Friday, December 7, 2012

रूह को किनारे रख....




बड़ी बड़ी साफ़ चौड़ी सड़के, गार्डन्स, हर कोने पे डस्टबिन, टेनिस कोर्ट, क्रिकेट ग्राउंड ....यहाँ* आकर लगता है जैसे किसी नई सी दुनिया में अ गये हों, जो शायद 'भारत' नहीं 'इंडिया' है.....लेकिन एक उदासी खाकसार सी फिर भी चिपक जाती है......कभी कभी ही सही. लेकिन ये कभी-कभी भी महीने में दो-चार रोज़ ज़रूर होता है. शायद इस जानिब आकर भी उस जानिब की किस्सागोई याद रह ही जाती है.

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हर शब
ख्याल जब
दिन का सफ़र कर,
कागज पे उतरने बैचैनी से
छटपटाते हैं.
नंगे बदन कोई
रोटी जुगाड़ता है कहीं.

रूह को किनारे रख,
इस हालत से इश्क
ज्यादा नहीं होगा.....
उस जानिब से जब
'रिफ्लेक्ट' कर आएगा सच
तुम भी देखना
इस उदासी को कितना धकेलते हैं हम.

तुमही तो कहते थे खुदा
'बड़ी खूबसूरत बना दी दुनिया मैंने.'
'रेड लाइट' पे भीख मांगते
मासूम देख लगता है
अभी कुछ बाकी रह गया.

हर शब
कागज़ पे उतरता हूँ ख्याल
तो लगता है-
मैं 'परफेक्ट' नहीं.
खुदा तू भी तो 'परफेक्ट' नहीं!!


चल इस आड़ी-टेड़ी दुनिया को
मिलकर ठीक  करते हैं.


                                     ~V!Vs
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Pic- Painting by  Francoise Nielly
Infosys Campus, Pune