भाईसाहब 8 बजे सो जाते हैं और फिर रात साढ़े ग्यारह बजे जागकर 'पापा... दूध', 'पापा... मम्मा... दूध' चिल्लाने लगते हैं. मम्मा ऑफिस से थककर आई हैं, इसलिए घोड़े बेच के सो रही हैं. बेचारे पापा जाग जाते हैं, किचन जाते हैं. भाईसाहब पीछे पीछे हो लिए हैं. किचन में जो भी बर्तन रीच में है उसे उठा घूम रहे हैं. दो बर्तन मिल गए हैं तो बस रात में इनका म्यूजिक इंस्ट्रूमेंट तैयार है, तरह तरह की धुन बजाई जा रही हैं. पापा ने दूध गर्म कर लिया है, तब तक इनका बर्तनों को बजा बजा, नई धुन निकाल निकालकर घर का चौथा चक्कर भी लग गया है. अब आप उनके पीछे- पीछे दौड़ के दूध पिला रहे हैं, साथ में 'ठन... ठन...' का म्यूजिक भी बज ही रहा है. आप उन्हें पकड़ते हैं, बर्तन छीनते हैं और जबरदस्ती दूध पिलाना शुरू करते हैं. 2- 3 घूंट पीते पीते भाईसाहब रोना शुरू कर देते हैं, जैसे किसी ने इन्हें जोर से पीटा हो. बस इतने शोर में मम्मा जाग जाती है. "क्या यार विवेक मैं ऑफिस से थककर आई हूं, थोड़ा सा तो ख्याल रख लो. कहां चोट आई है बेटा?"
पापा मन ही मन सोचते हैं कि 'क्या वो थककर नहीं आए हैं?' खैर! भाईसाहब का रोना बंद हो गया है, मम्मा की आवाज सुनते ही. अब वो पापा को तरफ देख देख मुस्कुरा रहे हैं, जैसे उनने पापा को डांट पिलाकर के अपना गोल अचीव कर लिया हो.
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