कभी कभी लगता है
मांग लूं वो दिन,
वो घंटे,
और कह दूं,
इनका इससे बेहतर इस्तेमाल भी हो सकता था.
कभी कभी लगता है
मांग लूं ज़िन्दगी,
चुरा के ले गये थे तुम.
और कह दूं ,
ये तो मेरी है, मेरा हक है इसपर!
कभी कभी लगता है
रूह से
खरोंच दूं तेरे निशां.
और कह दूं,
तुम्हें हक नहीं है
ता उम्र यहाँ बैठे रहने का.
कभी कभी लगता है,
तेरा लम्स, तेरी खुशबुयें
निकाल फेंकूं.
....लेकिन खुद को खुद से निकालना
इतना आसान तो नहीं!
फिर कभी कभी लगता है,
फिर खेलते हैं,
ये 'गेम'
जब तक कि मैं थकता नहीं,
तुझे अन्दर से दुखता नहीं.