Thursday, August 4, 2022

भोपालनामा 2

 एक लड़का जिसके ज़िस्म में भोपाल बसा हुआ है। वो वीआईपी रोड पर दौड़ना चाहता है, लेक पे घंटों बैठना। उसे वन विहार में साइक्लिंग करनी है और महावीर टेकरी पर चढ़ लिखना होता है।

वो भोजपुर में कई दिन अधूरा शिवमन्दिर देख बिता सकता है। जैसे उसका ज़िस्म कोलार से लेक तक फैला हुआ हो।
'तुम्हें पता है, मुझे अब भोपाल पसंद नहीं।' वो एक दिन कहता है। 'पता है, मैं यहां बसना चाहता था, ज़िंदगी बिताना चाहता था... लेकिन अब नहीं।'
मैं कारण नहीं पूछता। मैं जानता हूं। 'तुम्हें अब भी उसकी याद आती है? लेकिन वो अब भोपाल में तो नहीं है।'
'वो नहीं यार वक्त याद आता है। सुकूं याद आता है। वो नहीं है वहां, उसके साथ का वक्त अब भी वहीं है। वो हर जगह छितर गई है यार।'
तुम राइटर्स ज्यादा ही फिलोसॉफिकल होते हो।
वो इस सड़क की ओर देख रहा है, जो भोपाल की तरफ जाती है।