14 जनवरी... मकर संक्रांति... आप सभी फेस्टिवल एन्जॉय कर रहे होंगे... तिल के लड्डू खा रहे होंगे. मेरा स्टाफ मेरे साथ ऑफिस में बैठा है. मैं पिछले दो घंटे से मीटिंग ले रहा हूँ, हम विभिन्न मुद्दों पर बात कर रहे हैं. वैसे भी फील्ड स्टाफ की छुट्टी कहाँ होती है.
दोपहर के लगभग दो बज रहे हैं. फोन बज उठता है. किसी गांव के सरपंच का फोन है. वे थोड़ी घबराई सी आवाज़ में बात कर रहे हैं. "सर, यहाँ एक व्यक्ति के खेत में कुआं है, उसमें एक साथ आठ जंगली सुअर गिर गए हैं. उनमें कुछ सुअर के बच्चे भी हैं साब" आठ सूअर एक साथ! दोपहर है लेकिन ठण्ड बहुत है, पानी भी अभी ठंडा होगा. मैं मीटिंग तुरंत ख़त्म करता हूँ, स्टाफ को आवश्यक रेस्क्यू सामन रखने को बोलता हूँ और अगले पांच मिनट में निकल जाता हूँ.
पच्चीस किलोमीटर दूर पहुँचने में हमें गांव के घुमावदार पहुंचमार्ग से भी पहुँचने में मात्र बीस मिनट लगते हैं. पंद्रह बीस लोग कुएं पास जमा हैं. हमारी गाड़ी आती देख और भी लोग आना शुरू हो गए हैं. शुक्र है खेत की झाड़ियों से बागड़ (फेंसिंग) है और बस एक ही अंदर जाने का रास्ता है. मैं खेत की बागड़ के पास दो स्टाफ नियुक्त कर देता हूँ जिससे बाकि गांव वाले अंदर ना आ पाएं. खेत मालिक मुझे देखकर बताना शुरू करते हैं "साब, ये सूअर अपना कुनबा ले के जा रे था. साब, अपना खेत सड़क से लगा हुआ है. कुनबा सड़क पे पहुंचा कि एक बस हॉर्न देती आई. पूरा का पूरा सूअर उल्टा दौड़ गया और कुएं में आकर गिर गया."
कुआं का मुआयना किया जाता है. कुआँ में करीब पंद्रह फ़ीट नीचे पानी है. कुएं में पांच सूअर के बच्चे और तीन एडल्ट हैं. शायद पूरा का पूरा परिवार है. हम अपना काम शुरू करते हैं. इतने में गाँव के सरपंच आ गए हैं. वो मुझे धन्यवाद प्रेषित करते हुए जाल की रस्सी का एक सिरा खुद थाम लेते हैं. कुएं के बीच वाले हिस्से (Diameter) होकर रस्सी की मदद से जाल अंदर डाला जाता है, इतना कि तैर रहे सूअरों के पैरों के भी नीचे पहुँच जाए. फिर रस्सी के चारों सिरे चार लोग चारों कोनों की और जाते हैं. अब उनके नीचे जाल फ़ैल गया है. दो तीन स्टाफ बांस लिए है और सूअरों को कुएं के मध्य की और हरका रहा है. जिससे वे जाल के अंदर आ जाएँ.
पहली बार में हम जाल ऊपर की और खींचते हैं और तीन बच्चे जाल के ऊपर हैं. हम रस्सी के एक सिरे को दुसरे की और लेकर आते हैं. कुएं की एक दिशा रोड की और है और वहां लोग भी काफी जमा हो गए हैं. वहां हम सुअरों को छोड़ नहीं सकते. दूसरी और ऊंचाई है, शायद कुएं बनाने के बाद निकली मिटटी वहां जमा की है. इसलिए वहां भी नहीं छोड़ सकते, एक ओर कुएं की बंधान कुछ ज्यादा ऊपर इसलिए वहां भी नहीं. बची हुई एक ही दिशा है जिस ओर निकालने के बाद छोड़ा जा सकता है.
उन्हें उपर्युक्त दिशा की ओर छोड़ देते हैं. वे छूटते ही दौड़ लगा गए हैं.
अगली बार फिर प्रयास किया जाता है और दो सूअर ऊपर आ गए हैं. एक बच्चा पानी और ठण्ड की वजह से दौड़ने की बजाये वहीँ बैठ गया है. मेरा एक स्टाफ उसे सहलाने जा रहा है. ये खतरनाक हो सकता है. कहते हैं जंगली सुअर जब दौड़ता है और आदमी सामने खड़ा हो तो उसकी जांघ फाड़ के निकल जाता है! मैं मना करता हूँ, तबतक उसने उसके पीठ पर हाथ फेर पुचकार ही दिया है. वो बच्चा भी भागने लगा है.
अगली बार में दो और निकाल लिए हैं और अंत में सबसे शक्तिशाली जंगली सूअर बचा हुआ है. बड़ी मेहनत से उसे आखिर में निकाला जाता है. वो उल्टा कुएं की ओर ही दौड़ लगाने लगा है. उपस्थित लोगों में भगदड़ सी होने लगी है कि मेरे स्टाफ ने डंडों से उसे हरका दिया है. वो भी तेजी से दौड़ता खेतों में गुम हो गया है. लोगों में ख़ुशी का माहौल है. उन्होंने चिलाना और ताली पीटना शुरू कर दिया है.
हमने पहुँचने के लगभग अगले पंद्रह मिट में ही ये सब कर लिया है. हमने राहत कि साँस ली है. ठण्ड और पानी से मरने से हमने उन्हें बचा लिया है... हमारे लिए यही त्यौहार है.
फोटो/वीडियो: टीम.
#wildstories #जंगल_की_कहानियां #ForestLife #Rescue 4.