रौशनी रोती है
अँधेरा न मिला उसे मिटाने.
कलम चुभती रही
मुझे ख़याल न मिले.
दम्भ बैचेन है
कहीं किसी पे अकड़ निकालने,
इंसान खुरापात करने सड़क पे
आधा-तिरछा चल रहा है.
उफनती नदी में गिर जाएगी दुनिया एक दिन
किताबों के होंगे क़त्ल
संभावनाएं सारी रो पड़ेगी
आख़िरी कवि कर लेगा आत्महत्या.
विदूषक तुम बताओ क्या करोगे?
कॉफ़ी में मिला ज़हर पी लेना
मुखौटा हटा दुनिया को दिखाना
असली चेहरा-
तुड़ा-मुड़ा चेहरा, जिसपे आंसुओं के मोटे धब्बे हैं.
मैं आदम के आखिरी वंशज के मरने का इंतज़ार कर रहा हूँ,
तब तक मोड़ के भिखारी को
एक रुपया देता रहूंगा.