Tuesday, July 18, 2023

शौर्य गाथा : Metal Cars

 


भाईसाहब खिलौनों की दुकान पर हैं, अपने फेवरेट खिलौने कार और अन्य गाड़ियां देख रहे हैं। भाईसाहब के हाथ हॉट व्हील्स की छोटी मेटल कार लगती हैं। "पापा ये ताहिये..." भाईसाहब जिद करने लगते हैं। पापा दिला देते हैं। 

घर आकर पापा पैकिंग खोलते हैं और सफेद, काली कारें फर्श पर दौड़ा देते हैं। पापा फिर उठाते हैं और फिर दौड़ा देते हैं, जैसे पापा खुद ही खेलने लगे हों। भाईसाहब पापा को टोकते हैं "पापा, मुझे भी... मुझे भी।" पापा मुस्कुराकर उन्हें कारें पकड़ा देते हैं और विचारों में खो जाते हैं। 

पापा के पास बचपन में ऐसी कारें कभी नहीं थीं। उनकी इच्छाएं जरूर थीं लेने की... लेकिन कभी मिली नहीं। पहली बार उन्होंने ऐसी कारें शहर में रहने वाले अपने कजिन के पास देखी थीं। जिद थी लेनी हैं... गांव में मिली नहीं... शहर से उनके पिताजी कभी लाए नहीं। 

'कितनी इच्छाएं थीं न इससे खेलने की... कितने लालायत थे हम...' पापा सोच रहे हैं और भाईसाहब के हाथ से कार ले फर्श पर फिर दौड़ा देते हैं... 

पीछे से भाईसाहब चिल्ला रहे हैं "पापा, मुझे भी... मुझे भी..."

#Shaurya_Gatha #शौर्य_गाथा @shaurya_gathaa

Thursday, July 13, 2023

Days of Innocence #p2



भाईसाहब बड़े हो रहे हैं और धीमे धीमे बातें भी ज्यादा करने लगे हैं और आपके वाक्यों में से Phrases (वाक्यांश) भी पकड़ने करने लगे हैं. धीमे-धीमे अक्ल भी आ रही है और जिस मासूमियत से आ रही है उसपर आपको इनपर बहुत सारा प्यार आता है साथ ही बहुत सारी हंसी. 

मम्मा को '...क्यों शौर्य' वाक्यों के अंत में बोलने की आदत है. जैसे बोलेगी "आम खा लिया जाए, क्यों शौर्य?" या "आपको बाहर जाने के लिए तैयार कर दें क्यों शौर्य?" 

हम फर्स्ट फ्लोर पे रहते हैं, एक दिन भाईसाहब को नीचे खेलने जाना है. भाईसाहब मम्मा का हाथ पकड़े हैं और कहते हैं "मम्मा, नीचे चलो... क्यों मम्मा... क्यों मम्मा!" 

ऐसे ही पापा बातों बातों में कह देते हैं '...और बताओ शौर्य' ऐसे ही इनके नानाजी बातों-बातों में कभी-कभी कहते हैं 'क्या हालचाल... सब ठीक शौर्य?' 

पापा ऑफिस के लिए जूते पहन रहे हैं, भाईसाहब सामने खड़े हैं, पापा कहते हैं "...और बताओ शौर्य." भाईसाहब पहले हाथ मटकाते है फिर नानाजी के जैसे हाथ पीठ के पीछे फोल्ड करते हैं और पापा को दुहराते हुए कहते हैं "औल बताओ पापा... ता हालचाल... छब ठीक है..." 

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Wednesday, July 12, 2023

शौर्य गाथा : Bhaisahab's First Day of School 🏫🎒🥰

 


भाईसाहब सोमवार को स्कूल जायेंगे ये सुनकर वे शनिवार से ही "पापा स्कूल चलो... स्कूल चलो..." की रट लगाए हैं, अलग ही लेवल का एक्साइटमेंट है। 

भाईसाहब का स्कूल का पहला दिन है. नानाजी विशेष रूप से आए हैं. वे इनको शिक्षा संस्कार दे रहे हैं, नानी टिफिन तैयार कर रही हैं. मम्मा ने बैग तैयार किया है. भाईसाहब मम्मा पापा की गोद में बैठकर स्कूल जाते हैं। क्लासरूम के अंदर जाते ही रोना शुरू कर देते हैं! सारा एक्साइटमेंट फुस्स्स...! 

स्कूल टाइम खत्म होने को और भाईसाहब बहुत खेल रहे हैं, बहुत खुश है, अब इन्होंने वापस घर आने से इंकार कर दिया है!! इन्हें समझा बुझा कर घर लाया जा रहा है और भाईसाहब अब स्कूल छोड़ने के नाम पे रोने लगे हैं. 

पापा को अपने बोर्डिंग स्कूल (Jawahar navodaya vidyalaya) के दिन याद आ जाते हैं, पापा छठवीं में जाकर वहां बहुत रोये थे... और बारहवीं वहां निकलते हुए भी! 

भाईसाहब का पहला दिन भी ऐसा ही था, जाते हुए रोना, और आते हुए स्कूल छोड़ने के गम में रोना!!

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Tuesday, July 4, 2023

शौर्य गाथा : Days of Innocence #part1

 


भाईसाहब बहुत तेज भागते हैं। वो भागते भागते एक रूम से दूसरे रूम में जा रहे थे कि उनका पैर का अंगूठा फाटक में टकरा गया। ऐसा मुझे बहुत बार हुआ है, शायद आपको भी हुआ हो, पैर की सबसे छोटी उंगली जबतब किसी भी चीज में टकराकर घायल हो जाती है और जो दर्द होता है न मां कसम! असहनीय होता है।


भाईसाहब के छोटे से पांव का छोटा सा अंगूठा! भाईसाहब बिलखने लगे हैं। पापा उन्हें झट से उठा लेते हैं और सहलाते हैं, लेकिन वे रोये जा रहे हैं। रोते रोते बोलते हैं "पापा... डॉक्टर... डॉक्टर..."


पापा: " हां बेटा आप डॉक्टर बन जाना और फिर खुद से चोट ठीक कर लेना।"

भाईसाहब रोते हुए: "पापा आप डॉक्टर बन जाओ ना... आप बन जाओ."

पापा मम्मा को हंसी आ जाती है। 


पापा: "बेटा, दादू हैं न, उनसे दवा पूछ लेते हैं।"

भाईसाहब: "नहीं, आप डॉक्टर बन जाओ।"


बेचारे पापा अब इस उम्र में नीट (NEET) की तैयारी करें! पापा आयोडेक्स लाते हैं, इनके नन्हे पांव पर कुछ देर तक मलते हैं... और भाईसाहब पापा की मेहनत देख कह देते हैं, "पापा तीक हो गया... तीक।"

पापा मुस्कुराते हैं और भाईसाहब साथ में मुस्कुरा देते हैं। बाप जैसे नन्हे बेटे की नज़र में डॉक्टर बन गया हो!!

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Saturday, July 1, 2023

जंगल की कहानियां : Rescue from a Well



घटना 7th जून की है. तरकरीबन शाम के 6:00 बज रहे हैं, दिन ढलने को है कि मेरे पास फोन आता है कि "एक चीतल कुएं में गिर गया है." मैं उस जगह से 35-40 मिनट दूरी पर हूं. मैं घटनास्थल के निकटतम चौकी स्टाफ को फोन करता हूं. स्टाफ बेचारा पांच-दस मिनट पहले ही दिन भर गस्ती करके वापस आया है. स्टाफ थकान एक किनारे रख 10 मिनट के अंदर ही आवश्यक सामान सहित घटनास्थल पर होता है.
कुआं 30-40 फीट गहरा है और सूखा है. पहले रस्सी डालकर नीचे जाने का प्लान किया जाता है, किंतु इससे चीतल घबराकर उछल कूद करना शुरू कर देगा और चोटिल हो सकता है. टीम के सदस्य कुएं के बंधान के पत्थरों के सहारे उतरना शुरू करते हैं. शायद आपको पता नहीं है किंतु जितना मानव जीवन का मूल्य किसी आम आदमी के लिए होता है, वनकर्मी के लिए उतना ही मूल्यवान वन्यप्राणी का जीवन होता है.
कुएं में उतरकर पांच मिनट तक चीतल से आंखें मिलाई जाती हैं, जिससे उसकी घबराहट कम हो और वनकर्मियों को वह खतरे के रूप में ना देखे. फिर धीमे से साथ ले जाल को फेंका जाता है और एक बार चीतल के जाल में अच्छे से फंस जाने के बाद धीमे धीमे ऊपर खींच लिया जाता है. पूरा रेस्क्यू ऑपरेशन मात्र 20 मिनट में कर लिया गया है!
जाल को सम्हाल कर निकालते हैं और चीतल के इस सबएडल्ट (sub-adult) बच्चे को परीक्षण कर छोड़ दिया जाता है.
चीतल कुलांचे भरते हुए तेजी से भाग जाता है. टीम के चेहरे खुशी और सुकून से खिल गए हैं.

#wildstories