Thursday, November 16, 2017

India As I Know: The Panch Parmeshwara





यह एक कहानी सा है... बात 2009 की है. मैं इंजीनियरिंग के तीसरे साल में था. अख़बारों में एक कहानी आई. यह रुचिका गिरहोत्रा की कहानी थी. वह एक किशोरवय (Teen Age, just 14 years old) स्थानीय बैडमिंटन खिलाडी थी जिसका Sextual Harassment एक सीनियर पुलिस अधिकारी शम्भू प्रताप सिंह राठौर ने किया था. 

1990 की इस घटना की शिकायत रुचिका ने पुलिस में दर्ज की थी. रिजल्ट ये निकला-

१.      पुलिस में शिकायत (FIR) लिखने से ही मन कर दिया.
२.      रुचिका के परिवार को प्रताणित करना शुरू कर दिया.
३.      रुचिका को स्कूल से प्रिंसिपल ने दबाव/डर या घूस के कारण निकाल दिया.
४.      रुचिका के परिवार को अंडर-ग्राउंड होना पड़ा.
५.      रुचिका ने १९९३ में लगातार प्रतारणा के कारण आत्महत्या कर ली.

2009 में रुचिका की NRI दोस्त और परिवार के प्रयासों के कारण केस फाइनल स्टेज में पहुंचा था.

यह मेरे लिए एक हिला देने वाली घटना थी. मैं एक 20 साल का नौजवान था जिसने हाल ही में अपना पहला वोट दिया था. रुचिका शायद मृत्यु के वक़्त मेरे से भी कम उम्र की रही होगी. मैं उसका दर्द पूर्ण-समानुभूति से महसूस कर पा रहा था.

 आगे की घटना इससे भी ज्यादा खतरनाक थी. शम्भू प्रताप सिंह राठौर  की पत्नी उसका साथ दे रही थी. मीडिया को भी रुचिका के पूर्णतः Support में नहीं कहा जा सकता था. अंतत: शम्भू प्रताप सिंह राठौर को छह महीने मात्र की सजा हुई. जिसपर उसे उसी समय जमानंत भी मिल गई. (बाद में, मीडिया और नागरिक समूहों (Citizen Organisations) के दबाव में १८ महीने की सजा हुई, किन्तु मात्र 6 महीने में ही जमानत लेकर शम्भू प्रताप सिंह राठौर बाहर आ गया.)

पूरे तंत्र को अपने हित में उपयोग करने, कई लोगों को डरा-धमकाकर साथ करने, एक लड़की को आत्महत्या करने पर मजबूर करने और एक पूरा परिवार तबाह करने के ऐवज में मात्र छह महीने की सज़ा! वो भी bailable!  (जमानत योग्य) यह हमारी न्याय-व्यवस्था थी!

यह पांचवा इंडिया है. जहाँ पत्नी पति के अक्षम्य गुनाहों में भी क्षमा करने, साथ रहने और साथ देने को तैयार रहती है. अधिकारी सारे सिस्टम को खरीद लेते हैं और कोई केस जिसका रिजल्ट लगभग 20 साल बाद आता है, मात्र 6 माह की सजा सुना पाता है.

पांचवा भारत जिसके लोकतंत्र में धर्म, जाति, मूलवंश, लिंग, जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध है, जहाँ सामाजिक-आर्थिक स्थिति से परे कानून का सामान संरक्षण है, समानता के तमाम अधिकार सुनिश्चित हैं. वहां गरीब आज भी न्याय से महरूम है. 3 करोड़ मामले लंबित हैं और करीब ६७% कैदी Under-Trial Prisoners (विचाराधीन कैदी) हैं
.
फिल्म जॉली एलएलबी-2 में जज कहता है कि ‘ आज भी न्यायव्यवस्था पर लोगो का भरोसा कायम है. लड़ाई-झगडे में आज भी व्यक्ति कहता है कि ‘I will see you in the court.’’

   जजों को परमेश्वर का दर्ज़ा देते हुए 90 साल पहले प्रेमचंद ने भी ‘पञ्च परमेश्वर’ कहानी लिखी थी. लेकिन यकीन मानिये जजों के उभरते भ्रष्टाचार के मामले और न्यायपालिका से आम-आदमी की निराशा न्यायव्यवस्था के प्रति लोगोंका भरोसा धीरे-धीरे कम कर रही है.

2012 में जब निर्भया केस में लोग सड़कों पर आये और करीब एक साल बाद जब सज़ा सुनाई गई (यह 5 लोगों के लिए मृत्युदंड की सजा थी) तब मुझे 2009-2010 याद आ रहा था. शम्भू प्रताप सिंह राठौर को 6 महीने की सजा और जमानत के बाद अख़बारों में छपा उसका मुस्कुराता चेहरा याद आ रहा था.

मेरे सामने प्रश्न था कि अगर निर्भया केस के अधिकारी यदि मजदूर और आर्थिक रूप से विपन्न न होते तो क्या इतनी कठोर सजा मिलती?

हालाँकि दोनों केस बिलकुल अलग हैं और निर्भया केस में की गई Brutality (क्रूरता) अपराधियों के प्रदूषित मष्तिष्क और गहन आपराधिक प्रवित्ति को प्रदर्शित करती है किन्तु पुलिस की ड्रेस में तमाम सिस्टम से खेलने वाले सीनियर पुलिस अधिकारी शम्भू प्रताप सिंह राठौर के अपराध को भी कम कर के नहीं आँका जा सकता है.

सलमान खान का 2002 हिट-एंड-रन केस में बरी होना मेरी अवधारणा कि ‘न्यायपालिका सिर्फ गरीब या मध्यमवर्ग को ही अपराध की सज़ा देने में सक्षम है’, को अधिक मजबूत किया है.

एक वक़्त मुझे ऐसा लगने लगा कि गोदान (1936) में प्रेमचंद का लिखा वाक्य – ‘ आजादी सिर्फ बड़े लोगों के काम की है.’  इस देश “भारत जो कि इंडिया है” के लिए लिए सच ही है.

किन्तु समय के साथ मैं बड़ा हुआ हूँ और शायद आम भारतियों की तरह ही भरोसा करता हूँ और कहता हूँ कि ‘I will see you in the court.’


क्यूंकि शायद सिस्टम पर तमाम भ्रष्टाचार के बावजूद भरोसा रखना हम भारतियों की सोच में शामिल है. शायद न्यायालिका ने हर जगह निराश भी नहीं किया है. जेसिका लाल मर्डर केस, नितीश कटारा मर्डर केस जैसे प्रसिद्ध मामले इसके उदहारण हैं. हालाँकि फरियादी को अथक परिश्रम करने की जरूरत जरूर पड़ी है.

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References:
 nytimes.com and indianexpress.com articles on Ruchika Girhotra Case
 Wikipedia pages: 'Ruchika Girhotra Case', '2012 Delhi gang rape'
 indianexpress.com articles on 2012 Nirbhaya Case
 Different news articles on Salman Khan hit and run verdict
 Rajya Sabha TV debates related to 'Indian Judicial System'
 Photo: hindi-literature.com