Thursday, November 17, 2022

शौर्य गाथा : रात साढ़े ग्यारह बजे

 


भाईसाहब 8 बजे सो जाते हैं और फिर रात साढ़े ग्यारह बजे जागकर 'पापा... दूध', 'पापा... मम्मा... दूध' चिल्लाने लगते हैं. मम्मा ऑफिस से थककर आई हैं, इसलिए घोड़े बेच के सो रही हैं. बेचारे पापा जाग जाते हैं, किचन जाते हैं. भाईसाहब पीछे पीछे हो लिए हैं. किचन में जो भी बर्तन रीच में है उसे उठा घूम रहे हैं. दो बर्तन मिल गए हैं तो बस रात में इनका म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट तैयार है, तरह तरह की धुन बजाई जा रही हैं. पापा ने दूध गर्म कर लिया है, तब तक इनका बर्तनों को बजा बजा, नई धुन निकाल निकालकर घर का चौथा चक्कर भी लग गया है. अब आप उनके पीछे- पीछे दौड़ के दूध पिला रहे हैं, साथ में 'ठन... ठन...' का म्यूजिक भी बज ही रहा है. आप उन्हें पकड़ते हैं, बर्तन छीनते हैं और जबरदस्ती दूध पिलाना शुरू करते हैं. 2- 3 घूंट पीते पीते भाईसाहब रोना शुरू कर देते हैं, जैसे किसी ने इन्हें जोर से पीटा हो. बस इतने शोर में मम्मा जाग जाती है. "क्या यार विवेक मैं ऑफिस से थककर आई हूं, थोड़ा सा तो ख्याल रख लो. कहां चोट आई है बेटा?"


पापा मन ही मन सोचते हैं कि 'क्या वो थककर नहीं आए हैं?' खैर! भाईसाहब का रोना बंद हो गया है, मम्मा की आवाज सुनते ही. अब वो पापा को तरफ देख देख मुस्कुरा रहे हैं, जैसे उनने पापा को डांट पिलाकर के अपना गोल अचीव कर लिया हो.

#शौर्य_गाथा

शौर्य गाथा : हाती दादा



 भाईसाहब ने 'हाथी दादा कहां चले...' rhyme को यूट्यूब से सुन सुन कर हाथी दादा कहना सीख लिया है. अब जब भी हाथी दादा की फोटो सामने आती, वीडियो आता है या खुद ही हाथी दादा सामने आ जाएं तो ये 'हाती दादा....', 'हती दादा...' चिल्लाने लगते हैं.

साहब हाथी दादा को देख उनके पास जाने की जिद कर रहे हैं... तकरीबन एक घंटे से. जब पास ले जाया गया तो डर कर मम्मा... मम्मा... कह मम्मी से चिपक गए.

उनका हाथी दादा के प्रति प्यार और हाथी दादा के पास जाने पर डर दोनों ही देखने लायक हैं.
#शौर्य_गाथा

शौर्य गाथा : अलग एहसास


 

भाईसाहब की मम्मा और दादी बाहर गए हुए हैं. भाईसाहब को सुला दिया गया है. पापा के जिम्मेदारी उनका ध्यान रखने की है. पापा हॉल में जाकर अपनी फेवरेट 'आग का दरिया' उठा लेते हैं.

एक घंटे बाद भाईसाहब की आवाज आती है.वो जाग गए हैं. पापा उन्हें लेकर किचन जाते हैं, दूध गर्म करते हैं. भाईसाहब दूध पीने से इंकार कर देते हैं. 'मम... मम...' बोलकर पानी की ओर इशारा करते हैं. पापा पानी पिलाते हैं.

अब फिर से भाईसाहब को सुलाना बड़ा टास्क है. पापा उन्हें लिटाते हैं, समझाते हैं कि 'वो अब बड़े हो गए हैं, खुद से सो सकते हैं.'

भाईसाहब पापा से चिपक के लेट जाते हैं, फिर पेट पर चढ़कर सोते हैं, फिर उतर के चिपक के लेटे हैं. पापा थोड़ा भी इधर उधर हिलते हैं तो वो पापा को और कस के पकड़ कर चिपक जाते हैं. मम्मा के साथ ये रोज ऐसे ही सोते हैं लेकिन पापा के साथ पहली बार है. पापा को अंदर से बहुत खुशी महसूस हो रही है, अलग सा एहसास जो शब्दों में यहां बयां नहीं किया जा सकता.

पापा भी 'आग का दरिया' दरिये में डाल उनसे चिपक सो जाते हैं.

रात बारह बजे पापा की आधी सी आंखे खुलती हैं. सामने दादी और मम्मा खड़े बोल रहे हैं "घर के सारे दरवाजे खुले हुए हैं... किचन में दूध खुला पड़ा है... बिलकुल ध्यान नहीं रखते... ब्लाह... ब्लाह..."

पापा उनको देखते हैं, मुस्कुराते हैं, चिपक के सोये भाईसाहब को चूमते हैं और फिर पूरी आंखे बंद कर सो जाते हैं.

पापा नींद में भी उसी अद्भुत एहसास में हैं. 🙂

#शौर्य_गाथा

*आग का दरिया : कुर्रतुलऐन हैदर रचित प्रसिद्ध उपन्यास