आईआईटी के दो गणितज्ञों ने यह पाया है, काफ़ी परिष्कृत विधि और यन्त्र-विद्या का उपयोग कर, कि सिन्धु घाटी सभ्यता की जो लिपि अब तक अबूझ बनी हुई है वह दायें से बायें की ओर लिखी जाती थी. इसका आशय यह हुआ कि वह लिपि अरबी जैसी लिपि की तरह थी. हमारी सभी भारतीय भाषाएं, उर्दू को छोड़कर, बायीं से दायीं ओर लिखी जानेवाली लिपि में हैं. इस तरह की खोज को कई ‘वैज्ञानिक’ कारणों से निरस्त किया जाना चाहिए.
पहला तो यह कि देववाणी संस्कृत और अन्य भाषाओं की जो लिपि-पद्धति अनादि काल से रही है उससे भी प्राचीन पद्धति को कैसे स्वीकार किया जा सकता है. दूसरा यह कि ‘अरबी’ से समानता तो देशद्रोह माना जा सकता है. वह हमारी जातीय शुद्धता पर हमला है. इन दो गणितज्ञों को अग्रिम जमानत तुरन्त ले लेना चाहिए. तीसरा यह कि ऐसी सारी वैज्ञानिक खोजें अस्वीकार्य हैं जो हमारे प्राचीन ज्ञान को किसी और आलोक में देखने की ओर प्रेरित करती हैं. चौथा यह कि यह खोज हमारे जगतगुरु होने की प्रतिज्ञा से मेल नहीं खाती. आईआईटी शुरू से ही भारत-विरोधी खोजें करते रहे हैं: इनकी अभारतीय वैज्ञानिकता पर रोक लगाना चाहिए! अगर क़ानूनन संभव न हो तो हमारे हिंसक युवा दल प्रदर्शन-प्रहार-हिंसा द्वारा उन्हें भारतीयता के रास्ते पर ला सकते हैं!!
- अशोक वाजपेई (का सत्याग्रह.कॉम में लिखा व्यंग्य)
पहला तो यह कि देववाणी संस्कृत और अन्य भाषाओं की जो लिपि-पद्धति अनादि काल से रही है उससे भी प्राचीन पद्धति को कैसे स्वीकार किया जा सकता है. दूसरा यह कि ‘अरबी’ से समानता तो देशद्रोह माना जा सकता है. वह हमारी जातीय शुद्धता पर हमला है. इन दो गणितज्ञों को अग्रिम जमानत तुरन्त ले लेना चाहिए. तीसरा यह कि ऐसी सारी वैज्ञानिक खोजें अस्वीकार्य हैं जो हमारे प्राचीन ज्ञान को किसी और आलोक में देखने की ओर प्रेरित करती हैं. चौथा यह कि यह खोज हमारे जगतगुरु होने की प्रतिज्ञा से मेल नहीं खाती. आईआईटी शुरू से ही भारत-विरोधी खोजें करते रहे हैं: इनकी अभारतीय वैज्ञानिकता पर रोक लगाना चाहिए! अगर क़ानूनन संभव न हो तो हमारे हिंसक युवा दल प्रदर्शन-प्रहार-हिंसा द्वारा उन्हें भारतीयता के रास्ते पर ला सकते हैं!!
- अशोक वाजपेई (का सत्याग्रह.कॉम में लिखा व्यंग्य)