Wednesday, October 11, 2017

यहां कविता

यहां कविता उतनी ही कम है
जितनी सांसों में शुद्ध वायु,
रात में नींद,
मुंह में राम वालों के
हृदय में राम नाम का मर्म.
और मेरे अंदर बचा रह गया तुम्हारे प्रति प्रेम.
यहां कविता नहीं है
कुछ सच हैं,
जो शब्दों में बदल जाते हैं.
जैसा तुम्हारे स्पर्श से मैं बदल जाता था.
जैसे सरकारी आंकड़ों में देश की तस्वीर बदल जाती है.
जितनी मेरे अंदर नहीं बची हो तुम,
इसमें बस उतनी सी कविता है.

Tuesday, October 3, 2017

पंचतत्व | गीत चतुर्वेदी


मेरी देह से मिट्टी निकाल लो और बंजरों में छिड़क दो 
मेरी देह से जल निकाल लो और रेगिस्तान में नहरें बहाओ 
मेरी देह से निकाल लो आसमान और बेघरों की छत बनाओ 
मेरी देह से निकाल लो हवा और यहूदी कैम्पों की वायु शुद्ध कराओ 
मेरी देह से आग निकाल लो, तुम्हारा दिल बहुत ठंडा है

Sunday, October 1, 2017

एक रात


हरसूद की याद के नाले में पानी भर गया
जैसे रेवा ने जीवन लेना भी सीख लिया हो.

विस्थापन में शहर मर जाते हैं
यादें चिर जीवित बची रहती हैं.
दौलताबाद लोग दिल्ली साथ लेकर गए थे
मैं गांव साथ लेकर दिल्ली आया था.
पिता ने सपने देकर विदा किया
मैंने माँ से लेकर उसमें घी चुपड़ दिया.
वक़्त कितना अजीब है
कि काली रात के सफ़ेद चाँद में तुम्हारा चेहरा
धीरे-धीरे धुंधला रहा है
जैसे धुआं हो,
मध्धम ऊपर जा रहा है.
मैं  धुएं संग उड़ तुम्हें चूमना चाहता हूँ
लेकिन विज्ञान कहता है
धुंआ चाँद तक नहीं पहुंच सकता.

आज को ऐसे जियो
कि टाइम-मशीन से भी
इसे बदलने जाने कि जरूरत न पड़े.
'नो रिग्रेटस!'

मैं आज में कफ़न बांध के चलना चाहता हूँ.
हरसूद में बांध ने कफ़न
बांध दिया था.

कफ़न के साथ बंधन नहीं खुल पाते.
वो गांव, हवा और लोग,
देसी घी संग चुपड़ा रखा एक सपना.

पेरिस कि गलियों में तुम्हें
मोम की पिघली दीवार मिलेगी
उसपर मेरा नाम उकेरना.
कफ़न ओढ़ने से पहले में आऊंगा
कफ़न लिए,
उन बारह लाशों पर रोने
जिन्हें ईश्वर ने गढ़ा था
और ईश्वर के नाम पर मार दिया गया.

क्या उनके साथ उनकी भावनाएं भी मरी थीं?
वो अधूरे प्रेम,
अधूरे सपने,
जिनके लिए किसी रात
चाँद तक पहुंचने धुएं संग उड़ने की
उन्होंने कामनाएं की होंगी.

विज्ञान बीच में आ जाता है
विस्थापन बीच में आ जाता है
यथार्थ बीच में आ जाता है.

देसी घी में चुपड़ा सपना
डूबता हरसूद
एल्फिंस्टोन पुल पर मरे बाईस लोग.

वक़्त किसी को नहीं बख़्शता
मौत किसी पे दया नहीं करती.

गिल्ट!
कुछ को आदमी मारने पर भी नहीं होती.
मैंने एक चींटी की हत्या की
और गिल्ट लिए जी रहा हूँ.

तुम इस रात को मोहब्बत समझ रख लो
मैं हरसूद में बिताई
आखिरी रात समझ रख लेता हूँ.

और वो घी चुपड़ा सपना...
उसे मैंने अब भी
चीटियों से बचा के रखा है.