Thursday, September 27, 2018

[The Blue Canvas] ९

सारी शोधयात्राएँ खुद की खोज से शुरू हो खुद में अंत होती हैं. मैं खुद की तलाश में खुद से निकल तुम तक पहुँच जाता हूँ. तुम्हारी आँखों में जो मैं हूँ वो मेरे 'मैं' से बिलकुल अलग हूँ. मेरी आँखों में जो तुम हो वो तुम्हारे अंदर समाई 'तुम' से बिलकुल अलग हो. हम तीन भाई हैं जिनके एक पिता हैं लेकिन हम तीनों के लिए 'पिता' मायने में अलग-अलग हैं. एक आदमी दूसरे के अंदर अलग तरीके से और तीसरे के अंदर बिलकुल अलग तरीके से रम जाता है.  निंदा फ़ाज़ली को सही से अभी पढ़ना शुरू किया है उनके 'हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी/ जिसको भी देखना हो कई बार देखना' का मतलब धीरे धीरे समझ आ रहा है... शायद तुम्हारी आँखों में खुद को देख समझना शुरू कर रहा हूँ.

क्या खो रहा हूँ, क्या पा रहा हूँ, ये वक़्त पे छोड़ के जा रहा हूँ. लेकिन आशा, उम्मीद और सफर ये ज़िंदा रहने वाले हैं. हर दिन बिखर कर मेरे हिस्से में थोड़ा सा तुम रह जाते हो जैसे हाथों में फूलों कि खुशबू रह जाती है. तुम्हें याद... तुम्हें याद करना हर दिन का शगल है और उगे सूरज अबतक रोशन हैं.

मेरी सारी यात्रा जैसे एक शोधयात्रा हो गई है. जो मुझे तुम्हारी आँखों से खोजेगी. मेरे यार! तुम सनातन सहयात्री हो... मेरी मासूम हथेली थामे चल रही हो.

#TheBlueCanvas