Saturday, December 18, 2021

India As I Know: Socio-Economic Changes A Cooperative Society May Bring

 


इंटरनेशनल कोआपरेटिव अलायन्स (ICA) कॉपरेटिव (सहकारी) को "संयुक्त रूप से स्वामित्व वाले और लोकतांत्रिक रूप से नियंत्रित उद्यम के माध्यम से अपनी आम आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए स्वेच्छा से एकजुट व्यक्तियों का एक स्वायत्त संघ." के रूप में परिभाषित करता है. पिछली बार हमने देखा था कि किस तरह से जैतपुर कछया समिति और आईएफएफडीसी ने पर्यावरण और वनीकरण पर काम किया है. अब देखते हैं कि एक समिति क्या क्या सामाजिक आर्थिक बदलाव ला सकती है.

जब भी मैं सामाजिक बदलाव की बात करता हूँ मुख्यत: कुछ पैमानों पर तौलता हूँ- महिल सशक्तिकरण, शिक्षा का प्रसार व विकास, वैचारिक परिवर्तन, सरकारी योजनाओं तक लोगों की पहुँच और स्वास्थ्य.

जैतपुर कछया में 1997 के बाद से क्या क्या बदलाव आये इसके लिए मेरे पास कुछ लोग थे जिनसे बातें करके पता किया जा सकता था.

मैं समिति सचिव अनिल मिश्रा जी से बदलाव के बारे में पूछता हूँ. वो कहते हैं, " सर, ज्यादा तो नहीं कहा जा सकता लेकिन हमारे गाँव की महिलाएं अब पति से पीटे जाने पर विरोध करने लगी हैं. समिति की मीटिंग में हिस्सा लेने के लिए आती भी हैं और बोलती भी हैं. पहले चुप रह जाती थीं, बड़ों का लिहाज करती थीं. सच को भी सच नहीं कहती थीं. अब सर ऐसा नहीं है."

मेरे लिए ये छोटा बदलाव भी बहुत बड़ा बदलाव था. जो लोग ग्रामीण परिवेश के हैं वो इस बदलाव का बड़ा महत्त्व समझ सकते हैं.

समिति में कुल 140 सदस्य हैं, जिनमें से 60 महिलाएं हैं. जिन्होंने हरी साड़ी पहन कर 5-5 के ग्रुप बनाकर वन सुरक्षा की है. आईएफएफडीसी ने इस क्षेत्र में सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाये जिन्होंने अपने लघु उद्योग शुरू किये, जैसे आटा चक्की लगाई, दुकानें खोलीं, और उनमें से आधे से अधिक सफल भी रहे हैं.

मैं आगे और बदलावों की बात करता हूँ तो सोलंकी जी तपाक से बोल पड़ते हैं 'सर, समिति का एक असर तो इस तरीके से भी देख सकते हैं कि मेरा खुद का बेटा ही मेडिकल की पढाई कर रहा है. सर, लोगों ने बाहर से आने वाले साइंटिस्ट को देखा, अधिकारियों को देखा और अपने बच्चों को भी वैसा ही कुछ अच्छा बनाने का सोचा. आज हमारे गांव में पड़ोस के अन्य गांवों की अपेक्षा ज्यादा लोग ग्रेजुएट हैं और सरकारी नौकरी में हैं.' 

मैं धीमे-धीमे कुरेदना शुरू करता हूँ तो वे बताते हैं कि सामूहिक निर्णयन ने बहुत कुछ छोटे छोटे परिवर्तन लाये हैं- महज जैसे बेटी कि शादी के लिए कुछ धनराशि सामूहिक रूप से इकठ्ठा कर के जरूरतमंद को दी जाती है. एक साथ उठने बैठने से सामाजिक- जातिगत अंतर भी कम हुआ है.

'सर, इसके अलावा इस क्षेत्र में जहाँ आधे लोग लकड़ी कि चोरी से जुड़े धंधों से जुड़े हुए हैं. हमारे यहाँ के लोगों को समझ आया है कि वनों को बचाना सिर्फ वन विभाग का काम नहीं है, सामूहिक जिम्मेदारी है. आपको शायद ही हमारे यहाँ से कोई लकड़ी चोर व्यक्ति मिलेगा.'

मैं सब सुन रहा हूँ. 'और आर्थिक पक्ष?' मैं पूछता हूँ.

'सर हमारी समिति सच कहें तो हर सदस्य के परिवार के लिए साल भर का राशन तो नहीं जुटा पा रही है लेकिन साल में एक बार हम उन्हें गिफ्ट में कुछ जरूर देते हैं.' 3 चौकीदार हैं, जो अपने खेतों के साथ वन सुरक्षा भी करते हैं. शुरुआत में जब हम वृक्षारोपण कर रहे थे तो रोजगार उपलब्ध हुआ था. नर्सरी से कुछ लोगों को रोजगार मिल जाता है साथ ही गरीब लोगों को प्रूनिंग (टहनियों की आवश्यक काट छांट) के बाद की जलाओ लकड़ी फ्री में मिल जाती है.'

समिति के आय के स्त्रोतों में जलाऊ लकड़ी का बिकना, आईएफएफडीसी द्वारा नर्सरी के पौधों को खरीदना, जंगल में उगे फलों- आंवला और सीताफल का बिकना शामिल है. जिससे तरकरीबन वार्षिक 3-3.5 लाख कि कमाई समिति की हो रही है. एक 265 हेक्टेयर भूमि स्वामित्व वाली किसी भी समिति के लिए ज्यादा नहीं है किन्तु पर्यावरण पर काम करने वाली और वन-निधि संरक्षित करने वाली संस्था के लिए काफी है.

मैं आय के साधन बढ़ाने के उपाय जानने के लिए हरीश गेना जी से बात करता हूँ. वो अपने फ्यूचर प्लान के बारे में बताते हैं- 

1. सर, हमने टीएफआरआई (TFRI:Tropical Forest Research Institute) से लाख कल्टीवेशन के लिए एमओयू साइन किया है. 

2. एफआरआई देहरादून से एमओयू साइन है. हमें उच्च गुणवत्ता के पौधों का निर्माण नर्सरी से करना है.

3. समिति और आस पास कि समिति के पास सीताफल बहुत उगता है. इसलिए हम सीताफल से पल्प की प्रोसेसिंग मशीन लगाने वाले हैं.

4. स्थानीय देशज उत्पाद बिक्री के लिए ट्राइफेड से एमओयू साइन किया है जिसका विस्तार हम इस समिति तक भी कर रहे हैं.

5. वर्मीकम्पोस्ट पर भी हम काम करेंगे

6. पहले भी हमने सफ़ेद मूसली, अश्वगंधा जैसी औषधियां लगाई थीं, एक वर्ष यकायक से मार्केट बैठ गया तो यह फायदे का सौदा नहीं रहा किन्तु औषधि उत्पादन भी हम इस समिति में पुनः शुरू करेंगे.

वो आगे बताते हैं कि उत्तराखंड में आईएफएफडीसी ने तेजपत्ता से कई समितियों कि आय अच्छी की है, आसाम में समिति को टूरिज्म एक्टिविटी से जोड़ा है और सर्टिफाइड सीड्स के लिए भी प्राइवेट कंपनियों से एमओयू साइन किये हैं. समितियों की आय कैसे बढ़ाई जाए, इसके लिए आईएफएफडीसी के पास कोई एक्सपर्ट ग्रुप नहीं है. एक डेडिकेटेड ग्रुप बनाने का आगे प्लान जरूर है.

97वे में संविधान संसोधन द्वारा क्यों कोआपरेटिव शब्द अनुच्छेद 19(1)(स) में जोड़ा गया था. (जुलाई 2021 में उच्चतम न्यायलय के आदेशानुसार निरश्त किया गया) तब मुझे इसका महत्त्व समझ नहीं आया था. सहकारी समिति के सामाजिक आर्थिक उद्देश्यों को देख कर और एक समिति को बड़े पास से देखकर समझ आया.

किसी भी सहकारी समिति के सफल होने में 

1. लचीले एवं आवश्यकता, सुविधा अनुरूप सहकारी नियम

2. जिम्मेदारी व् जवाबदेही

3. पूँजी निर्माण में समर्थता 

का बड़ा योगदान होता है.

किन्तु सहकारी समितियों को नीति निर्माताओं और जनता दोनों के बीच आर्थिक संस्थानों के रूप में मान्यता कम ही दी जाती है और उनका आर्थिक- आत्मनिर्भरता में महत्त्व भी कम ही समझा जाता है. इसलिए अक्सर वे आर्थिक बदलाव में अधिक सफल नहीं हुई हैं.

जुलाई 2021 में सरकार ने सहकारिता मंत्रालय नाम से अलग मंत्रालय का निर्माण किया है. यह अलग मंत्रालय एक सराहनीय प्रयास है. देखते हैं हम सहकारिता के बाकि उद्देश्यों में आगे चलकर कितना सफल हो पाते हैं.

 जैतपुर कछया में सामाजिक बदलाव के दूसरे पैमानों के अलावा दो बड़े मानक: सरकारी योजनाओं तक लोगों कि पहुँच और स्वास्थ्य पर भी अच्छा काम हुआ है लेकिन समिति के अलावा इसमें अन्य सरकारी संस्थाओं ग्राम पंचायत और आंगनवाड़ी की भी महती भूमिका रही है.

जैतपुर कछया अपने उद्देश्यों में काफी हद तक सफल रही है और आगे बढ़ रही है. 

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क्या आपको देश की सबसे सफल कॉपरेटिव का नाम पता है?

नहीं पता?

उत्तर है-- गुजरात मिल्क मार्केटिंग फेडरेशन लिमिटेड (GCMMF)

क्या? नाम नहीं सुना? अमूल सुना है??

देश का सबसे बड़ा डेयरी प्रोडक्ट ब्रांड अमूल इसी का एक ब्रांड है. 1946 में जन्मे, आजाद देश से एक साल पुराने, 13 ज़िलों, 13000 गांवों में फैले इस कॉपरेटिव सोसाइटी के तकरीबन 36 लाख लोग सदस्य हैं.

अमूल को जिसने अमूल बनाया वो थे 30 साल इसके चेयरमैन रहे, मिल्कमैन ऑफ इंडिया श्री वर्गीज कुरियन जी. उनके बारे में और देश की सबसे सफलतम कॉपरेटिव ने लोगों में क्या सामाजिक आर्थिक बदलाव लाए इसके बारे में फिर कभी.

[आर्टिकल के तथ्य एक सैंपल डाटा और लोगों के साथ किये गए विमर्श पर आधारित हैं.

फोटो: समिति द्वारा संचालित नर्सरी ]

2017 में पहली बार #indiaasiknow टाइटल से लिखा था. बाकी सब यहां पढ़ा जा सकता है-

http://sadaknama.blogspot.com/search/label/India%20As%20I%20Know?m=0