तुम्हारे शहर के किसी कोने में पड़ा है
मेरा गांव,
तुम्हारा शहर बढ़ता जा रहा है,
मेरा गांव खाता जा रहा है.
यकीनन जब गांव शहर बनते हैं,
अच्छा लगता है.
लेकिन गांव-सा अपनापन मरता है,
अंदर से आदमी कुछ-कुछ मर जाता है.
तुम्हारे इस शहर के कोने में,
मेरा गांव हुआ करता था कभी.
अब इसे भी
शहर कहते हैं....तुम्हारा शहर.
एक मरे गांव कि अस्थियां भी
विसर्जित करने नहीं मिली!
गांव मर गया....
शहर दो फलांग और बढ़ गया.
मेरा गांव,
तुम्हारा शहर बढ़ता जा रहा है,
मेरा गांव खाता जा रहा है.
यकीनन जब गांव शहर बनते हैं,
अच्छा लगता है.
लेकिन गांव-सा अपनापन मरता है,
अंदर से आदमी कुछ-कुछ मर जाता है.
तुम्हारे इस शहर के कोने में,
मेरा गांव हुआ करता था कभी.
अब इसे भी
शहर कहते हैं....तुम्हारा शहर.
एक मरे गांव कि अस्थियां भी
विसर्जित करने नहीं मिली!
गांव मर गया....
शहर दो फलांग और बढ़ गया.