Monday, January 31, 2011

BakBak

मैंने एक बात सीखी, the great Indian thinking, एक गवर्मेंट Teacher महीने भर स्कूल नहीं जाता है, और बुराई सिस्टम की करता है, की यहाँ शिक्षा का स्तर डाउन हो रहा है. मध्य प्रदेश में पहली बार किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं, और हमारे कृषि मंत्री ( जो खुद ही Agricultural Science से Ph. D हैं) का कमेन्ट आता है कि ''किसान अपने  किये की सजा भुगत रहे हैं. पहले विदेशी खाद का उपयोग किया और धरती बंजर कर दी.'' वाह भाई वाह! मान गये, साल्ला गलतियां खुद करो, गन्दी policies तुम बनाओ, ओला राहत का पैसा अपने रिश्तेदारों को तुम खिलाओ और जब बेचारे पेट के मारे लोग खुद को मारने लगे तो अपनी बेहूदा सी बकबक लेकर शुरू हो जाओ. इन राजनेतिक गधों के कुत्तेपन की कोई हद ही नहीं है. आज राजधानी में मेला लगा, 'अन्त्योदय मेला' सारे प्रदेश के लोग आये एक hope के साथ की कुछ benifit तो मिलेगा उन्हें, और पता है हमारे CM ने उन्हें क्या दिया??  ठेंगा......किसी को कुछ भी नहीं, इन पीड़ितों के लिए सरकार  के  पास कुछ भी नहीं है.निकम्मी सरकार के निकम्मे लोग अच्छाई का मुखोटा लगाये सरकार चला रहे हैं और लोग यहाँ ये सहने पर मजबूर हैं.

 केंद्र में एक साहब ने १.७६ लाख करोड़ का घोटाला किया हुआ है, साल्ले को पता भी नहीं होगा की कितने शून्य होते हैं इसमें. विदेश मंत्री की कुर्सी पे एक येसा बंदा बैठा है जो अपने घर के relations पड़ोसियों के साथ भी नहीं सम्हाल सकता, देश के क्या सम्हालेगा. लोगों का कहना है SC है तो रिवार्ड दिया है, विदेश मंत्रालय के रूप में, जैसे साल्ला विदेश मंत्रालय मंत्रालय ना होकर लड्डू-पेडा हो गया हो, किसी नौकर ने अच्छा काम किया तो दो पेड़े और दे दिए.......भैया देश की बात हो रही है, मजाक नहीं, पूरे  सौ करोड़ लोगों का सबाल है तो मंत्रालय येसे ही कैसे बाँट सकते हैं. नीता रादिया जैसे लोबिस्ट यहाँ भाग्य विधाता बन गये हैं और NDTV जैसे chennels मंत्री बना रहे हैं, जैसे सरदार जी (PM) की औकाद कुछ भी नहीं है, वो सिर्फ स्टंप ले के बैठे हैं, आओ मिलो तो तुमपर भी ठप्पा लगा देंगे. किसी देश के प्रमुख नेता को इतना बेचारा मैंने कभी नहीं देखा ना ही इतिहास में पढ़ा है.
 
तंग आ गया हूँ में इन सब से, इस कीचड से, इस गन्दी व्यवस्था से. पिछले महीने के विधानसभा सत्र के pass रखे रहे मेरे पास, लेकिन मैं नहीं देखने गया, साल्ला इन जुटे-चप्पल फेंकते असभ्यों को देखने का मन ही नहीं किया, और मैंने वही pass बगल बाले अंकल को दिया तो वो ऐसे चहके जैसे लाइफ टाइम  ऑफर मिल रहा हो.

इनके कुत्तेपन ने संन्यास लेने को मजबूर कर दिया है, atleast सोचने पर मजबूर तो कर ही दिया है.
 
मेरे पापा आये हुए हैं, मुझसे मिलने. अगली बार दुनिया भर पिताओं के ऊपर...........

Sunday, January 23, 2011

Mumbai Diaries (Dhobi Ghat), review and more....

हर Movie में कोई ना कोई किरदार मुझे अपने करीब लगता है, और 'धोबी घाट' का अरुण तो मुझे अपने बिलकुल करीब लगा. वो Artist है, serious है लेकिन Simple भी. कभी वो इतना फालतू है कि यास्मिन के Video घंटो देखता रहता है और कभी इतना Busy कि Paintings से वक़्त ही नहीं मिलता. वो जिस तरह से Serious होकर सोचता है मुझे अच्छा लगता है. उसकी creativity को Area चाहिए, broad एरिया. इसीलिए उसे पुरानी मुंबई में फ्लैट चाहिए. ऐ फिल्म ही किसी epic के पहले अध्याय कि तरह है या किसी महाकाव्य के कुछ अधूरे पन्नों कि तरह जिसके बाकी पन्ने लिखना कवि भूल गया हो. मुन्ना बिलकुल मासूम है, बोलते वक़्त आँखे मिचकाता है, और एक ही वाक्य में बात ख़त्म कर देता है. ...और उसका वो कहना, कि वो दरभंगा बिहार से है, लेकिन घर कि याद नहीं आती क्यूंकि वहां उसे खाने कम मिलता था. मुंबई पता नहीं कितनों के लिए  एक स्वप्न कि तरह है, जाने कितने लोग यहाँ आये और मुन्ना कि तरह ही झुग्गियों में लगभग जानवरों सी ज़िन्दगी जी रहे हैं. मुन्ना चूहे भी मारता है (मुझे अभी पता चला कि गवर्मेंट ने झुग्गियों में चूहे मारने बाले लगा रखे हैं, जिससे प्लेग ना फैले.) और उसे अपने इस काम से नफरत है. लेकिन उसे 'शाई' से प्यार हो गया है. 'शाई' कुछ अजनबी सी है, खुद से ही. banker है लेकिन शौक Photography है. साईं को अरुण से पहली बार में ही प्यार हो गया जैसे उसे भी किसी कि तलाश थी जो उसी कि तरह अधूरा हो. उसे शायद US की साफ़ सड़के अच्छी नहीं लगी इसीलिए Shining India में असली भारत की तस्वीर ले रही है. और सबसे अहम् 'यास्मिन की दीदी' के वो चार विडियो ख़त..पूरी कि पूरी फिल्म उन्ही पे टिकी है. ज़िन्दगी कि जंग में कभी अरमान हमपर भारी होते हैं, कभी ज़िन्दगी और कभी अवसाद. जब अवसाद भारी होते हैं तो हम जंग हारना शुरू कर देते हैं. कितने अरमान के साथ उसे उसके माँ-बाप ने एक मुम्बईया से ब्याह था और वही उसकी ज़िन्दगी ले गया. उसकी आत्महत्या एक हत्या ही तो थी.
       ज़िन्दगी  में सपने पाल लो तो वे हमे अपनी ज़िन्दगी जीने नहीं देते और पूरे हो जाएँ तो बस जीवन ही जी लिया, एक पल में ही. कितनों के सपने ढल गये, कितनों के बह गये. लेकिन मुंबई वहीं खड़ा है, सागर किनारे अपने से बतियाता. Mumbai Diaries यही है, एक क्षितिज जो सपनों को दर्दनाक हकीकत से मिलवाता है.  किरण राव तुम्हें सलाम!

Thursday, January 13, 2011

मुनि क्षमासागर जी एक बहुत बड़े संत का नाम है, जिनका कहा और लिखा किवदंती की तरह प्रसिद्ध हुआ है, 'भारतीय ज्ञानपीठ' द्वारा प्रकाशित उनके काव्य संग्रह 'अपना घर' में से मैं यहाँ दो कवितायें प्रस्तुत कर रहा हूँ. प्रस्तुत कवितायें पढ़कर मुनि श्री का जादू शायद आप पर भी छा जायेगा.

सीढ़ी हूँ

मैं तो
लोगो के लिए
एक सीढ़ी हूँ,
जिस पा
पैर रखकर
उन्हें ऊपर पहुँचना है.

तब सीढ़ी का
क्या अधिकार
की वह सोचे,
की किसने
धीरे से पैर रखा
और कौन
उसे रौंदता चला गया.
              
               -मुनि श्री क्षमासागर जी
............

स्वयं अकेला

उसने
चाहा कि
उसके सब ओर
सागर हो
और अब
जब उसके
सब ओर
सागर फैला है,
वह स्वयं
एक द्वीप कि तरह
निर्जन
और अकेला है.

                 -मुनि श्री क्षमासागर जी

Saturday, January 8, 2011

बकबक

     'मैं गाँव से हूँ, मुझे नहीं पता क्या सच है क्या नहीं. लेकिन विकास पंहुचा हो या नहीं , साम्प्रदायिकता ज़रूर वहां पहुच गई है.' मैं चिल्ला कर कहता हूँ.
       'चिल्ला क्यूँ रहे हो?'
       'तो तुम अपनी बक-बक कब बंद करोगी? caste, caste, caste, भाड़ में गई ये caste, ये religion, ये बकबास.'
       'तो मैं क्या करूं? मैंने बनायी थी क्या?' .....बस मैं अपने पापा के oppose मैं नहीं जाउंगी.'
       'हां मुझे पता है, और मैं भी यही समझा रहा था. हम आगे तक नहीं जायेंगे लेकिन उसके लिए caste reason नहीं होगी, permission होगी. तुम्हें पता है? तुम्हें अपने माँ-बाप से ज्यादा कोई प्यार नहीं कर सकता, कभी नहीं.' मैं शालीनता से कहता हूँ.
       'ये 'माँ-बाप' वाला dilogue कहाँ से मारा?' वो उसी अदा से कहती है.
       'मेरे TPO ने बोला था एक दिन.' वो सुन कर मुस्कुरा दी. 'लेकिन एक बात बताओ, मुझे हमेशा येसी ही लडकियां क्यों मिलती हैं?' मैंने धीरे देकर कहा.
      'तुम्हारी choice ही गन्दी है.''
      'क्यूँ मैंने तुम्हें choose नहीं किया था.'
      'हाँ मैंने किया था, अब खुश! तुम कितने proudy हो. उसको तो तुमने किया था. हाँ, पता, वो तुमसे ज्यादा proudy है......तभी ना तुम्हें पानी पिला गई. हाहाहा.....' खिलखिला दी. उसका हंसना हमेशा अच्छा लगता है.
     'वो मेरी गलती थी.'
     'हाँ मुझे पता है, मेरी गलतियों पर भी तुम्ही सॉरी बोलते हो. हमेशा तुम ही गलत होते हो. देश के किसान मरे तो दुःख तुम्हें होता है, घोटाले हों तो भी तुम्हें दुःख होता है. जैसे सारे काम तुमने ही किये हों? मुझे पता है, तुम गलत नहीं हो. इश्क कोई खता नहीं, और उसे जताना भी.' वो कुछ serious हो कर बोली.
अब मेरी बारी थी, 'ये लास्ट बाला dilogue तुमने कहाँ से मारा?'
    'वो पढ़ा था कहीं, सिर्फ तुम्ही नहीं पढते-लिखते, कुछ-कुछ मैं भी करती हूँ.'
    'हाँ एक और बात, तुम अच्छे हो, thats why i love you, और मेरी choice कभी गलत नहीं होती.....'हम्म्म्म....'now i am leaving, भैया आ गये होंगे घर पर. तुम्हें छोड़ दूं? गाड़ी कब चलाना सीखोगे. तुम्हें तो बस Aptitude ही आता है, बस और कुछ नहीं.... बैठो....'

'..........काश तुम गलत होती....मैं तो बस उसे सही होते देखना चाहता हूँ. काश तुम मुझे ही गलत ठहराती..........'

*Story and Feelings are Real but not mine.

Wednesday, January 5, 2011

इंसान इंसान को कहाँ छूते हैं!

तेरे जो हैं, तूने लूटे हैं,
मेरे जो हैं, मेरे बूते हैं.

तेरा हर झूठ सच्चा है,
मेरे सारे ख्वाब ही झूठे हैं.

मुस्कुराने में ज़रा वक़्त लगेगा,
अपनी रूह से ही आप रूठे हैं.

खुदा भी मेरा हमराही है,
उसके भी कई ख्वाब टूटे हैं.

बड़ी मुद्दत से बनाया इंसान,
इंसान इंसान को कहाँ छूते हैं!

Sunday, January 2, 2011

.....रख सकता हूँ अपना ख्याल माँ!

तो तुम हो वो......
जो अनचाहे ही,
आ जाते हो,
कभी भी-कहीं भी,
बेवजह ही,
बिन कहे ही.

मैं नहीं चाहता,
इस तरह तुम यकायक से आओ..
बिन कहे ही,
मेरी संग चलो,
मुझे बिन बताये ही.

मैं रख सकता हूँ अपना ख्याल.
बच्चा नहीं रहा अब. 

तुम्हारे जन्म देने से अबतक,
पूरे कर लिए हैं कई पड़ाव.
......और फिर हमेशा ही बनी रही है आपकी छाँव.

अब मैं बच्चा नहीं रहा ना!
तो रख सकता हूँ अपना ख्याल माँ. 

~V!Vs***