Monday, December 24, 2012

इश्क के दो रंग





पहला रंग इश्क का--- नीला-नीला......

वो सर्दी की इक शाम थी. वो ट्रेन से उतरता है,  टैक्सी लेकर सीधे बताये पते पर. 

' आ गये तुम?' वो देखकर उससे पूछती है.
'चैम्प, मैं तुझे एक घंटे से ढूंढ रहा हूँ.'
'अरे शादी बाले घर में आया है, लड़की इतनी जल्दी थोड़ी न दिखेगी.'
'पगली तुझे इतनी ठंड में शादी करने की क्या ज़रूरत थी, देख कुल्फी जम रही है.'
'हा हा हा, साल्ले शादी का मुहूर्त ठण्ड देखकर नहीं निकलता... वाय द वे थैंक्स, दो दिन पहले आने के लिए.'
'हाँ, अब थैंक्स भी बोल ले, दोस्ती तेरे पापा निभाएंगे. कंपनी छुट्टी कहाँ दे रही थी, जैसे-तैसे लेकर आया हूँ.'
'हाँ, तेरी सीनियर थी मैं, मुझे पढ़ा रहा है, 21 छुट्टी पढ़ी थी अकाउंट में, क्यूँ नहीं मिलती.'
'चल छोड़, जल्दी आने का एहसान तो मान नहीं रही है, ऊपर से अंकल ने आते ही काम पे लगा दिया.'
'हा हा हा, अब मेरी शादी में तुझे ही तो सब करना है.'

वो उसकी आँखों में देखता है....ज़रा गहराई से...छत पर उनके अलावा कोई नहीं है. 
'तू खुश तो है न चैम्प?'
'हाँ न रे, देख लड़का MNC में है, पैकेज मस्त है, और फिर पुणे में ही है. वीकेंड पे तू भी मेरे घर आ जाना, हम तीनों खूब मस्ती करेंगे.'
'मैंने ने हैदराबाद ट्रान्सफर के लिए अप्लाई किया है.' वो धीरे से बोलता है.
'क्यूँ?'
'तुम नहीं समझोगी दिशा.'
'मैं समझती हूँ विशु.'
'तो तुमने कभी बोला क्यूँ नहीं?'
'देख लड़के बोलते हैं लडकियां नहीं....और वैसे भी तेरी वो इश्क की केमिकल लोचे बाली थ्योरी, टेस्तेरोन-एस्ट्रोजन और पता नहीं जाने क्या-क्या...फिर तू हमेशा ही तो अपनी एक्स के बारे में बोलता रहता था...मैं क्या बोलती. तू बोल सकता था, वैसे भी लड़के ही हमेशा बोलते हैं.'
'चैम्प, नालायक, कोई रूल है क्या, की लड़के ही हमेशा बोलेंगे...और वैसे भी तू कौन सा कम थी, तू भी अपनी थ्योरी देती थी, कि लड़के को लड़की से ज्यादा कमाना चाहिए, अच्छा पैकेज, अच्छी  फॅमिली, गुड लाइफ स्टाइल और जाने क्या क्या....और फिर मैं तेरे से दो साल छोटा भी तो हूँ, ऊपर से ऑफिस में भी तू मेरी सीनियर. तू वैसे भी बहुत मटेरियालिस्टिक है.'
'हाँ और तू सबसे बड़ा चैम्प, साल्ले गाड़ी तो चला नहीं पता, मम्मा'स बॉय...और ऊपर से तेरी एक्स की कहानियां सुनते सुनते पक गयी थी. एक बार भी तू उससे बाहर निकला होता तो सोचती भी.'
'अरे तो मुझे सच में उससे प्यार था, और वैसे भी तुझे कम्फर्ट बनाने के लिए उसकी कहानी सुनाया करता था, नहीं तो तुझे लगता मैं भी औरों की तरह लाइन मारने लगा हूँ.'
'रहने दे, अब क्या मिल गया तुझे, साले मेरी शादी है 48 घंटे में...और कोई फिल्म तो चल नहीं रही है की मैं मंडप से भाग जाउंगी.'
'हाँ तो मैं बोल भी नहीं रहा हूँ.' 
वो उसे हग करती है....वो निःशब्द है.....शायद थोडा खुश भी, अपने दिल की बात कह ली.
'तू बाइक भी नहीं चला पाता.'
'और तू वोमिट करने तक पीती है.'
हा हा हा.........दोनों जोर से हँसते हैं. वो बेहद ठंडी शाम में भी गर्मी महसूस करता है....
कुछ लव स्टोरीज अधूरी ही ज्यादा अच्छी लगती हैं. 


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दूसरा रंग इश्क का--हरा-हरा........

'तुम अजीब हो यार, तुम्हें ये सब करने की क्या ज़रूरत है....वो जैसे भाग गया है, तुम भी भाग जाओ. मुझे किसी के एहसान की कोई ज़रूरत नहीं है.'
'मैं तुमपे कोई एहसान नहीं कर रहा हूँ, बस मुझे जो सही लग रहा है वही कर रहा हूँ.'
'तुम्हें पता है न,मैं अवोर्शन चाहती हूँ, फिर तुम क्यूँ मुझे और इस बच्चे को अपनाना चाहते हो? यार मैं मरना चाहती हूँ.'
'हाँ, वो तो तूने कोशिश कर ही ली, अब पड़ी हो न बेड पे और बाहर तेरे पापा मम्मी परेशान खड़े हैं. बेवकूफ हो तुम...क्या मिल गया ये सब करके?'
'मैं उससे प्यार करती थी, अब किसके लिए जियूं?'
'बचपन से अबतक किसके लिए जी रही थी? कमीनी है तू, सच में, तुझे वही दिखा, आज तक मैं नहीं दिखा? अपने माँ-बाप नहीं दिखे ?' वो गुस्से से बोलता है.
'मैं उससे प्यार किया था, आशु.'
'और मैंने तुमसे दिव्या...आज तक तुम्हे समझ नहीं आया? अपने लिए न सही इस बार मेरे लिए जी लो.'
वो उसके सर पे धीरे धीरे हाथ फेर रहा है...दिव्या की आँखों में आंसू हैं.
मौसम में नमीं बढ़ गयी है, और सूरज ज़रा तेज़ चमकने लगा है.

'हम इस बच्चे का नाम दिव्यात्री रखेंगे.' वो धीरे से बोलता है.