Thursday, April 26, 2018

तुम्हें ढूंढता नहीं मैं


तुम्हें ढूंढता नहीं मैं,
न ही कोई चेष्ठाएं करूँगा पाने की.
यदि तुम नदी हो
तो मेरी यादें उसके डूबे
गोल पत्थर हैं
जो संग साथ बह रहे होंगे
और मैं वो सागर जिसमें जा तुम समाओगी.
यदि तुम नज़्म होगी
तो मेरी यादें उसके लफ्ज़ होंगे
और मैं उस नज़्म का संपूर्ण मायना.
यदि ईश भी हो जाओ तुम
तो मेरी याद वो प्रथम कृति होगी
जिसे तुम गढ़ोगी
और मैं तुम्हारा वैकुंठ, जिसमें तुम रहोगी.
मैं इंतज़ार में नहीं हूं तुम्हारे
मैं तुममें हूं
रक्तकनिकाओं सा तैर रहा हूं
जिस्म के हर हिस्से में
आकाश सा समेटे हूं
तुम्हें अपने में.
पिता सा देख रहा हूं
तुम्हारे पहले उठते कदमों को.
एहतियात से, कि थाम पाऊं अगर गिरे तो.
प्रेमी सा
सीने से लगाए हुए हूं
प्रेम की नई परिभाषाएं गढ़ रहा हूं.
मैं तुम्हारा क्या था, क्या हूं,
और क्या हो जाऊंगा... नहीं जानता.
लेकिन इंतज़ार में नहीं हूं,
ढूंढ़ता नहीं हूं
क्यूंकि तुममें हूं.
चेष्टाएं नहीं करूंगा पाने की
क्यूंकि तुम नदी सी सामाओगी मुझमें ही
बादल बरसोगी मुझ पर ही
सांसों में अंत्रकृत मुझे ही
कोई भी वाद्य हो, धुन निकालोगी मेरी ही.