मैं पूंछना चाहता हूँ कुछ,
कुल जमा तेईस कि उम्र में
ज्यादा समझ नहीं मुझे
लेकिन बचपन में
मैंने पडोसी के घर के
दो कांच फोड़े थे
तो माफ़ी मेरे पापा ने मांगी थी.
मुझे याद है...हाँ, याद है
जब मैंने पड़ोस के
छोटे से बिट्टू को
सड़क पे गिराया था तो
माँ ने खींच के मारा था मुझे.
गुस्से से बड़बड़ाई थी-
'शायद मेरी परवरिश में ही कहीं
खोट रह गई.'
मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ,
आप बस घर के नहीं
सारे वतन के मुखिया हैं,
फिर क्यूँ नहीं कभी
जिम्मेदारी से स्वीकारी
सदस्यों कि गल्तियाँ
या क्यूँ नहीं कहा कभी
'शायद खोट हममें है,
हमारे नेतृत्व में है.'