Thursday, January 6, 2022

India As I Know: COVID19 Response team TKG

 


बात अप्रैल-मई 2021 की है कोविड-19 की दूसरी लहर से ग्रसित देश के अधिकतर लोग अपनी, परिवार, रिश्तेदारों की मदद के लिए इधर-उधर भटक रहे थे.

कुछ लोग कोविड-19 के कारण दवाई, प्लाज्मा ऑक्सीजन या हॉस्पिटल बेड के लिए संघर्षरत थे. कुछ लोगों को कोविड से इतर बीमारियों की बेसिक ट्रीटमेंट के लिए भी मदद की जरूरत थी. कुछ लोग विदेश में थे और अपने मां-बाप के लिए चिंतित थे. कुछ लोग लॉकडाउन में भूख से बेहाल थे.

ऐसे में कुछ युवा लगातार जरूरतमंदों की मदद के लिए काम कर रहे थे. देश के हर हिस्से में ऐसे युवा थे जो निस्वार्थभाव से मदद करने में जुटे हुए थे.

टीकमगढ़ जिला (मध्य प्रदेश) एवं आसपास के जिलों में ऐसे ही @अभिषेक और उनके मित्र काम कर रहे हैं।

मैं मई में खुद कॉविड से ग्रषित था और होम कोरेंटिन था. मेरे दोस्त को मदद चाहिए थी, मैंने अभिषेक को कॉल किया और मदद उपलब्ध हो गई. मैं हतप्रभ था. सोच रहा था कि उन्होंने किया कैसे...? उनके पास उस वक्त यह बताने का भी समय नहीं था.

2021 के ढलते दिसंबर में जब मैंने उनसे पूछा कि कैसे कर पा रहे थे तो उन्होंने बताना शुरू किया-

"भैया मैं फ्रीक्वेंट ब्लड डोनर हूं. उस वक्त फेसबुक पर प्लाज्मा डोनर्स के साथ काम कर रहा था, साथ ही भोपाल इंदौर के मित्रों के साथ जरूरतमंदों की मदद कर रहा था. मैं तब टीकमगढ़ में था, मैंने देखा कि लोकल के लोग मिलकर जल्दी मदद कर पा रहे इसलिए टीकमगढ़ के लिए मैंने संसाधन जुटाना शुरू किए. इसके लिए मुझे डॉक्टर, मेडिकल स्टोर, एंबुलेंस संचालक, प्लाज्मा डोनर्स को एक ही प्लेटफार्म पर लाना था. इसलिए अपने मित्रों अभय प्रताप सिंह, प्रिया के साथ मिलकर एक व्हाट्सएप ग्रुप कोविड-19 रिस्पांस टीम टीकमगढ़ ( COVID19 Response team TKG) बनाया। टीकमगढ़ के डॉक्टर डॉ अनुज रावत, डॉ भदौरिया, डॉ सौरभ जैन एवं पहचान के अन्य जगह काम करें डॉक्टर डॉ महेंद्र यादव, डॉ अनिरुद्ध नायक को भी जोड़ा.

मेरे मित्र ममतेश एवं उसके भाई की प्राइवेट टैक्सी एजेंसी थी, इस वजह से एंबुलेंस संचालक और टैक्सी वाले भी उनकी सहायता से जुड़ गए. दवाई विक्रेता मित्रों के सहयोग से ग्रुप का हो गए.

मीडिया को खबर लगी, वे ग्रुप में जुड़े. उन्होंने भी सहायता की. हमारे बारे में अखबार में निकाला. हमारी प्रशंसा की और 4 दिन में 100 से अधिक लोग ग्रुप का हिस्सा थे. अब सारे लोग जो इस आपदा में सहायक हो सकते थे, एक ही प्लेटफार्म पर आ गए थे. जरूरत पड़ने पर न सिर्फ जिले के अंदर बल्कि जिले के बाहर भी सहायता कर पा रहे थे.

मुझे 2020 में खुद कॉविड हो चुका था. चिरायु अस्पताल भोपाल में एडमिट भी रहा था. इसलिए मैंने खुद के अनुभव ग्रुप पर शेयर करना शुरू किए. क्या करना चाहिए, क्या नहीं. कौन से प्रिकॉशन लिए जाने चाहिए इत्यादि।

धीमे धीमे हमारे पास ग्रुप पर लोग कैसे डालने लगे. हम उन्हें जिले के बाहर जाने के लिए एंबुलेंस, दवाई या कॉविड से इतर बीमारी से बीमार पेशेंट को बेसिक ट्रीटमेंट उपलब्ध कराने लगे. लोगों को प्लाज्मा की जरूरत थी उसके लिए भी हमारे पास प्लाज्मा डोनर्स की टीम खड़ी हो गई थी, जो प्लाज्मा देने के लिए तत्पर रहती थी. धीमे धीमे लोगों को, मीडिया को ,प्रशासन को हम पर भरोसा होने लगा और जिले के ज्यादातर केस इस ग्रुप पर शेयर होने लगे. जिनकी मदद के लिए हम तैयार थे. हमने हमें पता चलने वाले हर केस में हर व्यक्ति की हर संभव मदद की.

सरकार ने जब कॉविड से मृत व्यक्ति के परिवार के लिए आर्थिक मदद के लिए योजना चलाई तो हम भी एक माध्यम बने. हम प्रशासन तक उनकी जानकारी पहुंचाई. एनजीओ से मिलकर के आर्थिक मदद पहुंचाएं।


Project Basant

भैया, जब जिले के गांव गांव से लोग जुड़ गए तो हमारा ध्यान गांव की ओर भी अधिक गया. हमें काम करता देख हमारे मित्र प्रेरित हुए,उन्हें भी ऐसा कुछ करना था जो बढ़ते अंधेरे में दीपक का काम करे. मेरे मित्र मयंक जैन ग्राम लार (जिला टीकमगढ़) ने अपने घर वालों से पूछकर गांव का भ्रमण किया और जो स्थिति देखी वो डरावनी थी. कुछ लोग जो बूढ़े थे, और अक्षम थे घर में और कोई नहीं था, उनके पास न खाने को था, न बनाने को. कुछ लोग जिनके पास पहले भी सुबह के बाद शाम की रोटी का इंतजाम नहीं होता था, वह बेरोजगार हो गए थे. हमने उन तक खाना पहुंचाना शुरू किया. दोस्तों के साथ मिलकर एक जूम मीटिंग की. हमने मिलकर कुछ पैसा इकट्ठा किया. लोगों ने 500 से लेकर के 5000 रुपए तक दान दिए. गांव-गांव में हमने ऐसे घरों को खाने के पैकेट बांटना शुरू किया. इसे हमने 'प्रोजेक्ट बसंत' का नाम दिया


गांव गांव से अन्य युवाओं ने भी हमारे साथ आना शुरू कर दिया. उन्होंने खुद बोला कि "भाई, आप लोग जब ऐसा कर सकते हैं तो हम उसमें मदद क्यों नहीं कर सकते हैं. इसलिए कई युवा तैयार हो गए और उन्होंने खाने के पैकेट बांटने से लेकर  राशन उपलब्ध कराने में हमारी मदद की.


प्रोजेक्ट बसंत का एक और फायदा हुआ कि ग्राम सचिव को ऐसे लोगों की लिस्ट बना कर हमने दी. ग्राम सचिव और प्रशासन हमारी मदद कर रहा था और ऐसे लोगों के बारे में हमसे पूछा भी.

हमें सुनिश्चित किया कि आखिरी व्यक्ति तक सरकारी योजना का लाभ पहुंचे.

मुझे पहली बार लगा कि 

1. सोशल मीडिया का हम इस तरह भी उपयोग कर सकते हैं.

2. हम युवा मिलकर इतना कुछ कर सकते हैं.

3. पहली बार मैं और मेरे मित्र जॉय ऑफ गिविंग क्या होता है, महसूस कर पा रहे थे.

जो काम हम लोग गांव में कर रहे थे हमारे कुछ मित्र शहरों में भी ऐसे ही काम कर रहे थे. इंदौर में कुछ लोग कोचिंग चला रहे थे, कुछ लोग कोचिंग में पढ़ रहे थे. उनके पास कांटेक्ट थे वहां

मित्रों ने वन रुपी फाउंडेशन (One Rupee Foundation)  शुरू किया मतलब ₹1 प्रतिदिन देना था और उस पैसे से खाने के पैकेट जरूरतमंदों को हमने बांटना शुरू किया. दिहाड़ी काम करने वालों को, फुटपाथ पर मांगने वालों को, अस्पताल में भर्ती लोगों के परिजनों को खाने के पैकेट बांटना शुरू किया. रोमेश मूलचंदानी, समन्वय रिछारिया ने सजगता से काम किया.

हमें पहली बार लगाकर सीमित संसाधनों में सीमित लोग भी बड़ा काम भी कर सकते हैं.


Before the Third Wave

चूंकि यह कॉविड की तीसरी लहर की शुरुआत का दौर था इसलिए मैं उनसे "तीसरी लहर के पहले क्या काम करना चाहिए" पूछता हूं

"भैया मैं बिंदुबार बताता हूं" वह बोलते हैं.

1. इंफ्रास्ट्रक्चर न चार छः महीने में खड़ा हो सकता था, न ही पूर्णतः बना है. इसलिए इस बात को ध्यान में रखते हुए सारी सावधानियां बरतनी चाहिए. डॉक्टर और सरकारी गाइडलाइन को पूर्णतः फॉलो करना चाहिए.

2. मेरा अनुभव कहता है कि अगर युवा ऑर्गेनाइज हों तो पैरलल सपोर्ट सिस्टम खड़ा कर सकते हैं. ऐसा पैरलल सपोर्ट सिस्टम हर गांव शहर में खड़ा करना होगा, जो आपदा में विपदा में फंसे लोगों की हर संभव मदद कर पाए.  प्रशासन व प्रशासनिक अधिकारियों कर्मचारियों के साथ मिलकर काम करना होगा, उनकी हर संभव मदद करनी होगी. कुछ लोग हो सकता है पूरा काम न संभाल पाए लेकिन युवा मिलकर, प्रशासन के साथ आकर के सिस्टम का हिस्सा बन कर अच्छे से काम संभाल सकता हैं.

3. पौराणिक कथाओं में हमें कम्युनिटी सपोर्ट सिस्टम के बारे में बहुत सारी कहानियां मिलती हैं. मतलब समाज के लोग आपस में मिलकर के सपोर्ट सिस्टम खड़ा करते हैं, दूसरों की मदद करते हैं. गांव में थोड़ा बहुत अभी भी है, लेकिन शहरों में ऐसा कम है. पूर्वजों से सीखते हुए इस सिस्टम विकसित कर के हम एक दूसरे की मदद बेहतर तरीके से कर पाएंगे.


भैया हम लोगों के अंदर हमारे काम ने मानवता को जगाया ही नहीं था, बल्कि जरूरत पड़ने पर मानवता एक दूसरे का हाथ थाने साथ खड़ी हुई थी. हमारे काम ने हमें अधिक संवेदनशील, अधिक मानवीय और सामाजिक रुप से अधिक समृद्ध बनाया है.

उनकी बातें सुनकर युवाशक्ति के बारे में पहली बार इतना सकारात्मक और उत्तरदायित्व युक्त अनुभव मेरे सामने आता है। युवा और समाज का हर व्यक्ति व्यक्तिगत हित छोड़ कर, मिलकर काम करे तो समाज की स्थिति दूसरी होगी.

मैं उनसे कुछ एक्सपीरियंस सुनाने को कहता हूं. वो बताते हैं की उन्होंने #रोजकाकिस्सा नाम से फेसबुक पर कुछ अनुभव शेयर किए हैं.

आप भी एक अनुभव पढ़िए-

रात का एक बज रहा होगा भोपाल वाले ग्रुप में किसी नें मैसेज किया कुछ डिटेल्स के साथ (एक लड़का है उसकी मम्मी को वेंटीलेटर चाहिए अर्जेंट है) वेंटिलेटर सोने की सिल्ली से कम कीमती नहीं इस समय।

हम कुछ लोग जो जाग रहे थे ढूंढनें में लग गये, लगभग तीन बजे मैंने छत्रपाल भाई से कहा मेरी आँखें बंद होनें लगीं है उसका जबाब आया शिवि खुद पॉजिटिव है और सो नहीं रही,लगी है तुझे नींद आने लगी और अस्पताल अस्पताल फ़ोन करने में व्यस्त हो गया।

तारिक भाई नें तो ढाई बजे अपनी बाइक उठाई और आस पास के अस्पताल छान मारे। 

उसकी मम्मी को वेंटिलेटर मिल जाये इसके लिए लोगों की मेहनत देख मेरी आँखों के कोने से आंसू निकल कान में जा बैठे।कुछ देर और लगे रहनें के बाद मेरी नींद कब लगी पता नहीं,सुबह लेट उठा और छटपटाते हुए जल्दी से फ़ोन उठाया व्हाटसएप्प खोला देखा तो उन्हें वेंटिलेटर मिल गया था।

बेड से उठा सीधे रसोई में गया और मम्मी को गले से लगा लिया।

#रोजकाकिस्सा #रोजकाकिस्सा3

अगली पोस्ट में उनके और अनुभव आपसे शेयर करूंगा.

[फोटो: मीडिया में कॉविड 19 रिस्पांस टीम और अभिषेक]