Wednesday, December 6, 2017

India As I Know: Media In India

यह 16 दिसम्बर 2013 की शाम थी. निर्भया केस को एक वर्ष ही हुआ था और सुबह से News Papers से लेकर Facebook, Twitter पर इसी से सम्बंधित ख़बरें थीं.

यहाँ तक की मेरे ऑफिस में भी इसी से सम्बंधित चर्चाएँ हुई थीं. करीब शाम आठ बजे मैंने ऑफिस से आकर टीवी चालू किया. एक प्रसिद्ध न्यूज़ चैनल पर ‘एक और निर्भया’ नाम से स्पेशल रिपोर्ट आ रही थी.

रिपोर्ट देख मैं चौंक गया. यह उर्शिद अनवर (बदला हुआ नाम) और उनके NGO में काम करने वाली एक लड़की की खबर थी. मैं इस मामले के बारे में पहले से वाकिफ था. उर्शिद मेरे फेसबुक मित्र थे और केदारनाथ हादसे के बाद Rescue and Reconstruction Mission में काम कर रहे थे इसलिए मैं उनसे प्रभावित था. लड़की ने रेप की शिकायत उनके खिलाफ पुलिस में डाली थी और उर्शिद ने भी झूठी शिकायत दर्ज करने के खिलाफ पुलिस में शिकायत की थी. मैं सच्चा कौन है नहीं जानता किन्तु ये देश का दूसरा सबसे बड़ा न्यूज़ चैनल उर्शिद को गुनाहगार बना पेश कर रहा था, जबकि इस केस में कोई पुलिस इन्वेस्टीगेशन भी नहीं हुई थी. पूरे एक घंटे की खबर में कोई ‘खोजी पत्रकारिता’ जैसे कोई गंभीर सबूत भी पेश नहीं किये गये और उर्शिद को गुनाहगार ठहरा दिया गया.

मैं इस प्रोग्राम के बारे में उर्शिद को बताना चाहता था किन्तु फेसबुक खोलने पर पता चला कि उन्हें यह कई लोग बता चुके हैं. कई उनपर आक्षेप लगा रहे हैं तो कुछ एक को उनसे हमदर्दी भी थी.

अगली सुबह ऑफिस जाते वक़्त बस में मैंने फेसबुक खोला. किन्तु जो देखा वो भयानक था. उर्शिद ने छठवे माले से कूदकर आत्महत्या कर ली थी.

ये भयानक इसलिए था क्यूंकि न कोई इन्वेस्टीगेशन हुई थी न पुलिस ने उर्शिद के खिलाफ कोई चार्जशीट फाइल की थी.  एक न्यूज़ चैनल द्वारा TRP और Viewers की लालसा में प्रोग्राम किया, जिससे एक व्यक्ति ने बदनामी के कारण आत्महत्या कर ली थी.

यह हमारा दसवां भारत है- गैर ज़िम्मेदार, TRP Hungry मीडिया का भारत!

सच तो ये है, यह आत्महत्या से ज्यादा हत्या थी, क्यूंकि ये गैर ज़िम्मेदारी से की गई रिपोर्ट के कारण आहत व्यक्ति द्वारा की गई आत्महत्या थी किन्तु इसमें गुनाहगार कोई नहीं माना गया! ना हत्या के लिए न आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए. यहाँ तक की 2017 में जब मैंने उस पत्रकार को फेसबुक पर कहा तो He was proud of that report!

मीडिया ट्रायल्स और गैर ज़िम्मेदार रिपोर्टिंग भारत में कोई नई घटना नहीं है. लेकिन ऐसा पहली बार हुआ था की मैं परोक्ष रूप से इससे प्रभावित हुआ था.

इससे पहले 2008 का मुंबई अटैक देखिये- वहां टीवी लाइव रिपोर्टिंग के कारण आतंकवादियों को फायदा और मदद मिली थी! उनके आका उनके लिए इंस्ट्रक्शन लाइव कवरेज देखकर ही दे रहे थे!

सच तो ये है, प्रिंट मीडिया के लिए भारत में प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया के रूप में एक संस्था तो है तो रिपोर्टिंग को Review करती है और गलती पर Fine चार्ज करती है किन्तु टीवी मीडिया के लिए सरकार ने ऐसी कोई संस्था नही बनाई है. नेशनल ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन की एक संस्था है जो सेल्फ रेगुलेटरी है और अधिकतम मात्र 1 लाख का Fine लगाती है. और सेल्फ रेगुलेटरी होने के कारण  Passive भी है.

मीडिया ट्रायल्स की हद तो तब हो गई जब 2015 के JNU केस में बिना सबूत तथा Doctored Videos द्वारा कन्हैया कुमार, उमर खालिद को तथाकाहित ‘राष्ट्रद्रोही’ बताया गया और उमर खालिद के सम्बन्ध तो टेररिस्ट से बता दिए गये! देश की सबसे अच्छी यूनिवर्सिटी को राष्ट्रद्रोहियों का अड्डा कह दिया गया. लगभग तीन साल बाद भी बिना किसी सबूत के लोग कन्हैया और उमर को फेसबुक, ट्विटर पर गालियां देते मिल जाते हैं.

ये तमाम सबूत हैं की कैसे बेलगाम और गैर-जिम्मेदार मीडिया लोगों की जिंदगियां तबाह कर सकता है और देश में ओपिनियन (Opinion) गढ़ सकता है.

उद्योगपतियों द्वारा चैनल्स खरीदने और उनके राजनेतिक संबंधों के कारण ये संकट और भी गहराया है. उत्तर प्रदेश चुनाव दौरान दैनिक जागरण द्वारा (जिसका मालिक एक राज्यसभा सदस्य है) बीजेपी के सपोर्ट में आचार संहिता का उल्लंघन करते हुए ओपिनियन पोल प्रकाशित करना इसका ताज़ा उदाहरण है.

रवीश कुमार अपने ब्लॉग पर लिखते हैं की मीडिया को अधिक जिम्मेदार बनाने एक केंद्रीय संस्था होनी चाहिए जो झूठी रिपोर्टिंग पर कड़ी सजा दे सके. साथ ही मीडिया में विभिन्न क्षेत्रों से- जैसे Doctors, Educationalists, Engineers को आना चाहिए जिससे बेहतर कवरेज हो सके और अधिक रेस्पोंसीबल ख़बरें आ सकें. मैं उनकी बात से काफी हद तक सहमत हूँ.

फ़िलहाल हमारा भारतीय मीडिया निम्न समस्याओं से गुजर रहा है-

१.      Media Education के लिए  IIMC के अलावा अन्य कोई ढंग का संस्थान नहीं है.  भारतीय मीडिया एजुकेशन और एथिकल एजुकेशन दोनों की कमी से गुजर रहा है.
२.      सरकारी रेगुलेटरी संस्था का अभाव.
३.      इन-हाउस प्रशिक्षण का अभाव. ज्यादातर मीडिया हाउस अपने कर्मचारियों को समयबद्ध ट्रेनिंग उपलब्ध नहीं कराते हैं.
४.      भारतीय मीडिया में कोड ऑफ़ एथिक्स का अभाव.
      
   एक Comparison लें तो पेरिस के Charlie Hebdo Attack के बाद मैं फ्रांस के न्यूज़ चैनल्स देख रहा था. उनके प्रोग्राम में न कोई ओपिनियन थी, न Haters Generate करने की कोशिशें थीं, न चिल्ला चिल्लाकर दीपक चौरसिया की तरह राष्ट्रद्रोह के तमगे बांटे जा रहे थे. खालिश न्यूज़ वो भी शांत तरीके से चल रही थी. माहौल में भय को कण्ट्रोल करने की कोशिशें मीडिया द्वारा हो रही थीं, न की भारतीय मीडिया की तरह भय को क्रिएट करने की!


हमे ऐसे ही जिम्मेदार, ईमानदार, प्रभावी तथा निष्पक्ष मीडिया की दरकार है.

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References:
Indian Express and Dainik Bhaskar coverage of JNU Case
Indian Express coverage of Mumbai Attack
nytimes coverage of Charlie Hebdo Attack
Ravish's blog- naisadak.org
TV news programmes
Press Council of India website
Wikipedia pages of Charlie Hebdo Attack, Mumbai Attack, Nirbhaya Case
nbanewdelhi.com