Sunday, October 11, 2015

पांच कवितायें


मोबाइल फ़ोन पे तुम्हारी मासूम शक्ल 
बन जाती है.
और जब तुम बोलते हो
तो आँखों में तुम्हारा मासूम अक्स उभर आता है.

तुमसे बात करना जैसे
पागलों को मनाना है.

तुम पैदा नहीं हुई होगी,
तुम्हें तुम्हारे माता-पिता ने
बेवकूफ़लड़की.कॉम से डाउनलोड किया होगा.

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तुम्हारा लगाना किसी को गले,
तुम्हारे अंदर बवाल कर देता है,
तुम्हारी आँखें तुम्हें धिक्कारने लगती हैं.

बीसवीं सदी में जब
देविका रानी ने भी नहीं दिया होगा
बॉलीवुड का पहला चुम्बन.
उसके पहले शायद बूढी हो चुकी थी
तू, पच्चीस बरस की वालिग लड़की!

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वैसे कुछ खास नहीं लगता तुम्हें पढ़ना,
वही सब है
जो कहा गया पहले,
बेवकूफ पोएट्स ने लिखा पहले.

खास लगता है
तुम्हें पढ़ के सोचना
कि किस गधे को अपने दिमाग में रख
इमेजिन किया होगा सबकुछ.
उफ़! तुम्हारी फैंटेसीज़.

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तुमसे बात न कर के
बस उतना सा ही दुःखी हूँ
जितना सुबह की कॉफी न मिलने पे होता हूँ.

सुबह से शाम पढ़ने में मन नहीं लगता 
और अजीब सी बैचेनी होती है.
कोशिशें होती हैं कि 
किसी तरह मिल जाये बस, एक कॉफ़ी.

मरिजुआना से ज्यादा नशा होता है
कैफीन का.
विज्ञान की कोई किताब उठा के पढ़ लो.

तुम कैफीन हो शोना.