रोते रोते हंसा दिया,
चार पल ढूंढ के,
पत्थरों से बह निकला,
कुछ दरारें ढूंढ के.
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खून के लफ्ज़ नहीं,
धब्बों से पहचान है.
गहरा है या मटमैला,
मौत ही दास्ताँ है.
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कर इबादत तेरी,
हम बेफिक्र हो लिए खुदा!
जब कहर ढाया गया,
गाज पहले हमपर गिरी!
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देखकर रास्ता मेरा,
सारा ज़माना हंस दिया.
फिर वक़्त के दरिये से,
सिर्फ हमही उबर कर निकले!
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आशिकी की आग थी,
देर तक जलती रही.
बुझी भी तो क्या बुझी,
जो तुझे फ़ना कर गई.
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कोई चार पल हंस दिया,
उन्हें भरोसा हो गया.
यहाँ हम भरोसा दिलाते,
आधी सदी गुजार दिए!
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हंस दो मुस्कुराकर,
क्या मिलेगा रुलाकर.
आज हम उल्फत में हैं,
तेरी मुस्कान की जरूरत है.
~ViV's