Tuesday, August 12, 2014

Robin Williams




रौशनी रोती है
अँधेरा न मिला उसे मिटाने.
कलम चुभती रही
मुझे ख़याल न मिले.
दम्भ बैचेन है
कहीं किसी पे अकड़ निकालने,
इंसान खुरापात करने सड़क पे
आधा-तिरछा चल रहा है.

उफनती नदी में गिर जाएगी दुनिया एक दिन
किताबों के होंगे क़त्ल
संभावनाएं सारी रो पड़ेगी
आख़िरी कवि कर लेगा आत्महत्या.
विदूषक तुम बताओ क्या करोगे?
कॉफ़ी में मिला ज़हर पी लेना
मुखौटा हटा दुनिया को दिखाना
असली चेहरा-
तुड़ा-मुड़ा चेहरा, जिसपे आंसुओं के मोटे धब्बे हैं.

मैं आदम के आखिरी वंशज के मरने का इंतज़ार कर रहा हूँ,
तब तक मोड़ के भिखारी को
एक रुपया देता रहूंगा.

घास का स्केच


तुम हरी घास हो
जिसपे बैठ दो सुकून के पल बिताना चाहता हूँ.
शबनम की महक महसूस करता हूँ.
एक दौर से मैंने कोई पेंटिंग नहीं की
तुम्हें ही रंगता रहा मैं.
मैं भिखारी नहीं जो रिश्ते मांगता,
आज नया स्केच बनाया है
जला के तुम्हें.
'भारत भवन' में लोगो ने कहा
'अब तक का सबसे खूबसूरत काम.'
तुम्हारे खून के धब्बे किसी को नहीं दिखे
न मेरा ताप!

खीझ जाता हूँ कि
इस दौर के लोगों को कविता समझ नहीं आती.
मेरी तो बिलकुल न आएगी.

पोपले मुंह मैं बैठना चाहता हूँ,
शबनम कि महक लेना चाहता हूँ.
ये घास तू भी तो पीली पड़ गई है.