Friday, December 17, 2010

कुछ अधूरे पन्ने......

May 2004....
पापा का हॉस्पिटल भी अजीब है, उसने मौत  को ज़िन्दगी से आगे निकलते देखा  है. जैसे उसे नहीं पता मौत क्या होती है, ज़िन्दगी क्या. मैं खुश हूँ दसवीं का रिजल्ट आया है, पर उस ढाई साल के मासूम का क्या जिसे आग का मतलब भी पता नहीं था.'अब ये मेरे बस में नहीं है छतरपुर ले जाना पड़ेगा'. Basic Treatment के बाद पापा ने सिटी रेफेर करने को बोल दिया. 'डॉक्टर साब पैसे नहीं हैं'. पापा ने चुपचाप 500 का नोट निकाल कर दे दिया. वो दुखिमन दुआ देता हुआ चला गया. 'अब ये नहीं बचेगा 80% जल चुका है.' पापा ने मेरी तरफ मुड़ते कहा. पापा की कोरें भीगी हुई हैं.
ये ख़ुशी भी अजीब होती है, खुश रहने कहाँ देती है!

March 2008...
इंजीनियरिंग मैं 'Sad Stories' नहीं होती, लेकिन Panjaabi sir को देखता हूँ तो  ये बात भी झूठ लगने लगती है. वो गर्व से बोलते हैं, वो 'Jyoti Talkies Circle' है  वो मेरे बेटे ने डिजाईन किया है...फिर 80 साल की बूढी आँखें छत ताकने लगती हैं. इस उम्र में Daily Basis पे  Lectures लेना उनका शौक है मजबूरी, उनकी कांपती हड्डियां बता ही देती हैं. आज बस इतना ही, वो Basic Civil की किताब उठा दरबाजे की तरफ बढ जाते हैं. मैं चुपचाप उन्हें जाते देखता हूँ. कहते हैं बहुत सी चीजें छुपाये नहीं छुपती.

May 2008...
कॉलेज  के एक Senior  के पापा  बीमार  हैं, उसके दोस्त  इलाज़  के लिय पैसे जोड़ रहे  हैं......लड़का हॉस्पिटल में है......उसके दोस्तों  के चेहरों  में  मुझे खुदा  नज़र  आता  है. एक Classmate  ने  100 रूपये  दिए  हैं.......ये 50 रूपये  वापस  लो, 50 रूपये से ज्यादा मत दो, तुम्हारे घर  से भी  तो  सीमित पैसे आते हैं.... बाहर सिगरेट  के टपरे पर  आज  कुछ  कम भीड़ देख  अच्छा लगता  है.


Oct 2008...
अबे पी ना, पी के देख, सोमरस है....मैं मुस्कुरा कर मना करता हूँ. ....अब  पेपर  उठा  लिया  हाथ  में  उसने, अबे ये लोग पी  कर गाड़ी  क्यूँ  चलाते  हैं, मरेंगे  ही साले, वो पेपर पढ़ के बोलता है...... उसे भी 10km दूर अपने रूम जाना  है, रात में ही...... अबे अभी तो 3 ही हुए हैं, 5 तक तो मुझे होश रहता है..... मैं मुस्कुराता हूँ.

Jan 2009...
मैं इस जगह नया नया रहने या हूँ..चाय के टपरे पर चाय पी रहा हूँ. 'भैया एक रूपये देदो ना.' चिथड़ों में एक 7-8 साल का लड़का पैसे मांग रहा है. 'अबे जा यहाँ से.' चायबाला चिल्लाता है. मैं एक रुपया दे देता हूँ. 'कितनों को पैसे दोगे भैया, यहाँ बहुत आते है.'....एक तरफ काले, बदसूरत लड़के मायूस से पैसे मांग रहे हैं....वहां HPCL के ग्रौंद पे गेंद खेली जा रही है. 'इनमें और उनमे सिर्फ एक गेंद का फ़र्क है.' यश दार्शनिक अंदाज़ में दुखी हो कहता है. मैं बस हाँ में जबाब देता हूँ.

Oct 2009...
फ़ोन बजा 'पचमढ़ी चलोगे आज रात?'...'किससे?'....'bike से जा रहे हैं, चलना हो तो चलो.'  मामी बैठी हुई हैं, 'विवेक, bike से मत जाना, मना कर दो.' मैं मना कर देता हूँ. सुबह फ़ोन बजा-'विवेक वो accident हो गया है, नर्मदा हॉस्पिटल पहुँचो.' मैं पहुँचता हूँ, सुबह 5.00 बजे निकले थे पचमढ़ी को, होशंगाबाद के पहले accident हो गया. यही एक गाड़ी थी जिसपे 2 लोग बैठे थे........अगर मैं गया होता तो इसी पे बैठता, सोचकर मैं सिहर उठता हूँ. ..........पहली बार किसी funeral में गया हूँ, एक्सिडेंट के बाद एक महीने ज़िन्दगी से लड़ते-लड़ते दोस्त नहीं रहा. बिहार से था...उसके पापा का चेहरा देखने की हिम्मत नहीं होती......लौट के आ बाथरूम में रो पड़ता हूँ. नहाते हुए आंसू भी धुल से जाते हैं..............एक महीने बाद सब नोर्मल है.

April 2010...
'मैं उसी से शादी करूंगी' वो मुस्कुरा के बोलती है......मैं Coaching के बाद Daily उसे स्टॉप तक छोड़ने जाता हूँ.  मेरे से 3 साल बड़ी है लेकिन मैंने आज तक उससे अच्छी लड़की नहीं देखी. उसे एक लड़के से प्यार, पंजाबी है लड़का, वो ब्रह्मिन....उसकी शादी तय हो रही है कहीं और, लड़का 1 Lakh per Month कमाता है, MNC में है. वो घर बालों को अपने प्यार के बारे में बता देती है. मैं उसे मुर्ख कहता हूँ.....लेकिन शायद वो अच्छी है, तो अच्छी है....उसके घर बालों ने अब उसका घर से निकलना बंद करवा दिया है. इश्क के पहरे क्यूँ हैं?

Aug 2010...
मेरे यहाँ जुलूस निकला है, मैं भगवान् की कांवर उठाये हुए हूँ. फ़ोन बजता है,फ़ोन पे Sumit है 'वो 'उसके' पिताजी नहीं रहे.' वो दुखी हो बोलता है. वो मेरे सबसे अच्छे दोस्त के बारे में बात कर रहा था.मैं निःशब्द हूँ. एक प्रश्न है, हम भगवान् क्यूँ पूजते हैं? अपनों की सलामती के लिए ही ना!
मैंने मंदिर जाना छोड़ दिया है.

Dec 2010...
कुछ नहीं. कुछ अधूरे पन्ने स्याह भी हैं.

Sunday, December 12, 2010

kUcHh मजेदार....

ज़िन्दगी अजीब चीज है, कभी ना ख़त्म होने बाला ड्रामा......'तुम मुझे ये कैसे भूल सकते हो......तुमने मुझे रात को 3.00 बजे क्यूँ नही उठाया?' हे भगवान् जब तुम्हें पढना है तो अलार्म लगा के सोओ ना......दोस्त और उसकी 'उस' के साथ कबाब में हड्डी बना मैं उनकी बेतुकी बातें सुन यही सोच रहा था. पर ये बेतुकी भी कितनी अजीब होती है.....जब हमारे साथ होती है तो अच्छी लगती है....और ओरो को करते देखते है तो 'बेतुकी'.
                         खैर, बिल आया '100' रूपये.........कुल तीन कॉफ़ी का बिल. 'इतना तो एक मजदूर कमा पाता है, दिन भर काम करने के बाद और यही 100 रूपये उसके घर के आठ आदमियों का पेट भरते हैं वो भी दोनों वक़्त की'........हमारी इस बेवक्त-की-बेतुकी का साथ दोस्त ने भी दिया, भरपूर. लेकिन मैडम गुस्सा....और हमारे आशिक मियाँ अब मनाने में जुट गये....बेचारे दोस्त की फ़िक्र नही.......ये आशिकी है यारा....खैर ये हमें भी अच्छा लगता था कभी, सताना किसी को, रुलाना किसी को, मनाना किसी को....लेकिन वो आशिकी ना थी, मियाँ हम अब तक ना समझ पाए वो क्या था.
 खैर पोपुलेशन बढ रही है, लगता है आत्माएं आज कल जहन्नुम से निकल सीधा आकर आदमी बनने लगी हैं. भगवान् ने पुराना ८४ लाख योनियों का सिस्टम चेंज कर दिया है. लेकिन यहाँ भी कित्ता सुख है.......'चेतक ब्रिज' के फुटपाथ पे लत्तो में पड़े आदमी को हमने देखा और 10 डिग्री की कडाके की ठण्ड में इग्नोर करते हुए हम आगे बढ गये......सी सी करते हुए.
 इंसानियत मर गई है और यही हम कह रहे है, ब्लॉग पे.......और अभी अभी छोड़ आये हैं लत्तो में लिपटा वो इंसान! यहाँ सब मेरे जैसे ही हैं...... घर में बैठ भ्रष्टाचार बढ़ने की गपशप करने बाले. ...भले ऑफिस में टेबल के नीचे पैसे सरकाए हों.
   "बचपन में सुना था 'बेटा पढ़ लो, काम आयेगा.' ये धोनी क्यूँ नही अपने माँ-बाप की सुनता था???? " अच्छा SMS था ना..अभी अभी मोबाइल बजा है. बेचारी मिडिल-क्लास कुछ सोचना ज़रूर शुरू कर दी होगी.
मियाँ मोबाइल भी अजीब है, एक अनपढ़ भी ओपरेट कर लेता है और हम बेचारे आधी B.Tech. सिग्नल्स, सिस्टम्स, और Mobile Communication पढने में गुजार दिए.
आज अखबार में पढ़ा है, भ्रष्टाचारी में देश 17 पायदान और बढ़ गया......हो भी क्यूँ नहीं एसा.....बेचारे हम भी अपने पूर्वजों को देख-देख अपनी सरकारी नौकरी की आस लगाए बैठे हैं.
अजीब ज़िन्दगी है, एक साहब मिले, उन्हें इस बार पिताजी ने पैसे नहीं भेजे थे......उनका इंजीनियरिंग का साढ़े पांचवा साल है और अभी 6 महिना और बचे हैं....साबजी हमारे सीनियर थे तो हम अदब से मिले...... वो रोना शुरू हो गये...'पापा ने पैसे नहीं भेजे हैं ये तो हमारा हक है कम से कम हक के पैसे तो भेजते'. ये अजीब देश है, अपने कर्त्तव्य से पहले यहाँ हक सिखाया जाता है....और ज़िन्दगी भर हम उसे गुनगुनाते रहते हैं. फिर बेचारे उसी हक को पाने घूस देते हैं, और घूसखोरी  को लेकर रोते हैं. तंत्र वेतंत्र है, कहने को अनंत है.......फिलहाल, आज की बकबक ख़त्म.

Friday, December 10, 2010

a Story, my Story.

Place : Room 207 of my college.
Time: 230pm
Situation: External faculty taking viva.
Batch: Mera batch Bhai!
External: wts ur name?
me: sir 118..
External: name! name, name.
me: Oh! sorry sir Vivek.
External: Sorry Sir ya Vivek??
me: Vivek
External: kya pada?
me: Antenna.
External: I know, abe mei isi subject ka viva le raha hu.........isme se kya pada? ....... Achha define Slotted antenna.
me: Sir, ummmmmmmmmm.....................mmmmmmmm........mm. .......
.............. ................ .........       ..........
External: dont know!!!.....Beta Aish kar.


~
So, its the story of today's viva....... Lagi padi hai. Not a single unit prepared........even not a single topic. I dont know the first topic of first unit-slotted antenna.


Lag gai Bhai  lag gai, vaat lag gai. and Sone Pe Suhaga is what im doing.........just blogging, chatting, reading magazines, sleeping.
                        And offcource, my EQ (Emotional quotient) is more than  IQ........so, kaha kaha ke emotions aa-aa kar mujh pe Emotional Atyachaar karte hai, pata hi nhi chalta.

Saturday, December 4, 2010

wtf, i dnt wanna use my blog like a diary, but wt im doing is jst a shit! exams r on head (sir pe bansi baja rahe hai) nd im reading blogs, chatting and sleeping.......god will really punish me!