तो वो आंखें अपनी सी लगने लगीं.
तुम जिन आंखों में बसे होते हो उन्हें खूबसूरत बना देते हो, साथ में उनमें रचे बसे ख्वाबों को भी.
भोपाल तुमसे खूबसूरत कभी मैसूर लगा था लेकिन एक बार फिर तुम्हारी गोद में बैठा तो तुम्हारा होकर रह गया.
काश! तुम सिर्फ शहर ना होते तो तुम्हें अभी आगोश में भर लेता.
टूटे भोजताल की सूखी ज़मीं पे बसे तुम इतने हरे हो कि होशंग शाह के इरादे, कार्बाइड का दंश और मानवीय उन्माद तुम्हारा कुछ बिगाड़ नहीं सके.
मैं तुमसे इश्क़ में हमेशा रहूंगा.
मैं भटकता रहूं शहर-दर-शहर पर आख़िर गोद में तुम्हारी घर पाता हूं.

Sunday, August 14, 2022

हम | भोपालनामा 8

 वो लड़की

पीला पहन लेती है
तो बसंत हो जाती है,
गुलाबी पहने तो जयपुर.
वो इतनी हरी है जैसे भोपाल हो.
उसकी आँखों में बड़ी झील तैरती है.
मैं प्रेम हूं,
वो ममत्व.
मैं नदी भर के उसपे लुटाता हूं,
वो सागर है.
मैं गीत हूं,
वो धुन.
और जो जो मैं नहीं हो पाता
वो सबकुछ हो जाती है.
लम्हा तक हो जाती है सिमटकर.
मैं उसके साथ ख्वाबों का शहर
भोपाल होना चाहता हूं
वो मेरे साथ
आसमान हो जाना चाहती है.
हम हर दिन साथ होना चाहते हैं.
मैं उसका पिता होते होते रह गया
वो सच में मेरी माँ हो गई.

Friday, August 12, 2022

भोपालनामा 7

 वो शहर जिसमें तुम उम्र गुजारने की सोचते हो, बस जाने की सोचते हो, इतना बदल गया है कि राज्य के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में दूसरे स्थान पर है. जिन रास्तों पर तुम बेटोक गए हो वहा एक-एक मिनट के ट्रैफिक जाम है.

कुछ चौराहे पुराने से लगते ही नहीं, कई लोग अपने से भी नहीं. जैसे कि शहर बदलते-बदलते रंग भी बदलने लगे हों.
अजीब इत्तेफ़ाक़ है कि कुछ लोग अभी भी पहचान लेते हैं, दस साल बाद भी!
वे जगहें जहां पेड़- खेत थे, वहां अब माल और मीनारें हैं. आश्चर्य होता है कि रंग रूप बदलता यह शहर पचास साल पहले किसी जिले की तहसील हुआ करता था. हां, जिजीविषा अब भी ज्यूं की त्यूं है. स्व. अब्दुल जब्बार के गैस त्रासदी विक्टिम्स के लिए किए काम को कुछ लोग याद करते आंखें छलका देते हैं.
कोलार डैम वही है, झील वही है, वन विहार भी... कुछ कैफे भी वैसे के वैसे ही हैं. भारत भवन की शाम उतनी ही सुन्दर है... बस तुम्हें ही सबकुछ अधूरा अधूरा सा लगता है. दिल में भी और शहर में भी. जैसे कुछ था जो अब यहां नहीं है. कुछ खो गया है.
जैसे ये शहर, शहर तो वही है बस तुम उस शहर के बाशिंदे नहीं रहे!
तुम वहीं खड़े हो... शहर आगे बढ़ चुका है... लोग आगे बढ़ चुके हैं. शहर ने तरक्की कर ली है… लोगों ने भी ? शहरी आवश्यकताओं जैसे कपट और कटुता को अपना लिया है.

Thursday, August 11, 2022

भोपालनामा 6

 लफ़्ज़ों को आग में पका कुंदन नहीं बनाया जा सकता न शहर के बीचों-बीच खड़े हो चिल्ला-चिल्लाकर इश्तेहार किया जा सकता है. लफ़्ज़ों में तुम हो और तुम खुद को पढ़ के भी नहीं समझ पाओगे. उम्र में दो साल बड़े तुम ज़िन्दगी में पूरे बीस साल....अपना काम कर खुश होते हो और अक्सर फ़ोटो अपने कर्म के इश्तेहार के रूप में डाल देते हो तो लगता है तुम सुकूं की आखिरी सीढ़ी पे बैठे मुस्कुरा रहे हो. हर 'पिक' में तुम मुझे 'क्यूट' लगते हो..ऊपर से हमारे बीच का कॉमन भोपाल. जितना इश्क़ मुझे उससे... उतना तुम्हें. सोचता हूँ किसी दिन बोल दूँ, फिर खुद को बच्चा समझने लगता हूँ. घर में उम्र में सबसे बड़ा पर थोड़ा कम मेच्युर मैं... तो ये होना ही है.

तुम्हारी यात्रायें, मतलब लिए हैं...ढेर सारे, ढेरों के ढेरों पन्नों में तुम उकेर देते हो जिन्हें. मेरे लफ्ज़ सिर्फ दो लोग लिए हैं... ढेर सारे 'तुम' और थोड़ा सा 'मैं', जिन्हें मैं थोड़ी स्याही ही दे सकता हूँ तुम्हें समझाने.
तुमने पढ़ा क्या? छोड़ो, पढ़ के भी तुम नहीं समझोगे कि यहां 'तुम' तुम हो.