Wednesday, September 27, 2023

Papa's Letters to Shaurya #SixthLetter


मैं अपने एक मित्र से पूछता हूं "क्या बड़ा होकर शौर्य इन पत्रों को पढ़ेगा? पढेगा तो क्या रिएक्ट करेगा?"


"अरे! वह बड़ा खुश होगा। तुमने बहुत सारी अच्छी बातें उसे समझाने की कोशिश की है।"

मैं मुस्कुराता हूं। उन्हें कितनी भारी पड़ी है ज्ञान से, ढेर सारी किताबों से, शक्यमुनि से लेकर मंडेला तक के उदाहरण से। नोबेल शांति पुरस्कार सम्मानित हर व्यक्ति एक नया उदाहरण रख देता है। फिर भी क्या बदल गए लोग?
अहिंसा! अहिंसा! अहिंसा! समझाते समझाते 1915 से 1947 तक गांधी बत्तीस साल निकल देते हैं और अंत में हिंसा के शिकार होते हैं!

सोचते सोचते मैं अखबार पढ़ने लगता हूं और अखबार में नकारात्मक खबरें पढ़ते-पढ़ते मुझे लगने लगा है कि मनुष्य हिंसा के लिए ही बना है, हिंसा उसका मूल स्वभाव है! जो सीख वो तो महज किताबी ज्ञान है।

लेकिन मेरे कहे को खारिज करने जेहन में कई हजार उदाहरण खड़े हो जाते हैं! मानवता के उदाहरण, उम्मीद के उदाहरण... महज मंडेला ही प्रताड़ित करने वालों को माफ करते दिखते हैं और मानवता की उम्मीद में आंखों में आंसू ले आते हैं।

महज बुद्ध, महावीर ही खड़े होकर 2600 साल पहले Indian Plains (गंगा का मैदानी क्षेत्र) की तस्वीर बदल देते हैं। गांधी सही कहते थे हिंसा कायर है, अहिंसा के लिए मुझे एक व्यक्ति काफी है। लौ की तरह!

सती प्रथा खत्म करते राजा राममोहन राय है, लॉर्ड बेंटिक, दास प्रथा खत्म करते अब्राहम लिंकन, बराबरी का हक दिलाती संविधान सभा, छुआछूत मिटाते अंबेडकर, रंगभेद से लड़ते मार्टिन लूथर किंग जूनियर किसी लौ की तरह दिखते हैं।

पी. साईंनाथ को सुन रहा हूं। वह कहते हैं "I get very offended when people make list of freedom fighters and do not include Baba Saheb Ambedkar. As a freedom fighter he launched the greatest battle on the face of the Earth for human dignity (fight against untouchability). That's freedom (struggle). Justice for all, social, political, economic. That's freedom (struggle). Directive principles of State policy talk about education, nutrition to children. That's freedom (struggle)." [मुझे बहुत दुख होता है जब लोग स्वतंत्रता सेनानियों की सूची बनाते हैं और उसमें बाबा साहब अंबेडकर को शामिल नहीं करते। एक स्वतंत्रता सेनानी के रूप में उन्होंने मानवीय गरिमा (छुआछूत के खिलाफ लड़ाई) के लिए पृथ्वी पर सबसे बड़ी लड़ाई शुरू की। यही आज़ादी (के लिए संघर्ष) है। सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक सभी के लिए न्याय। यही आज़ादी (के लिए संघर्ष) है. राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत बच्चों को शिक्षा, पोषण की बात करते हैं। यही (आज़ादी के लिए संघर्ष) है।]

बाबा अंबेडकर के सारे संघर्ष अहिंसक थे। नीतिगत, कानूनी और नैतिक... और साथ ही 2000 साल के भारतीय इतिहास में में सबसे असरदार और प्रभावी भी!

मानव सभ्यता में वे आंदोलन ही तो महान है जो Human Dignity (मानवीय गरिमा) और Equality (समानता) के लिए लड़े गए हों। इसलिए भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन भी, क्योंकि वह एक सामाजिक सुधार आंदोलन भी था।

हजारों उदाहरणों को पढ़ने के बाद तुम भी इस नतीजे पर पहुंचोगे की मनुष्य प्रेम और समरूपता के लिए बना है। प्रेम और महज प्रेम! अहिंसा का मौलिक भाव प्रेम है। मैं भी इसी नए नतीजे पर पहुंचा हूं। बस हिंसा के उदाहरण हमेशा हमें ज्यादा दिखलाए जाते हैं, अखबारों में ज्यादा आते हैं।

यह 2023 है भारतीय पत्रिका के प्रथम पुरुष राजा राममोहन राय ने 200 वर्ष पहले 1822 में मिलात-उल-अखबार निकाल भारतीय पत्रिका को सही अर्थों में प्रारंभ किया था। किसी अन्य पत्र में उनके बारे में भी...

तुम्हारे पापा

Tuesday, September 26, 2023

शौर्य गाथा 78

 भाईसाहब की मम्मा की तबियत ठीक नहीं है, वो 'कुछ भी हो जाये, मुझे मत जगाना' कह बैडरूम का दरवाजा बंद कर सोने चली गई है। पापा 'भूकंप आया, भागो! भागो!' कहकर जगाना चाहते हैं, पर बेचारी की तबियत का हाल देख 'ओके' कह देते हैं। 

अब भाईसाहब और पापा अकेले हैं।  भाईसाहब टीवी लगाने की जिद करते हैं पापा थोड़ी देर के लिए लगा देते हैं, साथ में दूध पिलाना शुरू करते हैं।  भाईसाहब का हाथ पड़ता है और आधा दूध बिखर जाता है। "पापा सोल्ली" भाईसाहब बड़े क्यूटली कहते हैं, पापा मुस्कुराते हैं। 

अब भाईसाहब टीवी देख रहे हैं और पापा दूध साफ कर रहे हैं। 

कुछ देर बाद पापा बहाने से टीवी बंद कर इन्हें दूसरे रूम में ले जाते हैं।  इनका छोटा सामान जैसे मौजे, नीकैप, टाई एक बास्केट में रखे हुए हैं।  वो बास्केट इनके हाथ लग जाती है। 

भाईसाहब एक एककर सारा सामान बेडपर बिखरा देते हैं। इन्होंने मौजे पहन लिए हैं और हाथ में भी मौजे ही पहने जा रहे हैं कि  यकायक से चिल्लाते हैं  'पापा मेरे मौजे उतारो। ' पापा मौजे निकालते हैं और ये तेजी से बेड के नीचे भागते हैं। "पापा मैंने पुट्टी कर ली।" शुक्र है भाईसाहब ने डायपर पहना हुआ है, नहीं तो... 

पापा क्लीन करा कर बेड पर लाये हैं और भाईसाहब फिर मौजों से खेलने में व्यस्त हो गए हैं। 

पापा लाइट बंद करते हैं , 'आओ तुम्हें चाँद पर ले जाएँ ' गाना लगाते हैं , भाईसाहब को थोड़ा डांटकर 'सो जाओ, सो जाओ...' बोलते हैं लेकिन भाईसाहब "नहीं पापा " कह खेलने में व्यस्त हैं। 

पापा घड़ी देखते हैं, ग्यारह बज गए है।  तभी बैडरूम का गेट खुलता है और मम्मा निकलकर कहती है "अरे जबतक माहौल नहीं बनाओगे तबतक ये कहाँ सोयेंगे। ऐसे तो दो बजा देंगे ये। " मम्मा एक झपकी पूरी करने के बाद उठ गई है। 

पापा माहौल नहीं बना रहे थे तो क्या तम्बूरा बजा रहे थे? हुंह!

पापा भाईसाहब को उठाकर बैडरूम ले जाते हैं , उन्होंने हाथ-पांवों दोनों में ही मौजे पहन रखे हैं!

"शौर्य सो जाओ चुपचाप, बाहर हाथी  आ गया है, वो आ जायेगा...  सो जाओ..." मम्मा थोड़ा डांटकर बोलती है। 

भाईसाहब मम्मा से चिपककर दस मिनट में सो जाते हैं! पापा कभी भाईसाहब का चेहरा देख रहे हैं, कभी मम्मा का।  


Saturday, September 23, 2023

शौर्य गाथा 76

 भाईसाहब पापा से बोलते हैं "पापा, पालवती गालडन तलें?" पापा व्यस्त हैं, सुन नहीं पाते हैं।

भाईसाहब पास आते हैं, पापा को झकझोरते हैं "पापा तलो..."
"कहां चलना है शौर्य?"
"पापा, पालवती गालडन तलें, पापा।" भाईसाहब रिपीट करते हैं।
"ओके" पापा बोलते हैं और भाईसाहब आश्वस्त हो जाते हैं।
दस मिनट बाद भाईसाहब पापा के पास फिर आते हैं "पापा तलो।"
पापा सुनते नहीं हैं। भाईसाहब और पास आते हैं। शायद अब भाईसाहब गुस्सा हो गए हैं। पापा का हाथ पकड़ते हैं और कहते हैं "पापा, मैं आपतो डांट दूंगा।"
बेचारे पापा डर गए हैं, अपना काम छोड़ कर भाईसाहब को लेकर मम्मा के साथ गार्डन जा रहे हैं।

Wednesday, September 20, 2023

Papa's Letters to Shaurya #FifthLetter


 तुम मोशन सिकनेस की वजह से वॉमिट किए जा रहे हो और वो तुम्हें गोद में बिठाए हुए है। वो तुम्हारी वॉमिट से पूरा भीग गई हैं। खुद को पेपर नैपकिन से क्लीन करने की कोशिश करती है, लेकिन कितना ही कर पाती है! कपड़े चेंज करने के लिए कोई ढंग की जगह नहीं है । पूरे डेढ़ घंटे तक ऐसे ही गीली और बदबू सहती बैठी रहती है। मुझे लगने लगा है कि माएं इस ग्रह से नहीं हैं, कहीं और से आई हैं। इतना निश्छल प्रेम! संतान के लिए इतना सब कुछ..!

ऐसे ही मैं बोर्डिंग में था और तुम्हारी दादी बिना गैप किए हर इतवार मिलने आती थी। पूरे रास्ते उल्टी करते हुए! वो आती थी और खुद से खाना खिलाकर ही चैन लेती थी।

अधिकतर भारतीय अस्पताल पिता को डिलीवरी के वक्त लेबर रूम में नहीं आने देते हैं। मुझे भी नहीं जाने दिया गया था। किंतु तुम्हारी मां ने किस पीड़ा का अनुभव किया होगा उसकी एक झलक मुझे तब अनुभव हुई जब रूम में शिफ्ट होते-होते स्ट्रेचर से खड़ी हुई और वह भरभराकर के गिर गई! विज्ञान कहता है कि लेबर पेन किसी हड्डी टूटने से भी कई गुना ज्यादा दर्दनाक होता है।

मांओं का तप, त्याग, ममत्व कई लोगों ने लिखा है किंतु जितना भी लिखा जाए मुझे हमेशा कम लगता है। वे अमेजिंग हैं। एक लड़की मां बनते ही पता नहीं कैसे, कहां से अपार शक्ति और समझदारी से भर जाती है!

मैं तुम्हारी मां को तुम्हारा ख्याल रखते देखता हूं और सोचता रहता हूं कि ऑफिस और उसके बाद भी इतनी ऊर्जा के साथ वो सारा कैसे कर लेती है!

किसी ने लिखा था 'स्त्री काम से लौटने के बाद भी काम पर ही लौटती है।' मैं नहीं चाहता कि तुम्हारी मां के साथ ऐसा हो। भरसक कोशिश करता हूं ऐसा नहीं हो। लेकिन मां के रूप में जब वह वापस लौटती है तो वह थकती नहीं है। शायद मां होना 'काम' होना नहीं होता है!

मैं तुम्हें गोद में लिए बार-बार वॉमिट से सरोबार तुम्हारी मां को देख रहा था। तुम्हारे प्रति उसका प्रेम महसूस कर रहा था। अपनी मां को भी याद कर रहा था। घर से छूटते हुए उनका चेहरा मेरी आंखों में अक्सर रह जाता है। बहुत कुछ है जो मैं जता नहीं पाता। मुझे कुछ कुछ पुरुष बनाने में शायद समाज सफल तो रहा ही है!

मर्द इमोशंस जाहिर नहीं करते। मर्द रोते नहीं हैं। मर्द परिवार का बोझ लिए ही चलते हैं! उफ !जाने क्या-क्या। उफ! ब्लडी सोसायटी!!

यह मेरा लिखा दुनिया के तमाम पिताओं के लिए, इस उम्मीद के साथ की वे थोड़े और अधिक मां होते जाएंगे। मुझे लगने लगा है कि दुनिया स्त्री से कोमलता और मां से प्रेम लेकर ही बेहतर हो सकती है!


Saturday, September 16, 2023

Days of Innocence #p6


भाईसाहब कुछ अच्छा करते हैं तो मम्मा 'शाबाश' बोलकर पीठ ठोक देती है।
एक बार भाईसाहब आए और पीठ दिखाकर कहते हैं "पापा मुझे छाबास बोलो।"
पापा पीठ ठोककर शाबाश बोलते हैं, फिर पूछते हैं "आपने क्या अच्छा किया?"
"पापा, मैंने वॉशरूम में सुसु किया।"
पापा भोली सी सूरत को चुम्मी दे देते हैं।

Sunday, September 10, 2023

Days of Innocence #p5

 

भाईसाहब दूध नहीं पी रहे हैं। मम्मा बोलती है "पापा से कंपटीशन है, चलो जल्दी पियो देखते हैं कौन फर्स्ट आता है।"
भाईसाहब गट गटकर सारा दूध खत्म कर देते हैं।
अरे वाह! आप तो फर्स्ट आ गए! पापा मम्मा बोलते हैं।
भाईसाहब खुश हो गए हैं, हहाहा.... हंसने लगते हैं।
"पापा, तलो आप भी पी लो।" भाईसाहब पापा का हाथ पकड़ गिलास मुंह की तरफ करते हैं।
पापा भी अपना दूध खत्म कर देते हैं। भाईसाहब पूछते हैं "पापा, पी लिया?"
पापा 'हां' में जवाब देते हैं और भाईसाहब चहकते हुए मम्मा से कहते हैं "मम्मा देखो पापा भी फस्त आ गए।"
पापा सोचते है अगर दुनिया भाईसाहब के हिसाब से चलने लगे तो कितनी सुंदर न हो जाए! न को आगे, न कोई पीछे। सबके सब फर्स्ट!

Friday, September 8, 2023

Papa's Letters to Shaurya. #FourthLetter



 जन्माष्टमी पर तुम्हें कृष्ण बनाते हुए मैं सोच रहा हूँ कि अगर ईश्वर से मैं तुम्हारे लिए और तुम्हारे जैसे नन्हे-मुन्ने कृष्ण-राधाओं के लिए प्रार्थना करूँगा तो क्या करूँगा? पेशे से शिक्षक लेखिका बाबुषा ने अपने छात्रों के लिए एक प्रार्थना की है-

"ऐसी शिक्षा-प्रणाली का अंत हो, जहाँ आंतरिक जीवन-मूल्यों के ऊपर महत्वाकांक्षी परियोजनाओं और गलाकाट प्रतिस्पर्धा पर केंद्रित पाठ्यक्रम हो। 

तरह तरह के रंग बिरंगे उन ईश्वरों की विदाई हो, जिनका अस्तित्व जब-तब संकटग्रस्त होता है। 

मनुष्यों के सर पर पांव रख पताका फहराने वाली श्रेष्ट-बोध से ग्रसित प्राचीन संस्कृतियां विलीन हों। 

आत्म-विकास की प्रक्रिया में अन्य को हेय मानने वाले साधक-योगी सेवानिवृत्त हो। 

व्यव्हार में छद्म का नाश हो। 

शक्ति की लोलुपता का लोप हो। 

विचारों का पाखंड खंड-खंड हो। 

पृथ्वी एक बड़े घास मैदान में बदल जाए। 

बच्चों का राज हो। खेल हों, धुन हो, झगडे हों, कट्टिसे हों, 

सीखें हों, झप्पी हो।  नदियां हों, पहाड़ हों, परिंदे हों। 


महज नर-मादा न हों। 

प्रेम में मुक्त स्त्री हो।  प्रेम में युक्त पुरुष हो। 


विकास की सभ्यता नहीं, सभ्यता का विकास हो। 

पुलिस फौज की आवश्यकता न हो, सरहद न हो। 

प्रकृति की सत्ता हो।  

जीवन खोज हो। "


कितनी सुन्दर प्रार्थना है। तुम्हारे लिए भी शायद यही प्रार्थना करता या शायद इससे आगे उन मानवमूल्यों की भी प्रार्थना करता जो स्वतंत्रता आंदोलन की आत्मा थे। वे मूल्य जो नेहरू जी ने संविधान बनाने से पूर्व उद्देशिका में पेश किये थे जो बाद में संविधान की प्रस्तावना में सम्मिलित हुए और संविधान की आधारशिला बने। 

"सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय का उद्बोधन, 

विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतंत्रता का उद्बोधन,

प्रतिष्ठा और अवसर की समता का मूल्य, बंधुत्व का उद्बोधन,

और उससे ऊपर पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र का उद्बोधन। "

यही तो वे मूल्य हैं जो मनुष्य को मनुष्यतर बनाते हैं।  मानव को मानव मात्र से प्रेम करना सिखाते हैं। जाति-धर्म से परे, अमीरी-गरीबी से परे, किसी भी विषमता से परे, हमें मात्र मानव बने रहना सिखाते हैं। मानव मात्र के लिए समस्त न्यायों की बात करते हैं। बाबुषा की प्रार्थना और प्रस्तावना के उद्बोधन कितने मिलते जुलते हैं न! 

अगर इन्हीं मानवमूल्यों के आधार पर किसी राज्य का विकास हो पाय तो क्या वो आदर्श राज्य न होगा? होगा, आदर्श नागरिकों का आदर्श राज्य! 

मुझे नहीं पता कि आदर्श राज्य का स्वप्न पूर्ण होगा या नहीं किन्तु मैं कोशिश करूँगा की तुम्हें एक बेहतर नागरिक जरूर बना पाऊं और चाहूंगा की समस्त नन्हें मुन्ने राधा-कृष्ण भी बेहतर मनुष्य बनें और मिलकर एक बेहतर भविष्य गढ़ पाएं।  

Days of Innocence #p4


भाईसाहब को मम्मा स्टोरी सुना रही है "एक बार भालू की कुल्हाड़ी टूट गई, वो रो रहा था। बंदर आया, बोला कि कभी भी रोते नहीं हैं सॉल्यूशन ढूंढते हैं। और उसने मदद कर के कुल्हाड़ी ठीक कर दी। भालू खुश हो गया।"
भाईसाहब पापा के पास आते हैं। उंगली दिखा दिखाकर समझाते हुए कहते हैं "पापा तभी भी लोना नहीं। लोना नहीं है। छोलूशन ढूंढते है छोलूशन।"

Tuesday, September 5, 2023

Papa's Letters to Shaurya. #ThirdLetter

 यह पत्र तुम्हें मैं इसलिए लिख रहा हूँ कि तुम समझ पाओ कि शिक्षक कौन है और वो जीवन में महत्वपूर्ण क्यों होता है. मैंने पहले पत्र में लिखा कि पिताओं के द्वारा लिखे खतों में मैंने अब्राहम लिंकन द्वारा शिक्षक को लिखा पत्र और नेहरू जी द्वारा इंदिरा गाँधी को लिखे पत्र प्रसिद्द हैं. मैं आज अब्राहम लिंकन द्वारा अपने पुत्र के शिक्षक को लिखा पत्र सुनाता हूँ. जब तुम इसे समझोगे तो समझ जाओगे कि लगभग डेढ़ सौ साल बाद भी यह पत्र क्यों प्रासंगिक है और क्यों माँ को बच्चों की प्रथम शिक्षक कहलाती है. 


प्रिय शिक्षक,

मेरा बेटा आज से स्कूल की शुरुआत कर रहा है. कुछ समय तक उसके लिए यह सब अजीब और नया होने वाला है और मेरी इच्छा है कि आप उसके साथ बहुत नरमी से पेश आएं. यह एक साहसिक कार्य है. मुमकिन है यह एक दिन उसे महाद्वीपों के पार ले जाए. जीवन के वह सारे रोमांच, जिसमें शायद युद्ध, त्रासदी और दुख भी शामिल हों. इस जीवन को जीने के लिए उसे विश्वास, प्रेम और साहस की जरूरत होगी.

तो प्रिय शिक्षक, क्या आप उसका हाथ पकड़कर उसे वह सब सिखाएंगे, जो उसे जानना होगा, जो उसे सीखना होगा. लेकिन थोड़ा नर्मी से, मुहब्‍बत से. अगर आप यह कर सकते हैं तो. उसे सिखाएं कि हर दुश्मन के साथ एक दोस्त भी होता है. उसे सीखना होगा कि संसार में सभी मनुष्य न्याय के साथ  नहीं होते, कि सभी मनुष्य सच्चे नहीं होते. लेकिन उसे यह भी सिखाएं कि जहां दुनिया में बुरे लोग हैं, वहीं एक अच्‍छा हीरो भी होता है. जहां कुटिल नेता हैं, वहीं एक सच्‍चा समर्पित लीडर भी होता है.  

यदि आप कर सकते हैं तो उसे सिखाएं कि अपनी मेहनत से कमाए गए 10 सेंट का मूल्य मिले बेगार में मिले एक डॉलर से कहीं ज्‍यादा है. उसे सिखाएं कि स्कूल में चीटिंग करके पास होने से कहीं ज्‍यादा सम्‍माननीय है फेल हो जाना. उसे सिखाएं कि कैसे शालीनता से हार को स्‍वीकार करना है और जब जीत हासिल हो तो कैसे उसका आनंद लेना है.  

उसे सिखाएं मनुष्‍यों के साथ नर्मी और कोमलता से पेश आना. उसे कठोर लोगों के साथ थोड़ा सख्‍त होना भी सिखाएं. यदि आप कर सकते हैं तो उसे ईर्ष्या से दूर रखें. उसे शांत, सरल और गहरी हँसी का रहस्य सिखाएं. यदि आप कर सकते हैं तो उसे सिखाएं कि जब वह दुख में हो कैसे मुस्‍कुराए.  उसे सिखाएं कि आंसुओं में कोई शर्म की बात नहीं है. उसे सिखाएं कि असफलता में भी गौरव और सफलता में भी निराशा हो सकती है. उसे पागल सनकियों का उपहास करना सिखाएं.

यदि आप कर सकते हैं तो बताएं कि संसार की किताबों में कितने अनंत रहस्‍य छिपे हैं. लेकिन साथ ही उसे आकाश में पक्षियों, धूप में मधुमक्खियों और हरी पहाड़ी पर फूलों के रहस्यों के बारे में सोचने-विचारने का भी वक्‍त दें. उसे अपने विचारों में विश्वास करना सिखाएं, भले ही हर कोई उसे गलत क्‍यों न कह रहा हो.

मेरे बेटे को यह शक्ति देने की कोशिश करें कि जब सब लोग एक दिशा में जा रहे हों तो वह भीड़ के पीछे न चले. उसे सिखाएं कि उसे हरेक की बात सुननी चाहिए. लेकिन साथ ही उसे यह भी सिखाएं कि वह जो कुछ भी सुन रहा है, पहले उसे सत्‍यता की छलनी से छाने और फिर जो अच्‍छा लगे, उसे  ग्रहण करे.

उसे अपनी प्रतिभा और अपने दिमाग को सबसे ऊंचे दामों पर बेचना सिखाएं लेकिन यह भी सिखाएं कि वो कभी किसी भी कीमत पर अपने दिल और अपनी आत्मा का सौदा न करे. उसे अधीर हो सकने का साहस दें, लेकिन साथ ही उसे धैर्यवान होने की सीख भी दें. उसे सिखाएं कि हमेशा अपनी आत्‍मा की उदात्‍तता और गहराई में यकीन करे क्‍योंकि तभी वह मनुष्‍यता और ईश्‍वर की उदात्‍तता में भी यकीन कर पाएगा.  

यह मेरा आदेश है प्रिय शिक्षक, लेकिन देखें कि आप सबसे बेहतर क्या कर सकते हैं. वह इतना प्‍यारा छोटा बच्‍चा है और वह मेरा बेटा है.   

आपका,

अब्राहम लिंकन


ये जो भी पत्र में लिखा हुआ है तुम बड़े होते हुए पाओगे कि यही  मानवमूल्य हैं जिनकी समाज को जरुरत है. यही मानवमूल्य जो भी शिक्षक तुम्हें सीखा पा रहा है वही तुम्हारा असली शिक्षक है. प्रत्येक माँ अपनी संतान को उच्च मूल्यों के साथ, अच्छी नैतिकता के साथ बड़ा करती है. वो तमाम कोशिशें करती है जिससे उसकी संतान एक मनुष्यतर मनुष्य बन पाए. इसलिए ही तो माँ को प्रथम शिक्षक कहा जाता है! तुम बड़े होते होते समझोगे कि तुम्हारी मम्मा प्रतिदिन कितने प्रयास करती है. मैं कभी कभी कमजोर पड़ जाऊं लेकिन वो तुम्हारे लिए जरूरतन कठोर होने से भी नहीं चूकती 

आगे किसी पत्र में बताऊंगा कि महात्मा गाँधी का स्वतंत्रता आंदोलन कैसे सिर्फ स्वतंत्रता नहीं बल्कि समाजिक विकास और  भारत के लोगों में उच्च मानव मूल्यों के प्रसार का आंदोलन भी था और उसकी छवि संविधान  विशेषत: संविधान की प्रस्तावना और मौलिक अधिकारों में कैसे दिखती है और ये भी कि अब्राहम लिंकन और महात्मा गाँधी अपनी मृत्यु (हत्या) के इतने वर्षों बाद क्यों प्रासंगिक हैं. 

(अब्राहम लिंकन के पत्र का कविता के रूप में भवानुवाद मधु पंत ने किया है. उसकी लिंक :  http://www.sadaknama.com/2023/09/blog-post.html )

Friday, September 1, 2023

अब्राहम लिंकन का पत्र... अपने पुत्र के शिक्षक के नाम

हे शिक्षक!
मैं जानता हूं और मानता हूं
कि न तो हर आदमी सही होता है
और न ही होता है सच्चा;
किंतु तुम्हें सिखाना होगा कि 
कौन बुरा है और कौन अच्छा 

दुष्ट व्यक्तियों के साथ-साथ आदर्श प्रणेता भी होते हैं,
स्वार्थी राजनीतिज्ञों के साथ-साथ समर्पित नेता भी होते हैं 
दुश्मनों के साथ-साथ मित्र भी होते हैं
हर विरूपता के साथ सुंदर चित्र भी होते हैं

समय भले ही लग जाए, पर
यदि सिखा सको तो उसे सिखाना 
कि पाए हुए पांच से अधिक मूल्यवान है - 
स्वयं एक कमाना 

पाई हुई हार को कैसे झेले, उसे यह भी सिखाना 
और साथ ही सिखाना, जीत की ख़ुशियां मनाना।
यदि हो सके तो उसे ईर्ष्या या द्वेष से परे हटाना
और जीवन में छुपी मौन मुस्कान का पाठ पढ़ाना।

जितनी जल्दी हो सके उसे जानने देना 
कि दूसरों को आतंकित करने वाला स्वयं कमज़ोर होता है, 
वह भयभीत व चिंतित है
क्योंकि उसके मन में स्वयं चोर होता है।

उसे दिखा सको तो दिखाना -
किताबों में छिपा खजाना।
और उसे वक़्त देना चिंता करने के लिए
कि आकाश के परे उड़ते पंछियों का आह्लाद
सूर्य के प्रकाश में मधुमक्खियों का निनाद
हरी-भरी पहाड़ियों से झांकते फूलों का संवाद
कितना विलक्षण होता है - अविस्मरणीय, अगाध

उसे यह भी सिखाना -
धोके से सफ़लता पाने से असफ़ल होना सम्माननीय है
और अपने विचारों पर भरोसा रखना अधिक विश्वसनीय है
चाहें अन्य सभी उनको ग़लत ठहराएं 
परंतु स्वयं पर अपनी आस्था बनी रहे, यह विचारणीय है।

उसे यह भी सिखाना कि वह सदय का साथ सदय हो
किंतु कठोर के साथ हो कठोर।
और लकीर का फ़कीर बनकर
उस भीड़ के पीछे न भागे जो करती हो - निरर्थक शोर।

उसे सिखाना
कि वह सबकी सुनते हुए अपने मन की भी सुन सके,
हर तथ्य को सत्य की कसौटी पर कसकर गुन सके।
यदि सिखा सको तो सिखाना कि वह दुख में भी मुस्कुरा सके,
घनी वेदना से आहत हो, पर ख़ुशी के गीत गा सके। 

उसे यह भी सिखाना कि आंसू बहते हों तो उन्हें बहने दे,
इसमें कोई शर्म नहीं, कोई कुछ भी कहता हो, कहने दे।

उसे सिखाना -
कि वह सनकियों को कनखियों से हंसकर टाल सके
पर अत्यंत मृदुभाषी से बचने का खयाल रखे।
वह अपने बाहुबल व बुद्धिबल का अधिकतम मोल पहचान पाए,
परंतु अपने ह्र्दय व आत्मा की बोली न लगवाए।

वह भीड़ के शोर में भी अपने कान बंद कर सके
और स्वत: की अंतरात्मा की सही आवाज़ सुन सके।
सच के लिए लड़ सके और सच के लिए अड़ सके।

उसे सहानुभूति से समझाना, 
पर प्यार के अतिरेक से मत बहलाना।
क्योंकि तप-तप कर ही लोहा खरा बनता है,
ताप पाकर ही सोना निखरता है।

उसे साहस देना ताकि वक़्त पड़ने पर अधीर बने
सहनशील बनाना ताकि वह वीर बने।

उसे सिखाना कि वह स्वयं पर असीम विश्वास करे,
ताकि समस्त मानव जाति पर भरोसा व आस धरे।

यह एक बड़ा सा लंबा-चौड़ा अनुरोध है,
पर तुम कर सकते हो, क्या इसका तुम्हें बोध है?
मेरे और तुम्हारे... दोनों के साथ उसका रिश्ता है;
सच मानो, मेरा बेटा एक प्यारा-सा नन्हा सा फ़रिश्ता है।

(हिंदी भावानुवाद - मधु पंत)