Sunday, December 5, 2021

India As I Know: The untold story of Udaypur MP

 



विदिशा जिले की गंजबासोदा तहसील के उदयपुर-घटेरा क्षेत्र का उत्खनन क्षेत्र तरकरीबन 200 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है जिसमें वैध-अवैध खदानें राजस्व एवं वन दोनों क्षेत्रों में हैं.

अख़बारों की मानें तो 6 करोड़ रूपए प्रति महीने का पत्थर इस क्षेत्र से निकलता है. अगर सच में ऐसा है तो यहाँ के लोगों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी होनी चाहिए थी. लेकिन धरातल पर स्थिति इसके उलट है. आस-पास के करीब 35 गांवों का सामाजिक आर्थिक सर्वेक्षण किया गया तो स्थिति ये निकल के आई कि लगभग हर गांव में 50 -60 % व्यक्ति गरीबी रेखा से नीचे (BPL ) या गरीबी रेखा के ठीक ऊपर है (Just Above the Poverty Line ).

30-40 गाँवो के लगभग 7000 परिवार वैध-अवैध पत्थर उत्खनन में प्रत्यक्ष रूप से संलग्न हैं. जिनमें से अधिकतर बस मजदूर बन कर रह गए हैं और असल फायदा अवैध उत्खनन में लिप्त खनन माफिया/मालिक पा रहे हैं, जो गंज बासोदा, विदिशा या भोपाल में बैठे हुए हैं और वहां से ऑपरेट करते हैं.

अवैध खदानों को समय समय पर बंद करने कि कोशिशें की जाती रही हैं. ऐसी ही कोशिशें 1990, 1996, 2014 -15 में की गईं थीं. कुछ सप्ताह ये अवैध खदानें बंद भी रहीं, किन्तु 'गरीब को रोजगार मिलता रहे' बोलकर राजनैतिक दबाव बनाया जाता रहा है, जिससे ये अबतक चालू हैं.

लेकिन सामाजिक-आर्थिक सर्वेक्षण करने पर क्षेत्र में भुखमरी, गरीबी और बीमारी कि ऐसी स्थिति सामने आती है कि ये रोजगार मिलने वाली बात भी पूर्णतः गलत साबित होती है. इसके निम्न कारण हैं, जो सर्वेक्षण में निकल के सामने आए हैं:-

1 . यहाँ उत्खनन संलग्न व्यक्तियों की जीवन प्रत्याशा (Life Expactancy ) मात्र 37 -38 वर्ष है. जबकि देश की: 69.42 वर्ष, और मध्य प्रदेश की: 67.9 वर्ष है.
कारण:- पत्थर उत्खनन में संलिप्तता की वजह से धूल के कारण होने वाली विभिन्न बीमारियां. जैसे सिलिकोसिस, कैंसर, स्किन डिसीसेस, गैस्ट्रो-इंटेस्टिनल बीमारियां, दमा, किडनी डिसीसेस, टीबी एवं अन्य स्थायी बीमारियां.
आपको क्षेत्र में 50 वर्ष से अधिक जीवित शायद ही कोई खदान मजदूर मिले.

2. क्षेत्र पीने के पानी की विकट समस्या से जूझ रहा है. आसपास के क्षेत्रों में पीने योग्य पानी कहीं नहीं है. यहाँ तक कि जब भिलायं वन चौकी में स्थित हैंडपंप के पानी का सैंपल दिया गया तो वह भी पीने योग्य नहीं था.

3. उत्खनन में हुए हादसों से लगभग एक दर्ज़न लोग मृत्यु या स्थायी अपंगता के प्रतिवर्ष शिकार होते हैं.

4. ऐसा नहीं है कि उत्खनन सिर्फ उत्खनन मजदूरों को ही प्रभावित कर रहा है. वैध-अवैध खदानें गांवों के इतने पास हैं कि ब्लास्टिंग मशीन के धमाकों से आसपास के गाँवो के घरों की दीवारें तक चटक जाती है.
नवजात एवं छोटे बच्चे इतनी तीव्र घातक ध्वनि सुनने को मजबूर हैं और कुछ लोग तो इसी वजह से पलायन भी कर चुके हैं.

5. यहाँ की गरीब ग्रामीण जनता सिर्फ उत्खनन से रोग की ही बस समस्या से प्रभावित नहीं है, बल्कि उत्खनन से निकली धूल इनके खेतों को भी प्रभावित कर रही है. धीमे धीमे खेतों में जमा होकर खेती को खा रही है.

6. यहां शिक्षा का स्तर भी बहुत ही ख़राब है. 200 वर्ग किलोमीटर में मात्र दो हायर सेकेंडरी स्कूल हैं- एक घटेरा में, दूसरा उदयपुर में. सारे स्कूलों में शिक्षकों कि अत्यधिक कमी है.
कुछ गाँवो में तो प्राथमिक या अधिकतम माध्यमिक तक स्कूल हैं.
कुछ गांवों में तो माध्यमिक तक शिक्षित व्यक्ति ही अधिकतम शिक्षित (Most Literate) व्यक्ति है.

7 . इस भयंकर बीमारियों से ग्रषित क्षेत्र में अधिकतर लोगों को प्राथमिक उपचार तक मुहैया नहीं है. ग्रामीणों के लिए बड़ा अस्पताल- प्राथमिक स्वस्थ्य केंद्र (PHC ) क्षेत्र में बस उदयपुर में स्थित है. जो चिकित्सकों की कमी से जूझ रहा है.
इसलिए झोला-छाप डॉक्टरों और नीम-हकीमों ने गांवों में अपनी दुकानें जमा रखी हैं.

उक्त बिंदुओं को देखा जाये तो यहाँ ना तो आर्थिक विकास है, न व्यक्ति सम्मानजनक जीवन जी पा रहा है, न ही उसे मूलभूत सुविधाएँ प्राप्त हो रही हैं. इसलिए गरीब को रोजगार मिलने वाली बात बेईमानी साबित होती है. बल्कि इसकी आड़ में अवैध उत्खनन को बढ़ावा देकर उत्खनन-माफियाओं को संरक्षण जरूर मिला हुआ है और यहाँ कि भोली-भाली, अशिक्षित जनता पीढ़ियों से गरीब कि गरीब ही बनी हुई है.

इन हालातों को देखकर इस क्षेत्र का वैध-अवैध उत्खनन तत्काल प्रभाव से पूर्णतः बंद करने कि जरुरत है, जिससे यहाँ के व्यक्ति अपनी जीवन प्रत्याशा पूर्ण कर पाएं और खदानों के आसपास के ग्रामीणजन भी सुरक्षित महसूस करें.
हालाँकि, ऐसा कर पाना मुश्किल जरूर लगता है किन्तु इतना मुश्किल है नहीं. क्योंकि:-

1 . ग्राम उदयपुर में ही दसवीं सदी के प्रसिद्ध नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर के अलावा उतना ही पुराना जैन मंदिर, पिसनहारी मंदिर, मातमयी मंदिर, रावनतौल जैसे ऐतिहासिक, पुरातत्व महत्त्व के पर्यटन स्थल मौजूद हैं जो उदयपुर को पर्यटन नगरी के रूप में विकसित करने के लिए काफी हैं.
साथ ही ऐतिहासिक महत्त्व के पठारी गांव, एरण, साँची, ग्यारसपुर, विदिशा, उदयगिरि गुफाएं 60 किमी के दायरे में ही हैं. अतः उदयपुर न केवल पर्यटन स्थल बल्कि विदिशा जिले के पर्यटन सर्किट के केंद्र बिंदु के रूप में भी स्थापित हो सकता है.
देशी-विदेशी पर्यटकों के आगमन से यहां कई प्रत्यक्ष व परोक्ष वैकल्पिक रोजगारों का जन्म होगा.

2. घटेरा के आसपास का वनक्षेत्र पूर्व से ही औषधियों के लिए प्रसिद्द रहा है. सामाजिक कार्यकर्ता प्रेरणा के अनुसार यहाँ औषधिये फसलों का प्रसार कर इनकी खेती कराई जा सकती है. यह उभरता हुआ क्षेत्र लोगों को रोजगार और उचित फायदा दोनों मुहैया करा सकता है.

3. स्किल इंडिया मिशन के अंतर्गत यहाँ के अर्ध शिक्षित युवाओं में कौशल विकास कर इनकी ज़िन्दगी सुधारी जा सकती
है.

4. स्टोन क्राफ्टिंग का ज्ञान एवं कौशल विकास कर आसपास के लोगों को बेहतर रोजगार और सम्मानजनक जीवन मुहैया कराया जा सकता है.

फिर भी यदि पत्थर उत्खनन यहाँ पर पूर्णतः बंद न किया जा सके तो तो कम से कम-

1 . वैध खदानों का पुनर्सीमांकन हो और गाँवो के आसपास कि खदानों को पूर्णतः बंद कराया जाये.

2 . गाँवो में ग्राम-समितियां बनाकर, लीज़ का पुनर्वितरण कर खदानें समीपस्त ग्राम समितियों को दी जाएँ. निकले पत्थर कि नीलामी प्रशासन द्वारा की जाये. जिससे 'जो खोदे- वो पाए' कि तर्ज़ पर यहाँ के लोगों को उचित धन मिलता रहे.

3. वनक्षेत्र की अवैध खदानें वन समितियों को दे दी जाएँ. निकले पत्थर की नीलामी विभाग द्वारा की जाये.

4. खदान में कम करने वाले मजदूरों को उचित उपकरण प्रदान किये जाएँ. उनका समय समय पर स्वास्थ्य परीक्षण हो और खदानों की भी मजदूरों कि स्थिति देखने के लिए समय समय पर जांच की जाए. जिससे मजदूरों के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव कम पड़े.

सिर्फ रोजगार नहीं बल्कि संविधान के 'राज्य की नीति के निर्देशक तत्व' के 42वें अनुच्छेद अनुसार 'काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं के उपबंध' के साथ रोजगार प्रदान करना बेहद जरूरी है.
इस क्षेत्र को पीने योग्य पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य, काम की मानवोचित दशाओं का प्रबंध कराये बिना रोजगार देने के नाम पर अवैध उत्खनन को चालू रखना/ रखने का दबाव बनाना अतार्किक है, अनुचित है और यहाँ की जनता के जीवन के साथ खिलबाड़ है.