Friday, December 16, 2022

शौर्य गाथा : Replies


 भाईसाहब ने पहला प्रयुत्तर (Reply) दिवाली के समय अक्टूबर में दिया था. जब इनसे पूछा गया कि खाना कैसा लग रहा है, भाईसाहब ने अप्रत्याशित रूप से कहा 'अच्छा'. हम सब दादा-दादी, पापा-मम्मा, चाचा-चाची, छोटू चाचू बहुत हंसे. अब भाईसाहब दो महीने बाद कुल इक्कीस महीने के हो गए हैं और हाथों में नहीं आते हैं. बोलना तो इतना लगे हैं कि हर प्रश्न का जवाब इनके पास होता है. मसलन पूछो 'क्या खाओगे?' जवाब आएगा 'दूद बिस्सिट' (दूध बिस्किट). 'क्या ये गेम खेलेंगे?' 'नहीं.. पापा नहीं...' और जाने क्या क्या... 

एक बार तो हद हो गई. भाईसाहब पापा मम्मा के साथ मार्केट गए थे. लौट कर आए और मम्मा से बोले 'की..स.., की..स..' (Keys) मतलब इन्हें घर की चाबियां चाहिए. मम्मा ने चाबी दे दी है, अब भाईसाहब दरवाज़े पर जाते हैं, Keyhole इनकी रीच में है ये कोशिश कर रहे हैं खोलने की. पापा मम्मा बेचारे बैग्स हाथ में लिए ठंड में बाहर खड़े हैं. पापा थोड़ा इरिटेट होकर बोलते हैं 'अरे यार शौर्य ऐसा नहीं करो.' लंबा वाक्य था, हम सोच रहे थे कि प्रत्युत्तर में भाईसाहब वही का वही वाक्य दोहरा देंगे लेकिन भाईसाहब का जवाब होता है 'आले याल पापा.. ए..छा.. नई कलो' हम लोगों का हंस-हंस कर बुरा हाल है और भाईसाहब वही दरवाजा खोलने में तल्लीन हैं.

#शौर्य_गाथा