Saturday, November 18, 2017

India As I Know: The Story of Seventh India

छठवें इंडिया में हमने बसंती बाई की बात की थी. सातवें भारत के लिए मैं कुछ अन्य प्रत्यक्ष उदाहरण लेना चाहूँगा.

ये उदाहरण मेरे मित्र दीप्ति, अमन, महिमा और एक युवा सरपंच छवि राजावत के हैं.

दीप्ति मल्टीनेशनल कंपनी इनफ़ोसिस में इंजिनियर हैं और मैसूर में कार्यरत हैं. लेकिन वे इसके अलावा कुछ और भी हैं. वह Office Hours के बाद और वीकेंड्स में सरकारी स्कूल में पढ़ाने जाती हैं. जैसा कि आपको पूर्व-विदित है सरकारी स्कूल शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं और सरकारी स्कूलों की स्थिति ज्यादा अच्छी नहीं है.
उनका यह प्रयास बेहद सराहनीय कदम हैं और सरकारी स्कूलों में शिक्षकों की कमी से निपटने में सहायक है.
हालाँकि मैं यह दावा नहीं कर रहा कि उनके प्रयासों से पलक झपकते ही शिक्षा की तस्वीर उस स्कूल में बदल गई है किन्तु उन्होंने जो प्रयास किये ऐसे प्रयास सराहनीय हैं और सिर्फ वह ही नहीं अन्य युवा भी ऐसे प्रयास कर रहे हैं.

ये प्रयास स्वयं के स्तर पर हैं और वीकेंड पर मस्ती में, घूमने-फिरने में या आराम करने में समय व्यतीत करने की बजाये राष्ट्रहित में काम करने में मुफ्त में लगाया जा रहा स्वयं की ऊर्जा और वक़्त है.  

दूसरा उदहारण डॉ अमन का है. वे एक मानसिक चिकित्सा अधिकारी हैं और मेरे बेहतरीन मित्र हैं.

मानसिक चिकित्सा की स्थिति भारत में अत्यधिक ख़राब है और मध्यप्रदेश में मात्र दो मानसिक चिकित्सालय है- एक इंदौर में, दूसरा ग्वालियर में.

डॉ अमन ने ग्रामीण इलाकों में विभिन्न कैंप लगाकर ग्वालियर के ग्रामीण क्षेत्र में मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी सन्देश पहुँचाया है. न सिर्फ इंदौर के चिकित्सालय में चाइल्ड साइकाइट्री वार्ड शुरू करने में मदद की बल्कि ग्वालियर में स्कूलों में कैंप लगाकर जागरूकता बढ़ाई है. जहाँ चाइल्ड साइकोलोजिस्ट और साइकेट्रिस्ट की भारत में अत्यधिक कमी है वहां अमन अकेले ही जागरूकता फैलाने में जुटे हुए हैं.

यह एक बेहतरीन उदहारण है एक युवा का जॉब में रहते हुए लीग से हटकर बेहतरीन काम करने का.
तीसरा उदाहरण महिमा का है. ये पुणे में एक सॉफ्टवेयर प्रोफेसनल हैं. इन्होने कैंसर से पीड़ित व्यक्तियों के लिए विग (Wig) बनाने के लिए अपने बाल दान किये हैं.

यह आपको एक मामूली सा प्रयास लग सकता है किन्तु सही मायने में यह इतना भी मामूली नहीं है.ये उन प्रयासों में से एक है जो स्वयं के सस्तर पर स्वयं की प्रेरणा से किया गया है.

ये इन युवाओं की सामाजिक चेतना और समाज और राष्ट्र के लिए किये गये प्रयासों को प्रदर्शित करता है.

अंतिम उदाहरण बेहद ताकतवर उदाहरण है. यह छवि राजावत का उदाहरण है, जिनके बारे में शायद आपने भी सुना होगा. मायो गर्ल्स कॉलेज से स्कूली शिक्षा, दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और बाद में पुणे यूनिवर्सिटी से एमबीए करने वाली इस उच्च शिक्षित युवती ने कार्लसन ग्रुप, टाइम्स ऑफ़ इंडिया, एयरटेल इत्यादि में जॉब करने के बाद अपने पैतृक गाँव का विकास करने की ठानी. अपने पैतृक ग्राम सोदा (जयपुर, राजस्थान) में उन्होंने सरपंच का चुनाव लड़ा और चयनित हुईं.

कॉर्पोरेट जॉब और सिटी लाइफ जिनके पीछे आजकल युवा तेज़ी से भागते हैं, उन्हें छोड़ गाँव में आकर विकास करने का निर्णय आसान नहीं रहा होगा.

छवि ने रेन वाटर हार्वेस्टिंग, हर घर में शौचालय, पीने योग्य पानी की व्यवस्था जैसे प्रोजेक्ट बड़ी कुशलता और सफलता से संचालित किये.

छवि ने न सिर्फ ग्रामीण राजस्थान की छवि बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की बल्कि आज युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत का काम भी वे कर रही हैं.

ये चारों उदहारण बिलकुल अलग-अलग हैं, अलग-अलग फील्ड से हैं, अलग-अलग जगह के हैं किन्तु इनमें एक समानता है- चारों युवा हैं.

ये युवा स्व-निर्मित युवा हैं जो अपने अपने स्तर पर राष्ट्र निर्माण में संलग्न हैं. दीप्ति के पिता रिटायर्ड PSU कर्मचारी हैं, अमन के पिता एयरफोर्स में रहे हैं, महिमा बुंदेलखंड से आती है और उनके पिता व्यापार करते हैं एवं छवि के पिता जयपुर में कार्यरत हैं.

ये युवा न तो किसी अम्बानी, गाँधी या यादव परिवार से ताल्लुक रखते हैं कि सीधे किसी कंपनी के सीईओ बनकर या किसी प्रदेश का मुख्यमंत्री/उप-मुख्यमंत्री बनकर देश-निर्माण/राष्ट्र-विकास के दावे ठोकें; और न ही बृहद स्तर पर कोई आन्दोलन चला रहे हैं किन्तु स्वयं के स्तर पर जो बन पड़े वह करने का प्रयास कर रहे हैं.

यह सातवाँ इंडिया है. युवाओं का भारत.

65% से ज्यादा जनसँख्या भारत में 35 से कम उम्र के युवाओं की है और वे विभिन्न समस्याओं से गुजर रहे हैं-

1.       शिक्षा एवं उच्च शिक्षा सम्बन्धी समस्याएं. ( रवीश की यूनिवर्सिटी सीरीज इसके लिए आप NDTV पर देख सकते हैं.)
2.       स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याएं
3.       कौशल विकास और कौशल निर्माण का अभाव
4.       यौन जागरूकता और यौन शिक्षा का अभाव
5.       पथ प्रदर्शको और नव-उद्योग शुरू करने में फण्ड का अभाव

भारत इस जनसांख्यिकी लाभांश से आर्थिक उन्नति हासिल कर सकता है अगर इन युवाओं में सपने भरे, इनके लिए नई दिशा प्रदान करने में सक्षम हो.

भारतीय युवा इतने ऊर्जावान और सोचपरक हैं कि स्वयं के अलावा वंचितों के लिए भी प्रयास कर सकते हैं. दीप्ति, अमन, महिमा, छवि तो हमारे सामने उदहारण स्वरुप हैं ही.

शिक्षित युवाओं का यह देश एक अद्भुत भारत है जो अपनी सीमायें, अपने परिवेश से निकल न सिर्फ स्वयं का विकास बल्कि देश बदलने की चाह भी रखता है.

इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण हमने अन्ना आन्दोलन और निर्भया केस के बाद के आन्दोलनों में देखा था.
जहाँ लाखों की संख्या में युवा सड़कों पर आकर देश की सरकार से उसके कामों का हिसाब मांग रहे थे. सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े हुए थे. भारतीय पुलिस तंत्र से निर्भया केस जैसे कृत्यों के कारणों का हिसाब ले रहे थे.

स्वयं की सुरक्षा और देश का प्रश्न लिए जमा हुए ये युवक-युवतियां युवा-शक्ति के तो परिचायक थे ही साथ ही 1991 के बाद उपजे नव-मध्यमवर्ग के विकास और उसकी सामाजिक चेतना के विकास की भी कहानी कह रहे थे.


सातवाँ भारत इन्हीं ऊर्जावान, राष्ट्रहित में संलग्न, कुछ कर गुजरने का जज़्बा लिए हुए युवाओं का भारत है.

---
References:
 villagesoda.org
 Chhavi's interviews on youtube
 Anna Andolan and Nirbhaya case coverage by indianexpress.com
 2011 census data from censusindia.gov.in