Sunday, January 27, 2013

रंग


           
                         
                                 इंसान को पहना दो कपड़े, कभी भगवा कि जिससे बन जाये वो हिन्दू, तो कभी पहना दो हरे कि दिखने लगे मुस्लमान. दे दो कोई सा भी नाम, कभी कह दो उसे राम तो कभी कह दो अल्लाह.....और दे दो इन नामों की दुहाई....कभी दो चार 'अशोक सिंघल' हो जाते हैं यहाँ पैदा, तो कभी कुछ 'अकबरुद्दीन ओवैसी'...जो सरे बाज़ार दे देते हैं दुहाई, और मचा देते हैं शोर....विघटन कर देते हैं समाज का और इंसान, इंसान न हो, हो जाता है किसी एक मजहब का. मजहब, सुना था बचपन में, कि भाई-चारा फैलाता है.....अब लगता है, कत्लेआम करने का सबसे 'इजी' तरीका है ये.


                           सियासत ने कर दिए भाग, अब आतंक के भी हो गये दो-दो रंग, भगवा और हरा....और इस मुल्क के 'गृह मंत्री' चिल्लाने लगे नाम.....भूल गये कि, अगर मुल्क में आतंक है तो उससे निपटना है, सियासी ज़ामा पहना मतलब नहीं साधने हैं.....मुल्क के Z+ सुरक्षा में बैठे लोग नहीं मरेंगे.....मरेंगे हम....आम आदमी. 'पुअर मेंगो पीपल'.