मुनि क्षमासागर जी एक बहुत बड़े संत का नाम है, जिनका कहा और लिखा किवदंती की तरह प्रसिद्ध हुआ है, 'भारतीय ज्ञानपीठ' द्वारा प्रकाशित उनके काव्य संग्रह 'अपना घर' में से मैं यहाँ दो कवितायें प्रस्तुत कर रहा हूँ. प्रस्तुत कवितायें पढ़कर मुनि श्री का जादू शायद आप पर भी छा जायेगा.
सीढ़ी हूँ
मैं तो
लोगो के लिए
एक सीढ़ी हूँ,
जिस पा
पैर रखकर
उन्हें ऊपर पहुँचना है.
तब सीढ़ी का
क्या अधिकार
की वह सोचे,
की किसने
धीरे से पैर रखा
और कौन
उसे रौंदता चला गया.
-मुनि श्री क्षमासागर जी
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स्वयं अकेला
उसने
चाहा कि
उसके सब ओर
सागर हो
और अब
जब उसके
सब ओर
सागर फैला है,
वह स्वयं
एक द्वीप कि तरह
निर्जन
और अकेला है.
-मुनि श्री क्षमासागर जी