भाईसाहब के हाथ में एक पेन है जिसका ढक्कन (Cap) खोलने के लिए भाईसाहब पापा से कहते हैं 'पापा ये... पापा ये...' कह के उसके ढक्कन को खींच खींच इशारा कर रहे हैं. पापा जानते हैं कि एक बार ढक्कन खुल गया तो सोफा और दीवारों पर 'वर्ल्ड क्लास पेंटिंग' बन जाएंगी, इसलिए झूठ मूठ की पूरी मेहनत लगाते हैं और कहते हैं कि 'खुल नहीं रहा है. ' भाईसाहब मम्मा के पास जाते हैं मम्मा से कहते हैं मम्मा 'पापा थे थुल नहीं लहा... थुल नहीं लहा.' ये थोड़े बड़े वाक्य बोलना भाईसाहब ने अभी अभी सीखा है. मम्मा भी वही झूठमूठ का अभिनय करती हैं. भाईसाहब अब हाथ में पेन लिए मेहनत कर कर रहे हैं ... और थोड़ी देर में ढक्कन खोल लेते हैं. पापा के पास आते हैं खुश होकर बोलते हैं 'हा...हाहा... पापा थोल लिया... तोल लिया.' पापा मोबाइल से चेहरा हटा शाबाश बोल पाएं इसके पहले सोफे पर एक 'कंटेंपरेरी आर्ट' उभर आई है.
मम्मा पापा बेचारे सपाट चेहरा लिए एक दूसरे की शक्ल देख रहे हैं.
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