Saturday, July 28, 2012

Zindagi: A Song



लिहाजों
लिवासों
लफासों
सवालों से
भरी ये ज़िन्दगी...

थमी सी
रुकी सी
चली सी
उड़ी सी
बढ़ी ये ज़िन्दगी...

तुममें भी
हममें भी
खुशियों में
गम में भी
थोड़े उजाले में
तम में भी
दौड़ी चली ये ज़िन्दगी...

ये ज़िन्दगी...
ये ज़िन्दगी.......

इकरारों में
इन्कारों में
इशरारों में
इशारों में
कुछ कहती
कुछ सुनती
ख्वाब नये बुनती
चल पड़ी ज़िन्दगी....

ये ज़िन्दगी...
ये ज़िन्दगी.......

बेनामी में
सुनामी में
सूखे में
अकाली में
दो दानों में
खाली थाली  में
डगमगायी, सम्हली ज़िन्दगी....

ये ज़िन्दगी....
ये ज़िन्दगी.........
ज़िन्दगी, ज़िन्दगी, ज़िन्दगी.......

खुशनसीब ज़िन्दगी,
हर दिल अज़ीज़ ज़िन्दगी...
ये ज़िन्दगी...
ज़िन्दगी, ज़िन्दगी............ज़िन्दगी.

Friday, July 27, 2012

ज़िन्दगी



 नज़्म सी सुन्दर
चाय कि प्याली सी.
ज़िन्दगी लगे प्यारी सी.

अभी चुप चुप सी

अभी सयानी सी
पंख ले उडी
कोई कहानी सी.
थोड़ी थोड़ी मासूम,
थोड़ी दीवानी सी.
ज़िन्दगी लगे प्यारी सी.

कभी सतरंगी हो बरसे,

कभी श्यामल ही हरसे,
दूर कही पोखर से
तारे चुन चुन निकाले.
सपने खुद ही बुन ले,
खुद ही उनको ढाले.
नाजुक है,
नजाकत से संवारी सी.
ज़िन्दगी लगे प्यारी सी.

खुद का आसमां बुना,

खुद की ज़मीन चुनी.
शीशे में खुद ढला,
रूनी खुद ही धुनी.
लफ्ज़-लफ्ज़ में फिदरत,
अल्फ़-अल्फ़ अदा.
पतंगों से उड़ती,
मजिल चूमे सदा.
कभी आस, कभी प्यास,
कभी बेकरारी सी.
ज़िन्दगी लगे प्यारी सी.

एक रात शबनमी

उस रात बहकी.
एक रात चुचाप
खुद ही सम्हली.
थामे सारे रिश्ते-नाते,
थामे कच्ची-पक्की बातें,
कच्चा सा फूल,
पक्के संस्कारों की क्यारी सी.
ज़िन्दगी लगे प्यारी सी.

कभी थोड़ी थोड़ी खफा,

कभी लगे दुआ.
कभी जुदा जुदा,
कभी खुद खुदा.
बचपन की कहानी सी,
मीठी शैतानी सी,
कोई नादानी सी,
बेफिक्र जवानी सी.
ज़िन्दगी लगे प्यारी सी.

भूलने की कवायत,

नया करने की तैयारी सी.
ज़िन्दगी लगे प्यारी सी.

Tuesday, July 24, 2012

सिगरेट





कुछ टुकड़े रह गये हैं और कुछ कशों की याद
बाकी जो खर्चा था सब ट्रे में पड़ी राख है!

जिंदगी साल्ली सिगरेट सी जली है!

Friday, July 20, 2012

फिर मैं खुद से मिला नहीं!


तुमसे बिछड़े तो क्या बिछड़े
फिर मैं खुद से मिला नहीं.
खुद से कितने शिकवे है
पर तुमसे कोई गिला नही.


दिल को काँटा-छांटा,
खुद को टुकडो में बांटा,
दिन अँधेरे कर डाले
तू मुझसे निकला नहीं.


पहले सपने बन बैठा था,
अब आंसू बन हँसता है,
तेरी भी क्या गलती है,
आँखों का कोई सिला नहीं!


मेरे चेहरे में लिपटा,
तेरा अक्स रह गया था.
हर बारिश में भीगे जमकर
फिर भी अब तक धुला नहीं.


आधी रात तुम्हारी थी,
आधी रात मैं भूल गया,
दूर अँधेरे ताका जगकर
ख्वाब पुराना मिला नहीं!


कतरा-कतरा याद भी
हंस-हंस कर आ जाती है,
वक़्त पड़े सब ढलते हैं,
पर  इसका रंग पीला नहीं!


पतझड़ में कुछ फूल झडे
बारिश में कुछ खिला नहीं,
तुमसे बिछड़े तो क्या बिछड़े
फिर मैं खुद से मिला नहीं.