Sunday, December 13, 2009


मैं और मेरे पिता  


पिता की आँखें,
वो दीर्घ में देखती आँखें.
आँखों में पलता सपना-
की पाऊं में सफलता.
उन्होंने जो किया संघर्ष,
वो न करना पड़े मुझे!
लड़ना न पड़े मुझे.

मैं-नालायक
संघर्ष नियति मान करता हूँ.
अपना सपना पाल
खुद के लिए लड़ता हूँ.

अब,
हमारे सपने टकरा गये.
उनका सपना दीर्घ, मेरा सपना शुन्य,
उनकी नज़र में यह बूँद!!
मैं जीते या वो, नहीं पता.
पर मैं सफलता पा गया,
पा के इठला गया.

मैं सोचता हूँ,
वो देखते-मैं कितना खुश हूँ,
अपना सपना साकार कर,
पा सफलता अपने आधार पर.

वो सोचते हैं,
काश! बेटा देखे,
वो खुश हैं, उसकी लगन से,
उसने पाया, जो चाहा मन से.

लेकिन,
मैं दुखी हूँ, उनका सपना न साकार कर,
वो दुखी हैं, सपने थोपने के आधार पर.

हम,
खुश हैं,भीतर से,
दुखी, बाहर से.

मैं, पिता और ये अटूट बंधन,
हँसता, इठलाता ये जीवन.


Thursday, December 10, 2009

मजहब क्या है?



 मजहब क्या है?


मज़े से,
पापों को करते जाना 
फिर,
गंगा-स्नान कर उन्हें
धो डालना,
या
मक्का यात्रा कर,
पिचाश की शिला को,
पत्थरो से पीटना?
या फिर,
जब पाप फिर भी न मिटे तो,
दूसरों पे इन्हे थोप कर,
उन्हें जिंदा जलाना,
मारना,
किसी की इज्जत लूटना.
इंसान का इंसान को काटना ही
मजहब है?


मजहब क्या है?
इंसान को इंसान से बांटने का तरीका,
या...इससे भी बदतर कुछ और?

Tuesday, December 1, 2009

सच

सच कहती हूँ,
मैं खफा नहीं,
न ही बेवफा!

तुम,
नींद, दिन, रात
सब फना कर,
मेरे हो गये.

मैं,
तुम्हारी थी,
तुम्हारे हर पड़ाव पर,
साथ निभाने.
मंजिल और करीब लाने.

तुमने,
बढ़ना छोड़ दिया,
चलना छोड़ दिया.
ये कैसे बर्दाश्त करती!!

तुम्हारी उन्नति के लिए,
अथाह तन्हाई सहती हूँ.
बेवफा नहीं,
दुनिया की नज़रों में,
फिर भी बेवफा बनती हूँ.
 मेरे प्यार को,
इससे बड़ा सबूत क्या दूँ?
काश! तुम समझो........सच क्या है.