Friday, May 8, 2015

Untitled Post


लफ़्ज़ों को आग में पका कुंदन नहीं बनाया जा सकता न शहर के बीचों-बीच खड़े हो चिल्ला-चिल्लाकर इश्तेहार किया जा सकता है. लफ़्ज़ों में तुम हो और तुम खुद को पढ़ के भी नहीं समझ पाओगे. उम्र में दो साल बड़े तुम ज़िन्दगी में पूरे बीस साल....अपना काम कर खुश होते हो और अक्सर फ़ोटो अपने कर्म के इश्तेहार के रूप में डाल देते हो तो लगता है तुम सुकूं की आखिरी सीढ़ी पे बैठे मुस्कुरा रहे हो. हर 'पिक' में तुम मुझे 'क्यूट' लगते हो..ऊपर से हमारे बीच का कॉमन भोपाल. जितना इश्क़ मुझे उससे... उतना तुम्हें. सोचता हूँ किसी दिन बोल दूँ, फिर खुद को बच्चा समझने लगता हूँ. घर में उम्र में सबसे बड़ा पर थोड़ा कम मेच्युर मैं... तो ये होना ही है.
तुम्हारी यात्रायें, मतलब लिए हैं...ढेर सारे, ढेरों के ढेरों पन्नों में तुम उकेर देते हो जिन्हें. मेरे लफ्ज़ सिर्फ दो लोग लिए हैं... ढेर सारे 'तुम' और थोड़ा सा 'मैं', जिन्हें मैं थोड़ी स्याही ही दे सकता हूँ तुम्हें समझाने.
तुमने पढ़ा क्या? छोड़ो, पढ़ के भी तुम नहीं समझोगे कि यहां 'तुम' तुम हो.