Monday, February 26, 2018

[The Blue Canvas] ५

एक उम्र के बाद आपको पता चलता है कि पैसे ने बहुत कुछ डिसाइड कर दिया है... आपका करियर, दोस्त, साथ उठने-खेलने वाले लोग, रिश्ते और रिश्तेदार और यहाँ तक की प्रेम भी!
---

एक दोस्त जो हमेशा ज़िन्दगी के नुस्खे दिया करता था इश्क के मोड़ पे फ़ैल हो जाता है... तब आपको एहसास होता है कि नुस्खे और असल ज़िन्दगी में बड़ा फ़र्क है.
 ---

वो लड़की जो मात्र दो महीने लड़के के साथ लिव-इन में रही है और बेवजह ही अलग हुई है एक रात लड़के को फ़ोन करके कहती है ‘तुमसे बिछड़े पांच साल हो गये यार लेकिन तुमसे बिछड़ नहीं पाए. एक अच्छा कमाऊ पति है लेकिन पता नहीं कहाँ क्या कम है.’

लड़के को ऐसा ही कुछ महसूस होता है लेकिन इस लड़की के लिए नहीं किसी और के लिए... पता नहीं हम दिल के किस हिस्से में कौन सा जज्बात छुपाये जी रहे हैं कि जी ही नहीं पा रहे हैं.

लड़का ‘सेम हेयर’ कह के फ़ोन काट देता है.
---

लड़की लड़के से कहती है ‘ मैं नहीं हूँ तो क्या... तुम खुश रहना सीखो, मेरे बिना जीना सीखो.’

लड़का हँस देता है. फिर पंद्रह मिनट तक खुश हो के बातें करता है जैसे बेहद खुश है वो.... और फ़ोन काटते ही रो देता है.

लड़की जो उसी चाँद के नीचे है जिसके नीचे लड़का, लड़के का रोना नहीं देख पाती... चाँद देख के भी नहीं बता पाता.
---

मैं उस लड़के को ढाढस देना चाहता था जो अपनी प्रेमिका को ‘आई लव यू एनफ टू लेट यू गो पीसफुली’ कह चला आया था और अब सड़क पे चलते चलते ही फफक फफक के रो देता है तो कभी उस लाइब्रेरी में जहाँ मैं बैठता हूँ.


मैं दुखी हूँ की उसके खुद की जान लेने की आखिरी कोशिश तक उसे दिलासा क्यूँ नहीं दे पाया.

#TheBlueCanvas

Thursday, February 22, 2018

[ The Blue Canvas ] ४

मुझे सिर्फ रातें नहीं बितानी पूरे पूरे दिन गुज़ारने है तुम्हारे साथ मुझे बनना है हिस्सा तुम्हारी सुबह की अलसाई हुई अंगड़ाई का और फिर पी लेनी है
तुम्हारे हिस्से की थोड़ी सी चाय!
नहीं करनी सुबह तुम्हारी किसी गुड मॉर्निंग के मैसेज से बल्कि तुम्हारे माथे को चूमके वहाँ सूरज बिठा देना है!!
मुझे मैसेज वाले ब्लू टिक नहीं इकरार देखना है तुम्हारी आँखों में और तुम्हारी उस शरारती मुस्कान को सिर्फ़ फ़ोन पर ही नहीं महसूस करना बल्कि सामने से देखकर उसे दिल में उतार लेना है!
तब मिलना है तुमसे
जब तुम सबसे बेतरतीब और बेढंगी हालत में हो ताकि मैं बता सकूँ तुम्हें कि तुम कैसे अब भी
इस दुनिया की सबसे खूबसूरत लड़की हो!
मुझे तुम्हारे साथ सर्दियों की रात और गर्मियों का दिन बनना है ताकि बिता सकूँ मैं तुम्हारे साथ अपना सबसे लंबा वक्त!
मुझे करना है तुम्हारे साथ घर का हर काम इसलिए नहीं कि मुझे वो पसंद है, दरअसल मुझे तुम्हारे हाथों को छूने का एक बहाना चाहिए!
मुझे नहीं चाहिए सिर्फ़ तुम्हारी हँसी बल्कि मुझे वो हर बात सुननी है जिससे तुम्हारी पेशानियों पर बल पड़ता है और जिसको कहते समय कांप उठते है तुम्हारे होंठ ताकि मैं मिटा सकूँ इस दुनिया से ऐसी हर एक बात का वजूद!
मुझे तुम्हारे साथ बैठके माँगना है तुम्हें और तब तक देखना है तुम्हें जब तक मैं भर ना जाऊँ तुम्हारी आंखों में और देख सकूँ उनमें अपना मुस्कुराता हुआ अक्स!
मुझे दिन भर के हजार किस्सों के बीच आने जाने वाले तुम्हारे चेहरे का हर रंग देखना है और उसमें हमारे इश्क़ का लाल रंग मिलाके उन्हीं रंगों से अपनी दुनिया सजा लेनी है!
यकीन मानो
मुझे पूरे पूरे दिन गुज़ारने है तुम्हारे साथ, मुझे एक पूरी जिंदगी गुज़ारनी है तुम्हारे साथ!!

#TheBlueCanvas

Monday, February 19, 2018

एक अंडा फूट गया था

मैं बदहवास घर के चप्पे चप्पे में तुम्हें खोजता हूँ
लेकिन तुम नहीं मिलते
उन दीवारों में भी नहीं जिनसे टिककर मैंने तुम्हें चूमा था.
तुम्हरी यादें रोटियों की शक्ल ले लेती है
तुम्हारा जिस्म कविता हो जाता है
और तुम्हारी रूह गौरैया सी लगती है
बचपन में जिसके घोंसले से गिर
एक अंडा फूट गया था.
उस गलती की सजा शायद मैं अब भुगत रहा हूँ.

Sunday, February 18, 2018

[The Blue Canvas] ३

बहुत पहले बड़ी दूर से चलकर आता है लड़का लड़की से मिलने. वो घूमते हैं लड़की का शहर और एक जगह एक बाबा से इक्यावन रुपए में पूछते हैं अपना भविष्य.
बाबा लड़के का हाथ देख चहक के बोल उठता है कि अगर वो इंजीनियर होता तो विदेश जाता.
लड़का हंसकर बोलता है कि उसे इसी देश में मरना है... और वर्षों बाद सचमुच विदेश जाने का मौका छोड़ यहीं का रह जाता है.
...और भी बहुत कुछ बताता है बाबा जो अब याद नहीं. लेकिन जब भी लड़का या लड़की पूछते हैं कि क्या वो दोनों उम्रभर साथ होंगे?
बाबा टाल जाता है और कुछ और ही बोलने लगता है.
लड़की समझ जाती है, लड़का भी... और होता भी वही है. लड़का कहीं और है लड़की कहीं और ब्याही है.
इक दिन लड़की के पति ने हाथ उठाया लड़की पर और लड़की ने भी पलट के पीटा उसे. उससे कहीं ज्यादा.
लड़के को कहीं से पता चलता है तो मुस्कुरा देता है. खुश होकर चीखता है, ' वो बाबा झूठा था. किसने कहा मैं उसके साथ नहीं. वर्षों मैंने लड़की को यही तो सिखाया था.. हर राइट्स, इक्वालिटी एंड सेल्फ रेस्पेक्ट. देखो मैं अब भी साथ हूं.'
लड़के की मौजूदा प्रेमिका मुस्कुरा कर गले लग जाती है.
----

'हमेशा मेरे साथ ऐसा क्यों होता हैं? कोई अपने बाप की ज़िन्दगी का बहाना ले चली जाती है कोई अपनी माँ की ज़िन्दगी का बहाना ले. कोई सच क्यों नहीं बोलता यार!' लड़के के हाथ में आदतन ब्लैक लेवल है और आँखों में ढेर सारे आंसू. मैं उसे तसल्ली देता हूँ. वो झिटक देता है. 'नहीं, तू बता मुझको... सच बोलने में क्या चला जायेगा. कुछ तो कारण होंगे- जॉब, पैसा, लुक्स. कुछ तो होता होगा यार. सीधे सीधे क्यों नहीं बता के जाता कोई. ये दूसरी बार है जब ऐसा हुआ था कि मैं किसी के साथ ज़िन्दगी के ख्वाब देख रहा था. उसके पास्ट को जानकर भी!'

मुझे मसान का 'ये दुःख काहे ख़त्म नहीं होता वे' वाला सीन याद आता है. मैं लड़की को फ़ोन करता हूँ. उसकी अपनी मजबूरियां हैं. मैं रख देता हूँ.

मैं सम्हालता हूँ और सम्हालने में असफल हो जाता हूँ. छह दिन बाद उसकी डेड बॉडी की शिनाख्त के लिए  बुलाया जाता है. ऐसे लगता है मैं खुद की ही लाश देख रहा हूँ. मैं टूट जाता हूँ. खुद को ज्यादा दोषी मानता हूँ.

सबकुछ सम्हाल लड़की को फ़ोन लगता हूँ. वो उसे अंतिम बार देखने भी नहीं आती. उसकी अपनी मजबूरियां हैं. शायद उसके आंसू भी न निकले हों. आंसुओं की भी अपनी मजबूरियां होती हैं.
#TheBlueCanvas

Thursday, February 15, 2018

[The Blue Canvas] २

एक बड़े दौर से गुजरते हम अपने को खोते से जा रहे हैं. जैसे माँ-बाप के पास एक बड़ी समस्या है... वो चाहते तो हैं कि उनकी संतान उनसे बेहतर करे- बेहतर इंसान हो, बेहतर रोज़गार हो, बेहतर ज़िन्दगी हो. लेकिन वो चलाना उन्हें अपनी सोच से चाहते हैं. अपने अनुभवों को उनपे थोपने में कोई कसर नहीं छोड़ते, अपने विचार थोपना अधिकार समझते हैं और उन्हें लगता है कि उम्र में बड़ा होना और बाप होना उन्हें तमाम अधिकार दे देता है.
वो इस बात से शायद कभी बाहर ही नहीं आना चाहते कि जो परम्पराएं उनने निभाई है जरूरी नहीं है वो सही हों और जिस सामाजिक माहौल में वो रहे हैं उसे बदलने का वक़्त आ गया है. समझो, उन्नीसवीं सदी में जैसा था- सती, बाल विवाह, स्त्री अशिक्षा, अब वैसा नहीं है. आज जैसा है कल वैसा नहीं रहने वाला. लेकिन इस बदलाव के लिए शायद वो अपने आप को तैयार नहीं करना चाहते या शायद तैयार नहीं है.
---
गौरव सौलंकी जब कहता है कि इश्क़, मोहब्बत, उदासी, सामाजिक समस्याएं के साथ सेक्सुअलिटी भी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा है उनके बारे में बात होनी चाहिए. मैं सोचता हूँ कि क्या उसने कभी बातें अपने माँ बाप से कर पाई होंगी. यादों में खगांलता हूँ तो शायद ही मेरे माँ-बाप ने इनपे मेरे से बातें की हैं. जैसे मोहब्बत कोई सजा हो यहां और उदास होना जैसे किसी के हिस्से में न आया हो. सेक्स और सेक्सुअलिटी... छोड़ ही दो वो... हम कृष्णा-राधा को पूजने वाले लोग हैं जनाब जो आशिक़ों कि हत्याएं करते हैं और फिर सेक्स का तो 'स' भी हमारे मुंह से निकलना गुनाह है.
--
मैं सोचता हूँ कि मेरी टीन ऐज में प्रवेश कर रही अपनी बहन से बात करूँ.. उसे 'गुड टच, बेड टच' के बारे में बताऊँ, दुनिया के मजहबी भेंगेपन के बारे में बताऊँ, मैरिटल रेप, घरेलु हिंसा और हरासमेंट के बारे में वो जाने... लेकिन चुप हो जाता हूँ कि उसके पिता को ये सब अच्छा नहीं लगेगा. शायद हम समाज के रूप में सच अपने बच्चों तक पहुँचाने लायक अभी तक विकसित नहीं हुए हैं.
---
पार्लियामेंट में बहसें होती हैं कि आज़ादी नेहरू ने दिलाई या पटेल ने. मैं सोचता हूँ कि क्या हम आज़ाद हैं? माँ बाप बच्चों को अपनी जागीर समझ रखते हैं. समाज उन्माद में हत्याएं कर रहा है. कल ही दिलीप सरोज को सड़क पर पीट पीट कर मार डाला गया... और एक उम्मीद भी है जो माँ बाप बच्चों से पाल के रखे हुए हैं कि वो इस तरह जियें, ऐसे न जियें... और उनकी सेक्सुअलिटी... खैर इसके बारे में तो बात ही न कि जाये. ये उम्मीदें किस तरह से अंदर से लोगों को खा रही हैं इसका भान किसी को भी नहीं है.
---
बचपन में डायनामिक बच्चे क्यों अक्सर बड़े होते होते थकने लगते हैं. हमने बड़ों कि ऐसी कैसी दुनिया बानी हुई है कि जहां उनके लिए जगहें बहुत कम हैं. क्यों ऐसा होता है कि बड़े होकर लोग गुमनामी के अँधेरे में चले जाते हैं. हमें सोचना होगा कि हमने अपनी दुनिया में कहानी गलतियां की हैं. ... और क्यों हमने घोड़ों, मछलियों, कबूतरों और हाथियों को एक ही रेस में दौड़ाया है.
---
हम आज भी उस दौर में रह रहे हैं जहाँ लड़की से नहीं पूछा जाता कि उसे किससे शादी करनी है, कैसे लड़के से करनी है और चुपचाप लड़के ढूंढ लिए जाते हैं. पढ़ी लिखी लड़की से भी नहीं. जैसे लड़कियां गायें हों जो घर के खूंटे से बंधी है और उन्हें दूसरे खूंटे से बांध दिया जाना है... और हाँ माँ-बाप एज़ यूजुअल उनके मालिक हैं, जागीरदार हैं.
---
माँ-बाप बच्चों के जागीरदार नहीं हैं... और न ही प्रेमी अपनी प्रेमिकाओं के. समय यह समझने का है. किसी को समझ आ रहा है?? सुनाई दे रहा है???

Tuesday, February 13, 2018

[The Blue Canvas] १

मोहब्बतें कुछ ऐसी कश्तियाँ हैं जो कागज़ की बनी हैं. डूबना तय है. अब ये तुम पर है कि उन्हें कितनी देर सम्हाल सकते हो. कार्डबोर्ड आता महंगा जरूर है और कश्तियाँ बनाना आसान भी नहीं उससे. लेकिन एक बार बन जाये तो चलती बहुत है.
---
उसके अपने दुःख हैं, उसकी अपनी मजबूरियां हैं. वो कहती है मैं बस शरीर हो गई हूँ. जैसे हलक से निकल रूह कहीं गुम हो.
मैंने टटोला. रुह अब भी थी उसमें. हाँ, मेरा नाम लिखा था उसपे, शायद इसलिए वो उसे पढ़ना नहीं चाहती थी.
सबकी अपनी अपनी मजबूरियां होती हैं.
---
'आदतें सरकारी होती जाती हैं वक़्त के साथ. जैसे पहली गर्लफ्रेंड के दिए गुलाब अब भी कहीं सीने में ज़िंदा लगते हैं, लेकिन काँटों की चुभन धीमे-धीमे कम होती जाती है. इसलिए शायद हर बार अपने लिए नए ग़म खोज लेता हूँ.'
वो हँसते-हँसते बोल देता है. उसकी कोरों में मोती से आंसू हैं.
---
'ये 'वाई' है, मेरा बॉयफ्रेंड' वो मिलवाती है. बताओ कैसा है, वो फिर धीरे से लड़के के कान में कहती है.
वो लड़का कुल एक घंटे की मुलाकात में लड़की के बॉयफ्रेंड को ओके कर देता है. 'शायद मेरे से बेहतर है.' वो लड़की से जाते जाते बोलता है.
लड़का लड़की का एक्स था. लड़की जाते जाते लड़के की आवाज की कम्पन में अपने लिए इश्क़ के कतरे ढूंढ लेती है.
अब लड़की 'वाई' के साथ नहीं लड़के के साथ है, दोनों साथ बूढ़े हो रहे हैं.
कुछ प्रेम कहानियां 'द एन्ड' के बाद भी चलती रहती हैं.
---
लड़का लेखक है. लड़की भी लिखती है.
दोनों मिलते हैं. एक दूसरे के लिए ढेर सारा लिखते हैं. अपनी ही कहानी साथ नहीं लिख पाते.
वर्षों बाद लड़की अब भी लिखती है. अधिकतर उसी लड़के के बारे में जिससे वो वर्षों से नहीं मिली है.
वर्षों बाद लड़के ने लिखना छोड़ दिया है. शायद इश्क़ में जागी रातें पूरी कर रहा है.
वर्षों बाद दोनों मिलते हैं. लड़की उसे अपनी नई किताब देती है. लड़के को जैसे हर शब्द खुद का लिखा लगता है. उसे लगता है जैसे वर्षों बाद लड़की मुझपे लिखते लिखते 'मैं' हो गई है.
---
वो लड़के से बोलती है 'देखो, इस रास्ते को छोड़ दो. यहां कुछ नहीं रखा है. अंत में रोओगे. मुझे वैसे भी अपने आसपास रोने वाले लोग अच्छे नहीं लगते.' वो उस लड़की की रूममेट है जिससे लड़का प्यार करता है. शायद वो लड़की और सिचुएशन दोनों को अच्छे से जानती है.
लड़का लाख कोशिशें कर भी राह नहीं बदल पाता... और हश्र वही होता है जिसका डर था.
'देखो भाई, मैंने कहा था.' वो बोलती है.
'मुझे पता था लेकिन शायद मुझे दर्द की आदत हो गई है.' लड़का जवाब देता है. वो उसे पागल कहती है. इस बार पतझड़ में पत्ते कुछ ज्यादा गिरे हैं.
---
'तुम्हारी आखिरी ख्वाहिश क्या होगी.' वो लड़के से कॉलेज के आखिरी दिन पूछती है. दोनों ने कभी ज्यादा बात नहीं की. क़स्बे के कॉलेज का माहौल थोड़ा ऐसा ही था.
'ज़िन्दगी की आखिरी रात तुम्हारे साथ बिताना.' वो आँखों में आँखें डाल कहता है.
वर्षों से दोनों एक साथ जी रहे हैं. आखिरी रात को मुकाम तक पहुँचने में काफी वक़्त है.
---
'तुम्हें पता है, जिन कहानियों में प्रेम अंत में जीत जाता है वो कहानियां फेमस नहीं होती.' लड़की कहती है. लड़के को निदा फ़ाज़ली का 'दुनिया जिसे कहते है जादू का खिलौना है, मिल जाये तो मिट्टी है खो जाये तो सोना है' याद आता है.
'मैं हमारी कहानी फेमस नहीं होने देना चाहता.' वो उत्तर देता है.
वर्षों बाद लड़के की लिखी किताब बहुत फेमस हुई है.
'शायद इस बार थ्योरी गलत हो गई. प्रेम और कहानी दोनों मुकम्मल निकले, फेमस भी हुए.' लड़का लड़की से जो उसकी बीवी और को-ऑथर है धीरे से मुस्कुराते हुए कहता है.
लड़की इस नज़र से देखती है जैसे हमेशा से यही चाहती हो.
---
'तुम दसवें माले पे भी इतने खुश कैसे रह लेते हो? अजनबीपन का एहसास नहीं होता?'
'शायद तुम्हारे जैसे लोगों की वजह से.' लड़की जवाब देती है.
लड़की ने 2002 दंगे अपनी नंगी आँखों से देखे हैं. लड़के ने भी दस वर्ष की उम्र में अपना घर छोड़ा है. अपने आसपास की दुनिया बदलते नंगी आँखों से देखी है.
'मेरे कैनवास के रंगों में अक्सर तुम दिखते हो.' लड़की बोलती है.
'और मेरे लफ़्ज़ों में मुझे अक्सर तुम.'
राइटर लड़का अपना चश्मा ठीक करता है और चश्मे वाली पेंटर लड़की को हमेशा के लिए छोड़ जाने कहीं के लिए चला जाता है. लड़की जाने क्या सोचती पीछे खड़ी रह जाती है.
पिछले ज़ख्म शायद इतने हरे थे कि आगे के रास्ते दिखे ही नहीं. लड़की ब्लू कैनवास पे चंद लफ्ज़ लिखती है... लड़के का नाम.



Sunday, February 11, 2018

सिन्धु घाटी सभ्यता की लिपि

आईआईटी के दो गणितज्ञों ने यह पाया है, काफ़ी परिष्कृत विधि और यन्त्र-विद्या का उपयोग कर, कि सिन्धु घाटी सभ्यता की जो लिपि अब तक अबूझ बनी हुई है वह दायें से बायें की ओर लिखी जाती थी. इसका आशय यह हुआ कि वह लिपि अरबी जैसी लिपि की तरह थी. हमारी सभी भारतीय भाषाएं, उर्दू को छोड़कर, बायीं से दायीं ओर लिखी जानेवाली लिपि में हैं. इस तरह की खोज को कई ‘वैज्ञानिक’ कारणों से निरस्त किया जाना चाहिए.

पहला तो यह कि देववाणी संस्कृत और अन्य भाषाओं की जो लिपि-पद्धति अनादि काल से रही है उससे भी प्राचीन पद्धति को कैसे स्वीकार किया जा सकता है. दूसरा यह कि ‘अरबी’ से समानता तो देशद्रोह माना जा सकता है. वह हमारी जातीय शुद्धता पर हमला है. इन दो गणितज्ञों को अग्रिम जमानत तुरन्त ले लेना चाहिए. तीसरा यह कि ऐसी सारी वैज्ञानिक खोजें अस्वीकार्य हैं जो हमारे प्राचीन ज्ञान को किसी और आलोक में देखने की ओर प्रेरित करती हैं. चौथा यह कि यह खोज हमारे जगतगुरु होने की प्रतिज्ञा से मेल नहीं खाती. आईआईटी शुरू से ही भारत-विरोधी खोजें करते रहे हैं: इनकी अभारतीय वैज्ञानिकता पर रोक लगाना चाहिए! अगर क़ानूनन संभव न हो तो हमारे हिंसक युवा दल प्रदर्शन-प्रहार-हिंसा द्वारा उन्हें भारतीयता के रास्ते पर ला सकते हैं!!

- अशोक वाजपेई (का सत्याग्रह.कॉम में लिखा व्यंग्य)

Tuesday, February 6, 2018

मुकम्मल कविता

तुम इक मुकम्मल कविता की तलाश में
सबेरे-सबेरे निकाल पड़ते हो
एहसासों की यात्रा में
लेकिन रास्ते में तुम्हें वह दारुण बच्चा मिलता है
जिसके पिता ने आर्मी में दी है जान
लेकिन उसे एक अच्छे स्कूल में नहीं मिला एडमिशन.
तुम उसकी विधवा मां की करुण आंखों में
कविता कहने का सपना छोड़ देते हो.
सबेरे-सबेरे मुकम्मल कविता की तलाश में निकलते
तुम्हें एक मजदूर मिलता है
जिसका आधार कार्ड तो है
लेकिन उंगलियां मजदूरी करते घिस गईं हैं
सरकारी लाभ से वंचित इस 'सेकेंड सिटिज़न'
की पोरों में छोड़ आते हो एक अलिखित कविता.
एक लड़की
जिसने नंगी आंखों से दंगों के
मरते देखा होता है अपना परिवार
और देखा होता है होता खुद का बलात्कार.
उस लड़की के विक्षिप्त मन में उतरते
कविता का 'क' भी नहीं कह पाते हो.
एक स्कूल बस मिलती है
जिसे ऐसे जाहिलों ने जलाया होता है
जो कभी स्कूल नहीं गए
लेकिन अपने निम्न इतिहास बोध के कारण
दंगे-फसाद-भय-जुर्म से राजनीति सेंकना चाहते हैं
तुम सिर फूटे चार साल के स्कूली बच्चे के
रिसते घाव में कविता का भाव छोड़ आते हैं.
थक हार जब मिलती नहीं कोई मुकम्मल कविता
तब नेरुदा उठा पढ़ना शुरू करते हैं
लेकिन वहां भी श्रीलंकन-तमिल औरत
निर्वस्त्र खड़ी दिखती है
जिसका नेरुदा ने कभी बलात्कार किया था.
... और तुम कविता लिखने का ख्याल
अख़बार के पन्नों, नेरुदा की किताब
और अपने आदमी होने के एहसास के साथ जला देते हो.

Monday, February 5, 2018

मैं लालायित तुम्हारे मुख, तुम्हारी आवाज, तुम्हारे बालों का / पाब्लो नेरूदा


मत जाओ बहुत दूर
नहीं एक दिन के लिये भी नहीं
मत जाओ बहुत दूर एक दिन के लिये भी नहीं क्योंकि--
क्योंकि-- नहीं जानता कैसे कहूँ : एक दिन बहुत लंबा वक़्त होता है
और मैं तुम्हारा इंतज़ार करता रहूँगा जैसे खड़ा किसी खाली स्टेशन पर
जब कि ट्रेनें खड़ी हों कहीं और, नींद में......

घंटे भर को भी मुझे मत छोड़ना क्योंकि
तब पीड़ा की सारी छोटी-छोटी बूँदें बहने लगेंगी एक साथ
एक घर की खोज में भटकता है जो धुआँ वो
बह आयेगा मेरे भीतर, मेरे खोए हृदय का दम घोंटता.

ओह! सागरतट पर तुम्हारी प्रतिच्छाया विलीन न हो कभी
न कभी फड़फड़ाएँ तुम्हारी पलकें किन्हीं निर्जन फासलों पे
मुझे एक क्षण को भी मत छोड़ना मेरी प्रियतम!!

क्योंकि उस एक क्षण में तुम इतनी दूर जा चुकी होगी
कि मै पूरी पृथ्वी पर भटकूँगा भूला हुआ-सा
पूछ्ता
क्या तुम वापस आओगी?
क्या तुम छोड़ दोगी मुझे यहाँ
मरता?

--पाब्लो नेरूदा