Tuesday, May 18, 2021

जंगल की कहानियां : #buxwahaforestmovement

 #savebuxwahaforest #buxwahaforestmovement

"क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।
मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।"
यही वो पंक्तियां हैं जो 1973 के चिपको आंदोलन में व्यापक रूप से बोली जाती हैं, आंदोलन की घोष वाक्य थीं।
लेकिन 1972-73 में जंगल बचाने और भी नई बातें हुईं प्रोजेक्ट टाइगर और वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम।
ये अधिनियम कैसे बने इसकी भी एक कहानी है, वो कभी बाद में। लेकिन कठोर कानूनों ने राष्ट्रीय उद्यानों और वन्य प्राणी अभ्यारणों को लगभग अनटचेबल बना दिया। मतलब ये जंगल लगभग पूर्णत: सुरक्षित हो गए। लेकिन ये प्रोटेक्टेड एरिया कुल वन क्षेत्र का मात्र 5% ही हैं। उसपर भी इनकी भूमि ग्रेटर नेशनल इंटरेस्ट में अन्य कामों के उपयोग में लाई जा सकती है। जैसे कि पन्ना टाइगर रिजर्व की 10% भूमि केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के लिए लिया गया है, जिसमें 46 लाख पेड़ों की आहुति चढ़ेगी।^
दो गर्मियों में सूखने वाली नदियों (Non perennial rivers) का लिंक होना बुंदेलखंड का हित कितना कर पाएगा और लिंक प्रोजेक्ट का जलीय जीवों (Aquatic Life) और पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) पर क्या असर पड़ेगा ये तो बाद में पता चलेगा किंतु अभी ये तय है कि लाखों पेड़ों की लाशें तो गिरेगी हीं।
वनों के पेड़ों को काटना/जलाना वनोन्मूलन कहलाता है और वनोन्मूलन के क्या नुकसान हैं ये एक 7वीं का बच्चा भी बता सकता है। यहां नोट करूं तो:
1. विलोपन (extinction of species)
2. जलवायु में परिवर्तन
3. मरुस्थलीकरण (desertification)
4. स्वदेशी लोगों के विस्थापन
5. वनोन्मूलन जलवायु (climate) और भूगोलमें परिवर्तन ला रहा है।
6. वनोन्मूलन ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देती है और हरित गृह प्रभाव Green House Effect को बढ़ावा देने के लिए एक मुख्य कारक है।
7. वनोन्मूलन कुल एंथ्रोतपोजेनिक (anthropogenic)कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के एक तिहाई के लिए उत्तरदायी है।
8. जल चक्र भी वनोन्मूलन से प्रभावित होता है। पेड़ अपनी जड़ों के माध्यम से भूजल अवशोषित करते हैं और वातावरण में मुक्त कर देते हैं। जब जंगल का एक हिस्सा निकाल दिया जाता है तो पेड़ इस पानी को वाष्पीकृत नहीं करते और इसके परिणाम स्वरुप वातावरण शुष्क हो जाता है।
9. वनोन्मूलन आमतौर पर मृदा अपरदन (erosion) की दर को बढा देती है, क्योंकि प्रवाह (runoff) की मात्रा बढ़ जाती है और पेडों के व्यर्थ पदार्थों से मृदा का संरक्षण कम हो जाता है।
10. वनोन्मूलन अनुत्क्रमणीय रूप से आनुवंशिक भिन्नताओं (जैसे फसल की प्रतिरोधी क्षमता) को नष्ट कर देती है।
वनोन्मूलन 1972 के कठोर कानूनों के बाद भी रुका नहीं है यह हम पन्ना टाइगर रिजर्व और बक्सवाहा फॉरेस्ट की स्थिति से देख सकते हैं।
लेकिन क्या इसके खिलाफ़ 1973 के बाद आवाजें नहीं उठीं? बिलकुल उठीं। जैसे, देश के सबसे सुंदर जंगल को बचाने वाला 1973 का साइलेंट वैली मूवमेंट, कर्नाटक का एप्पिको मूवमेंट 1983, जंगल बचाओ आंदोलन 1983, नियमगिरि मूवमेंट 2013 और इनमें सबसे सफलतम साइलेंट वैली प्रोजेक्ट की कहानी:
"साइलेंट घाटी केरला में स्थित है। यह एक विशाल जंगल है जो केरला के पालघाट जिले में स्थित है। इस जंगल में कुंथीपुज्हा नदी मुख्य रूप से बहती है।
1970 में केरला राज्य विद्युत बोर्ड ने इस स्थान पर जल विद्युत् बांध (हाइड्रो इलेक्ट्रिक डैम) बनाने का प्रस्ताव रखा जिससे 8.9 किलोमीटर का क्षेत्र पानी में डूब जाता। योजना आयोग ने इस बांध को बनाने के लिए 25 करोड़ की धनराशि स्वीकृत कर दी।
साइलेंटघाटी आंदोलन की शुरूआत:
जैसे ही बांध बनने की घोषणा हुई लोगों ने उसका विरोध शुरू कर दिया। शांति घाटी (साइलेंट वैली) अपने हरियाली पेड़ पौधों और जंगल के लिए जानी जाती है। यह क्षेत्र जैव विविधता से संपन्न है, इसलिए लोगों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। शांति घाटी में लंबी पूंछ वाले मकाक बंदर भी पाए जाते हैं जिनको दुर्लभ प्रजाति समझा जाता है।
रोमुलस वीटाकर जिन्होंने मद्रास सर्प उद्यान की स्थापना की थी, उन्होंने सबसे पहले बांध योजना का विरोध करना शुरू किया। 1977 में केरला वन रिसर्च संस्थान ने सर्वे करना शुरु किया कि बांध बनने के बाद पर्यावरण को कितना नुकसान होगा।
शांति घाटी को बचाने के लिए “केरला शस्त्र साहित्य परिषद” ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने कई पब्लिक मीटिंग की, इसमें लोगों को बांध बनने के बाद पर्यावरण को होने वाले नुकसान के बारे में विस्तार से जानकारी दी। सुगाथाकुमारी जो केरला की विख्यात कवित्री थी, वह भी इस आंदोलन में जुड़ गई। उन्होंने “शांति घाटी बचाओ” (सेव साइलेंट वैली Save Silent Valley) का नारा दिया। शांति घाटी को बचाने के लिए उन्होंने कई कविताएं भी लिखी जिन्होंने जिन्होंने आंदोलन में लोगो को जागरूक बनाया।
डॉक्टर सलीम अली जो एक प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी थे और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के सदस्य थे उन्होंने इस जलविद्युत बांध परियोजना को बंद करने की अपील की।
डॉ एम एस स्वामीनाथन जो एक जाने-माने कृषि वैज्ञानिक हैं और कृषि विभाग के सचिव थे उन्होंने शांति घाटी को एक आरक्षित पर्यावरण पार्क बनाने की बात कही। उन्होंने कहा कि शांति घाटी के 8.9 किलोमीटर वर्ग क्षेत्र और इससे लगे हुए अमाराबालम (80 वर्ग किमी), अट्टापड्डी (120 वर्ग किमी), जैसे क्षेत्रों को मिलाकर एक प्राकृतिक पार्क बनाने की बात कही।
1982 में एक कमेटी बनाई गई जिसका चेयरमैन एन जी के मेनन को बनाया गया। 1983 में मेनन कमेटी ने अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की। रिपोर्ट को अच्छी तरह पढ़ने के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने शांति घाटी में बनने वाले जल विद्युत बांध परियोजना को बंद करने का आदेश दे दिया। 15 नवंबर 1984 को इसे एक राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दे दिया गया और इसे संरक्षित पार्क बना दिया गया।"*
तो साइलेंट वैली मूवमेंट जीता क्योंकि:
स्थानीय लोगों की जागरूकता, आंदोलन को राष्ट्रीय मंच का मिलना, लोकतांत्रिक सरकार, सतत संघर्ष, आंदोलनकारियों और सरकार के मध्य सफल संवाद, सरकार की अच्छी मंशा
ये सब वहां मौजूद था।
मतलब अगर चिपको आंदोलन और साइलेंट वैली मूवमेंट से समझें तो वन और पर्यावरण बचाने को जो सफल आंदोलन रहे हैं उनमें निम्न मुख्य प्रभावी बातें रही हैं:
1. स्थानीय लोगों की इच्छा.
2. स्थानीय लोगों की जागरूकता.
3. आंदोलन को राष्ट्रीय मंच का मिलना
4. लोकतांत्रिक सरकार.
5. कुशल नेतृत्व.
6. सतत अहिंसक संघर्ष.
7. आंदोलनकारियों और सरकार के मध्य सफल संवाद.
8. सरकार की अच्छी मंशा.
9. जनसंवाद
और to #save_buxwaha_forest हमें इन्हीं चीजों की जरूरत होगी।
(तस्वीरें: बक्सवाहा के हरे-भरे जंगल की, जिसे उजाड़ हीरे निकाले जाएंगे.)