दो महीने बाद भाईसाहब तीन साल के हो जाएंगे... और मुझे अभी से वह दिन याद आ रहा है 23 मार्च 2021. कितना इमोशनल दिन था मेरे लिए... हाथ में लेते हुए इस नन्हीं-सी जान को टप-टप आंसू गिरे थे. इन लगभग तीन वर्षों में कितनी बदल गई है जिंदगी. बहुत से एहसास हैं जो नए-नए मेरे अंदर जन्मे हैं... बहुत सी बातें हैं जो मैंने इस बच्चे से सीखी है... बहुत सा प्रेम है जो महसूस किया है... और भाईसाहब? लगभग तीन साल के भाईसाहब कुछ ज्यादा जिद्दी हो गए हैं... चूजी हो गए हैं... और बहुत सारा प्यार करने लगे हैं. मसलन ऑफिस से आते हैं पुच्ची पर पुच्ची देते हैं फिर जोर से पापा को भींच लेते हैं.
पूरे घर को कैनवास बना के रखा है. बड़ी-बड़ी ड्राइंग करते हैं. कभी-कभी तो बात भी नहीं मानते हैं. बातें अधिक क्यूट हो गई हैं और आवाज तोतली है पर निखलने लगी है.
पापा और भाईसाहब अच्छे दोस्त हो गए हैं. पापा कभी जिद मानते हैं... कभी नहीं भी. भाईसाहब गुस्सा करते हैं... कभी नहीं भी. भाईसाहब और पापा क्रिकेट खेलते हैं. कभी वह बॉलिंग करते हैं... कभी पापा बॉलिंग करते हैं. वैसे भाईसाहब अधिकतर 'तोहली अंकल' ही बनते हैं.
पापा और भाईसाहब बॉक्सिंग करते हैं. भाईसाहब के प्रहारों से बेचारे पापा गिरते रहते हैं.
पापा स्कूल छोड़ने जाते हैं भाई साहब लौट कर बोलते हैं "पापा त्यों अकेला छोड़ दिया था?"
पापा: "जिससे आप वहां फ्रेंड्स के साथ खेल पाओ."
...और भाईसाहब दौड़कर पास आकर गले लगते हुए बोलते हैं "मुझे तो आपते साथ थेलना है."
पापा इतना सारा प्यार पाकर उन्हें जोर से गले लगा लेते हैं.
तीन साल... कल की ही बात लगते हैं... सबसे सुखद साल हैं... जिनका मुझे हर पल याद है.
दो महीने बाद भाईसाहब तीन साल के हो जाएंगे... और मुझे अभी से वह दिन याद आ रहा है 23 मार्च 2021. कितना इमोशनल दिन था मेरे लिए... हाथ में लेते हुए इस नन्हीं-सी जान को टप-टप आंसू गिरे थे. इन लगभग तीन वर्षों में कितनी बदल गई है जिंदगी. बहुत से एहसास हैं जो नए-नए मेरे अंदर जन्मे हैं... बहुत सी बातें हैं जो मैंने इस बच्चे से सीखी है... बहुत सा प्रेम है जो महसूस किया है... और भाईसाहब? लगभग तीन साल के भाईसाहब कुछ ज्यादा जिद्दी हो गए हैं... चूजी हो गए हैं... और बहुत सारा प्यार करने लगे
हैं. मसलन ऑफिस से आते हैं पुच्ची पर पुच्ची देते हैं फिर जोर से पापा को भींच लेते हैं.
पूरे घर को कैनवास बना के रखा है. बड़ी-बड़ी ड्राइंग करते हैं. कभी-कभी तो बात भी नहीं मानते हैं. बातें अधिक क्यूट हो गई हैं और आवाज तोतली है पर निखलने लगी है.
पापा और भाईसाहब अच्छे दोस्त हो गए हैं. पापा कभी जिद मानते हैं... कभी नहीं भी. भाईसाहब गुस्सा करते हैं... कभी नहीं भी. भाईसाहब और पापा क्रिकेट खेलते हैं. कभी वह बॉलिंग करते हैं... कभी पापा बॉलिंग करते हैं. वैसे भाईसाहब अधिकतर 'तोहली अंकल' ही बनते हैं.
पापा और भाईसाहब बॉक्सिंग करते हैं. भाईसाहब के प्रहारों से बेचारे पापा गिरते रहते हैं.
पापा स्कूल छोड़ने जाते हैं भाई साहब लौट कर बोलते हैं "पापा त्यों अकेला छोड़ दिया था?"
पापा: "जिससे आप वहां फ्रेंड्स के साथ खेल पाओ."
...और भाईसाहब दौड़कर पास आकर गले लगते हुए बोलते हैं "मुझे तो आपते साथ थेलना है."
पापा इतना सारा प्यार पाकर उन्हें जोर से गले लगा लेते हैं.
तीन साल... कल की ही बात लगते हैं... सबसे सुखद साल हैं... जिनका मुझे हर पल याद है.