Saturday, May 5, 2012

उम्र की टकसाल, एक उलझा ख्याल ....

एसा क्यूँ होता है, कुछ  लोग कहना नहीं चाहते, पर हकीक़त  उन्हें भी पता होती है, की सच उसे भी पता चल  गया होगा, क्यूंकि कोई तुम्हे अनकहे भी पढ़ सकता है, वो लफ्ज़ भी जो  कहे न गये हों, या वो भी जो शब्दों के बीच से निकल के आ रहे हों......

उम्र की टकसाल से निकला दिन,
हमेशा एक सा  नहीं होता,
कुछ होते हैं थोड़े से स्याह,
कुछ  थोड़े से खुश्क,
कुछ  थोड़े से नर्म .
कुछ  पाले  से सफ़ेद,
बर्फ  से शीतल.....
हर एक दिन  नया यहाँ.

आज  मैंने फिर एक  दिन   जी लिया
उम्र  की टकसाल  से निकला 
एक  दिन.......
तुम्हे पता तो है आज का दिन कैसा था.