Tuesday, February 25, 2014

खून बहाने वाले तुम्हीं थे



मैंने खून से कहा-
मत बहा कर इतना
देख सदियों तू बहा
इतिहास बना,
और बच्चों को पढ़ना पड़ता है वो इतिहास,
दर्ज़ करनी पड़ती हैं तमाम तारीखें
फ़ैल-पास का उठाना पड़ता है जोखिम.

'बहाने वाले तुम्हीं थे,
इतिहास में दर्ज़ करने वाले तुम ही.
लालसाएं तुम्हारी, लोलुप्त तुम
अपनों का खून बहाते रहे.
निहायत ही बेवकूफ इंसान,
ईश्वर ने तुम्हें इसलिए जन्मा था?'
खून तल्ख़ी से बोला
  ....और अब मैं बिलकुल चुप था!

Monday, February 24, 2014

मुक्तिबोध, चाँद का मुंह सच में टेड़ा है.



उसकी कत्थई आँखों में देखता हूँ जी भर,
अपलक निहार-निहार
निश्छल,
निर्मल,
निष्कपट,
मेरे सौम्य-शीतल चाँद.
जैसी तमाम पदवियां
लुटाता हूँ बार-बार.

एक दिन
उसकी कत्थई आँखें
मेरे वक़्त का तकाज़ा कर
फेर लेती हैं नज़रें!

मैं जोर से चीखता हूँ
'मुक्तिबोध, चाँद का मुंह सच में टेड़ा है.'

कवि बेवकूफ़ होते है,
बेहद बेवकूफ़!

Sunday, February 23, 2014

दर्द और गुलज़ार




हर दफ़े निखर निखर आता हूँ ग़मों से,
हर दफ़े एक नया ग़म पनप आता है...
डर है कहीं दर्द का 'एडिक्ट' न हो जाऊं!


-*-

तेरे जैसा लिखना-पढ़ना मुझे कभी न आया,
न दिन ढला, न रात उगी, न चाँद शरमाया,
निर- मूरख मैं तुझको पढ़- पढ़ बार-बार हर्षाया,
मुझे भी तरकीब बता 'गुलज़ार' हुनर कहाँ से लाया?




ज़लज़ले की रात



ज़लज़ले की रात 
दुनिया ने बांटा सामान,
मेरे हिस्से में आई एक किताब
जिसक आखिरी पन्ने पे लिखा था-
'ज़लज़ला अच्छा-बुरा देखकर नहीं आता,
कुत्तों की कोई जात नहीं होती,
लोग कभी अपने नहीं होते, मौत अपनी है!'

उस रात ज़लज़ले ने
मुझे कम, रिश्तों को ज्यादा ख़ाक किया. 




Friday, February 21, 2014

Nero's Guest



खाली पतीली पे 
उबाला गया मटमैला पानी
लगातार तीन दिन तक...
चार साल का छुटकू 
'रोटी रोटी' चिल्लाते मर गया.

मैं व्यस्त था
बेमतलब सी बातें सुलझाने में.
मेरी चार छोटी परेशानियां
किसी की ज़िन्दगी से बड़ी तो नही!

आज भी हूँ मैं,
मेरे जैसे 'नीरो'ज़ गेस्ट'.