Wednesday, September 18, 2013

'विद्रोही' कवितायेँ


[ उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में जन्मा प्रगतिशील चेतना का यह प्रखर कवि विद्रोही’ नाम से विख्यात है. दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्रों के बीच उनकी कविताएँ ख़ासी लोकप्रिय रही हैं. वाम आंदोलन से जुड़ने की ख़्वाहिश और जेएनयू के अंदर के लोकतांत्रिक माहौल ने उन्हें इतना आकृष्ट किया कि वे इसी परिसर के होकर रह गए. उन्होंने इस परिसर में जीवन के 30 से भी अधिक वसंत गुज़ारे हैं. शरीर से कमज़ोर लेकिन मन से सचेत और मज़बूत इस कवि ने अपनी कविताओं को कभी कागज़ पर नहीं उतारा। उनकी कविताओं में कई तो अंधेरे में और राम की शक्ति पूजा की तरह की लंबी कविताएँ हैं. उन्हें अपनी सारी कविताएँ याद है और वे बराबर मौखिक रूप से अपनी कविताओं को छात्रों के बीच सुनाते रहे हैं. ख़ुद को नाज़िम हिकमत, पाब्लो नेरूदा, और कबीर की परंपरा से जोड़ने वाला यह कवि जेएनयू से बाहर की दुनिया के लिए अलक्षित सा रहा है. ]


हमारे खुरदरे पांवो की ठोकर से धसक सकती है ये तुम्हारी ज़मीन, 
हमारे थर्राए हुए हाथों की रगड़ से लहुलुहान हो सकता है ये तुम्हारा कोमल आसमान.
हम अपने खून चुते नाखूनों से चीर देंगे तुम्हारे मखमली गलीचों को ,
और हम जब एक दिन ज़मीन से आसमान तक खड़े कर फाड़ देंगे तुम्हारी मेहराबे,
तब उसमे से ना कोई कश्यप निकलेगा और ना कोई नरसिंह.


---**---


औरतें रोती जाती हैं, मरद मारते जाते हैं,
औरतें रोती हैं, मरद और मारते हैं.
औरतें ख़ूब ज़ोर से रोती हैं
मरद इतनी जोर से मारते हैं कि वे मर जाती हैं.
इतिहास में वह पहली औरत कौन थी जिसे सबसे पहले जलाया गया?
मैं नहीं जानता.
लेकिन जो भी रही हो मेरी माँ रही होगी,
मेरी चिंता यह है कि भविष्य में वह आखिरी स्त्री कौन होगी
जिसे सबसे अंत में जलाया जाएगा?
मैं नहीं जानता
लेकिन जो भी होगी मेरी बेटी होगी
और यह मैं नहीं होने दूँगा.


---**---


मैं किसान हूँ,
आसमान में धान बो रहा हूँ.
कुछ लोग कह रहे हैं
कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता.
मैं कहता हूँ पगले!
अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है
तो आसमान में धान भी जम सकता है.
और अब तो दोनों में से कोई एक होकर रहेगा,
या तो ज़मीन से भगवान उखड़ेगा
या आसमान में धान जमेगा.


Monday, September 9, 2013

UNICEF's award winning advertisements..!! (Awesome must read)







Change the way of thinking.... UNICEF

 1.



 

FIRST 
Fashion Claims more Victims than you think 

Save the Animals



 2.

 

CCA-Unicef Special Mention 
Gender in Education




3. 

 

Special Mention 
Against Corruption




4. 

 

Special Mention 
Road Safety




5. 

 

Special Mention 

Nature is incomplete without Female Gender. Save girl child









6. 

 

Special Mention 
Save Trees




7. 

 

Special Mention 
Road Safety



Sunday, September 1, 2013

बात इतनी सी है बस

बात इतनी सी है बस
कि औरत मरती है सुबह से शाम,
खपती है
चूल्हा-बर्तन से लेकर
सड़क पे ईमानदारी से घूरते हम-आप के 
बीच से गुजरते हुए.
बॉस को अक्सर
ऑफिस की औरतें 
सपने में हमबिस्तर नज़र आती हैं.


सरेआम छेड़ते, 'फील' करते 
चुपचाप लोग.
हर दिन ही कनखियों से  'रेप' करते
लोगो के सामने से हर दिन निकलती है.


बात इतनी सी है बस
कि कोख से कब्र तक
औरत की आत्मा पे
ढेरों घाव होते हैं,
जिन्हें गिना नहीं जा सकता.


बात इतनी सी है बस
बात घावों की है बस
बात औरत की है बस,
जिसे दोयम दर्ज़े का तुम्हारा ईश्वर भी 
बनाकर भूल गया सा लगता है.  

बातें इतनी सी हैं बस,
फिर क्यूँ मैं लिख रहा हूँ कविता
छोटी-छोटी बातों पे. 
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बात इतनी सी है बस
कि इक पौने अठारह साल का लड़का
करता है घिनौने कृत्य,
फिर भी कानून 'दूध पीता अनजान' है!    #Juvenile_Justice

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बात इतनी सी है बस
कि इक बहत्तर साल के देवता से भी
हमारी तेरह साल की बेटियाँ
सुरक्षित नहीं हैं.               #AsaramBapu

बात इतनी सी है बस,
कि हम खुद शैतान हैं
और शैतान को पूजते हैं.