Monday, February 19, 2018

एक अंडा फूट गया था

मैं बदहवास घर के चप्पे चप्पे में तुम्हें खोजता हूँ
लेकिन तुम नहीं मिलते
उन दीवारों में भी नहीं जिनसे टिककर मैंने तुम्हें चूमा था.
तुम्हरी यादें रोटियों की शक्ल ले लेती है
तुम्हारा जिस्म कविता हो जाता है
और तुम्हारी रूह गौरैया सी लगती है
बचपन में जिसके घोंसले से गिर
एक अंडा फूट गया था.
उस गलती की सजा शायद मैं अब भुगत रहा हूँ.