Monday, November 2, 2009

ज़िन्दगी

कभी रिश्तों से दरकती ,
कभी रिश्तों से महकती,
कभी सपनों को दिखलाती,
कभी सपनों से बहलाती,
कभी औरों को अपनाती,
कभी अपनों से डराती,
मौत के दामन में, ज़िन्दगी की कसक,
रिश्तों से मिलती, ज़िन्दगी की महक.
कभी सजीव, कभी निर्जीव-सी,
कैसी अजीब है ये ज़िन्दगी!!

सहलाती, फुसलाती, हंसती-हंसाती,
दर्द को मेरे मद्धम बनाती,
मेरी रुलाई पे कभी नाम तेरा,
कभी तेरी रुलाई मेरी बनाती,
कभी तू ही रुलाती,
कभी तू हंसाती.
तेरा दामन मैं, तू मेरी ज़िन्दगी!!

पत्थर मुझे बनाया कभी,
फिर उस पे लिख मिटाया नहीं.
कागज़ से कच्चे रिश्तों की कहानी-सी,
दहकते अंगारों पे चलती दीवानी-सी,
अपनों के बीच में वीरानी-सी,
कितने रंगों में रंगी ज़िन्दगी!!

कभी रिश्तों से दरकती ये ज़िन्दगी.
कभी रिश्तों से महकती ये ज़िन्दगी.