Monday, October 21, 2013

मीना कुमारी




....और तुम्हारे नाटक से
हम सच के सपने लिख लेते
ग़र तुम्हारा अभिनय भी
मीना कुमारी की तरह जानदार होता.

पटक के रख दो ख्वाब अपने
फिर शराब हाथों में ले
लिख दो चार नगमे.
...और मर जाओ खामोश मौत,
गर तुम मीना कुमारी हो तो.

कौन कहता है
आदमी की ज़रूरत में शामिल
बस एक भूख ही है.
रूह तमाम रिश्तों को ढूंढती है जब
तो ऊँचाई पे चढ़े लोग भी
खा नहीं पाते पेट भर.
मीना कुमारी की तरह.

मेरे हम-शाख़
न गलत तुम, न गलत हम
माना मीना कुमारी न तुम, न ही हम
फिर कभी क्या, छूटते-छोड़ते
'जवानी हमारी लौटाओगे मेहर के साथ?'