वो शहर जिसमें तुम उम्र गुजारने की सोचते हो, बस जाने की सोचते हो, इतना बदल गया है कि राज्य के सबसे ज्यादा प्रदूषित शहरों में दूसरे स्थान पर है. जिन रास्तों पर तुम बेटोक गए हो वहा एक-एक मिनट के ट्रैफिक जाम है.
कुछ चौराहे पुराने से लगते ही नहीं, कई लोग अपने से भी नहीं. जैसे कि शहर बदलते-बदलते रंग भी बदलने लगे हों.
अजीब इत्तेफ़ाक़ है कि कुछ लोग अभी भी पहचान लेते हैं, दस साल बाद भी!
वे जगहें जहां पेड़- खेत थे, वहां अब माल और मीनारें हैं. आश्चर्य होता है कि रंग रूप बदलता यह शहर पचास साल पहले किसी जिले की तहसील हुआ करता था. हां, जिजीविषा अब भी ज्यूं की त्यूं है. स्व. अब्दुल जब्बार के गैस त्रासदी विक्टिम्स के लिए किए काम को कुछ लोग याद करते आंखें छलका देते हैं.
कोलार डैम वही है, झील वही है, वन विहार भी... कुछ कैफे भी वैसे के वैसे ही हैं. भारत भवन की शाम उतनी ही सुन्दर है... बस तुम्हें ही सबकुछ अधूरा अधूरा सा लगता है. दिल में भी और शहर में भी. जैसे कुछ था जो अब यहां नहीं है. कुछ खो गया है.
जैसे ये शहर, शहर तो वही है बस तुम उस शहर के बाशिंदे नहीं रहे!
तुम वहीं खड़े हो... शहर आगे बढ़ चुका है... लोग आगे बढ़ चुके हैं. शहर ने तरक्की कर ली है… लोगों ने भी ? शहरी आवश्यकताओं जैसे कपट और कटुता को अपना लिया है.