भाईसाहब की मम्मा और दादी बाहर गए हुए हैं. भाईसाहब को सुला दिया गया है. पापा के जिम्मेदारी उनका ध्यान रखने की है. पापा हॉल में जाकर अपनी फेवरेट 'आग का दरिया' उठा लेते हैं.
एक घंटे बाद भाईसाहब की आवाज आती है.वो जाग गए हैं. पापा उन्हें लेकर किचन जाते हैं, दूध गर्म करते हैं. भाईसाहब दूध पीने से इंकार कर देते हैं. 'मम... मम...' बोलकर पानी की ओर इशारा करते हैं. पापा पानी पिलाते हैं.
अब फिर से भाईसाहब को सुलाना बड़ा टास्क है. पापा उन्हें लिटाते हैं, समझाते हैं कि 'वो अब बड़े हो गए हैं, खुद से सो सकते हैं.'
भाईसाहब पापा से चिपक के लेट जाते हैं, फिर पेट पर चढ़कर सोते हैं, फिर उतर के चिपक के लेटे हैं. पापा थोड़ा भी इधर उधर हिलते हैं तो वो पापा को और कस के पकड़ कर चिपक जाते हैं. मम्मा के साथ ये रोज ऐसे ही सोते हैं लेकिन पापा के साथ पहली बार है. पापा को अंदर से बहुत खुशी महसूस हो रही है, अलग सा एहसास जो शब्दों में यहां बयां नहीं किया जा सकता.
पापा भी 'आग का दरिया' दरिये में डाल उनसे चिपक सो जाते हैं.
रात बारह बजे पापा की आधी सी आंखे खुलती हैं. सामने दादी और मम्मा खड़े बोल रहे हैं "घर के सारे दरवाजे खुले हुए हैं... किचन में दूध खुला पड़ा है... बिलकुल ध्यान नहीं रखते... ब्लाह... ब्लाह..."
पापा उनको देखते हैं, मुस्कुराते हैं, चिपक के सोये भाईसाहब को चूमते हैं और फिर पूरी आंखे बंद कर सो जाते हैं.
पापा नींद में भी उसी अद्भुत एहसास में हैं. 🙂
#शौर्य_गाथा
*आग का दरिया : कुर्रतुलऐन हैदर रचित प्रसिद्ध उपन्यास