Wednesday, June 13, 2012

चार शख्स, चार मिजाज़







हम लड़ेंगे साथी

हम लड़ेंगे साथी,उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी,गुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी,जिन्दगी के टुकड़े

हथौड़ा अब भी चलता है,उदास निहाई पर
हल अब भी बहते हैं चीखती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता,प्रश्न नाचता है
प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी.

......
हम लड़ेंगे
कि लड़े बगैर कुछ नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सजा कबूलने के लिए
लड़ते हुए जो मर गए
उनकी याद जिन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे साथी.....

पाश





चांदनी छत पे चल रही होगी

चांदनी छत पे चल रही होगी
अब अकेली टहल रही होगी

फिर मेरा ज़िक्र आ गया होगा
वो बर्फ़-सी पिघल रही होगी

कल का सपना बहुत सुहाना था
ये उदासी न कल रही होगी

सोचता हूँ कि बंद कमरे में
एक शम-सी जल रही होगी

तेरे गहनों सी खनखनाती थी
बाजरे की फ़सल रही होगी

जिन हवाओं ने तुझ को दुलराया
उन में मेरी ग़ज़ल रही होगी

- दुष्यंत कुमार




बाहर मैं कर दिया गया हूँ

बाहर मैं कर दिया गया हूँ। भीतर,पर,भर दिया गया हूँ।
ऊपर वह बर्फ गली है,नीचे यह नदी चली है
सख्त तने के ऊपर नर्म कली है
इसी तरह हर दिया गया हूँ। बाहर मैं कर दिया गया हूँ।

आँखो पर पानी है लाज का,राग बजा अलग-अलग साज का
भेद खुला सविता के किरण-व्याज का
तभी सहज वर दिया गया हूँ। बाहर मैं कर दिया गया हूँ।

भीतर,बाहर,बाहर भीतर, देख जब से ,हुआ अनश्वर
मय का साधन यह सस्वर
ऐसे ही घर दिया गया हूँ। बाहर मैं कर दिया गया हूँ।

-निराला



कुछ इश्क किया कुछ काम किया



वो लोग बड़े खुशकिस्मत थे
जो इश्क को काम समझते थे
या काम से आशिकी करते थे
हम जीते जी मशरूफ रहे
कुछ इश्क किया कुछ काम किया

काम इश्क के आड़ आता रहा
और इश्क से काम उलझता रहा
फिर आखिर तंग आकर हमने
दोनों को अधूरा छोड़ दिया

फैज अहमद फैज