Saturday, September 27, 2014

थोड़ा इंतज़ार कर, बस ज़रा सा....



कुछ और इंतज़ार कर
कुछ और अरब वर्ष बस.
तोड़ लाऊंगा सितारे
ज़रा उन्हें और पकने दे,
सुर्ख लाल होने दे.
शनि की वो बेहद खूबसूरत बलाएँ,
उफ़! चमक चमक जो
ब्रह्माण्ड का दिल जलाती हैं
तेरे कानों की बालियां बनाऊंगा.
और वो जुपिटर के चाँद
सुना है ढेरों हैं,
मोतियों सा तेरे गले में पहनाऊंगा.

तेरे लिए चाँद सितारे तोड़ लाऊंगा
ज़रा उन्हें और पकने दे
थोड़ा इंतज़ार कर
बस ज़रा सा....
बस कुछ अरब वर्ष और....

Thursday, September 25, 2014


उल्लास तुम ही, उद्गार तुम ही 
स्वयं का उद्धार तुम ही.
तीर खड़े क्या सागर खोजोगे
बैठ थके क्या पाओगे 
स्वयं वृक्ष काट यहीं
नौका खुद की गड लो
तूफानों को चेताओ 
खुद लहरों पे चढ़ लो. 

--*--

जिसे हार का डर नहीं 
न मौत का  भय हो 
स्वयं भरोसे जो भिड़े 
जीत उसी की तय हो. 

--*--

डर क्या डरायेगा 
तू डर को डरा भगा दे
मौत को कचहरी ले जा 
मौत की सज़ा सुना दे. 

Tuesday, September 16, 2014

यह रास्ता शहीद होने का है

     सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलने वाले को समझ लेना चाहिए कि यह रास्ता शहीद होने का रास्ता है। सत्य और अहिंसा के रास्ते पर जो कोई इफेक्टिव( परिणामात्मक), काम करेगा वह एक न एक दिन मारा जाएगा। सत्य और अहिंसा का रास्ता दुनिया नहीं सह सकती। बापू जी की जीवनी को देखिये, उन्हें जब दूसरा कोई मारने के लिए तैयार नहीं होता था तो वे अपनी आत्माहुति देने पर तुल जाते थे। अपने मारे जाने के मौके पैदा कर देते थे। अभी मानवता की इतनी प्रगति नहीं हुई है कि सत्य और अहिंसा के रास्ते पर मज़बूती से चलने वाला भी न मारा जाए। आपको अपनी आहुति देने के मौके पैदा करने होंगे। आपकी किस्मत अच्छी होगी तो नहीं मारे जाएंगे। लेकिन शायद मारे जाने पर आप की दैवीशक्ति सफल होगी। अगर कांग्रेस ने कुर्बानी कारास्ता छोड़ दिया तो उसका काम न चलेगा। कुर्बानी का रास्ता गांधी जी दिखा गए हैं। उस हुतात्मा के रास्ते पर हम को चलना है। अगर हम में दम है तो गांधीजी के नाम पर नहीं बिकेंगे। उनकी जो चीज़ हम को जंचेगी उसे लेंगे, जो नहीं जंचेगी उसे छोड़ देंगे। लेकिन सत्य और अहिंसा की राह हरगिज़ न छोड़ेंगे। यही बापू का सच्चा रास्ता है।

-आचार्य जे बी कृपलानी (14 मार्च 1948, यह हिस्सा रवीश कुमार ने आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट से प्रकाशित शहादत का रास्ता से लिया है। 011-23234190)

( रवीश कुमार के ब्लॉग 'कस्बा'  से साभार।)


Saturday, September 13, 2014

हक़



मैं तुम्हारे ज़िस्म में
अनाज उगा दूंगा,
धान बो दूंगा
फिर कहूँगा-
तुम ज़मीन हो
और इसपर मेरा हक़ है.

हक़ हमेशा का सबल का होता है
देखो धर्म में भी यही लिखा है.
सात अक्षौहिणी सेनाएं
जिनके तमाम सैनिक मारे गए,
तमाम विधवाएं बिलखती रहीं.
उनके बच्चे आज भी सड़क पर
भीख मांगते हैं,
कचरा बीनते हैं.
लेकिन हक़ पांडवों के हाथ आया.
यश, साम्राज्य, जीत, सबकुछ.
और देखो उनके साथ ईश्वर था,
कृष्ण चक्र और बांसुरी लिए साथ खड़े थे.
बांसुरी से विधवाएं बहला रहे थे
चक्र से आंदोलन-कारियों को डरा रहे थे.
देखो, मैंने कहा था न,
भगवान सबल के साथ होता है.

हाँ, तो तुम जब
मेरे हक़ में आ जाओगे
तो मैं तुम्हारे चारों तरफ
नालियां खोद दूंगा,
जिनमें तुम्हारा खून बहेगा, पानी नहीं.
जो तुम्हें ज्यादा उर्वरक बनाएगा
और मुझे ज्यादा फायदा पहुँचायेगा.

क्यूंकि मुझे बस फायदे से मतलब है
चाहे तुम मरो,
देश बिके
या खण्ड खण्ड हो.
तेलंगाना, झारखण्ड हो,
उन्तीस खण्ड या हज़ार खण्ड हो.
क्यूंकि मैं
सरकार हूँ, निकम्मा हूँ.
मेरे पांव के नीचे
भुखमरी से लाशें बिछ जाती हैं
और मैं दूरबीन ले
अन्न बांटने गरीब तलाशता रहता हूँ,
फायदा इसी दूरदर्शिता से आता है,
सरकारें ऐसे ही बनती हैं,
नेता महान ऐसे ही होते हैं,
और इतिहास के पन्नों में जगह पाते हैं.

हज़ार साल से
कवि चिल्ला रहा है.
पहले चंदबरदाई चिल्लाया,
राजा नहीं बदले
औरतें पाने बलि चढ़ गए,
पृथ्वीराज मारा गया.
फिर कबीर चिल्लाया
न हिन्दू बदले, न मुस्लमान,
तब भी कट रहे थे,
आज भी कट रहे हैं.
बाद मैं रैदास चिल्लाया-
'सब जन इक समाना'
लेकिन अछूत आज भी अछूत ही हैं!

चिल्लाते-चिल्लाते ये कवि भी मर जाएगा,
वो धान बो देंगे,
तुम्हें ज़मीन बना देंगे
तुम न बने तो
धर्म से बहका देंगे,
खरीद लेंगे.
क्यूंकि उनके पास बल है
और हक़ और ईश्वर सबल का है!

Friday, September 12, 2014

ग़दर



ये सरकारें
जिन्हे कहने-सुनने की
ज्यादा आदत नहीं है,
जिन्हें बस तोपों की भाषा आती है.
जिनके सामने
गांधी, नेल्सन और लूथर
चिल्लाते, दहाड़ते, सर पटकते रहे
और एक दिन मर गए.

इन सरकारों से
मैं कहता हूँ,
समाज जाग रहा है
सम्हल जा.
लोगों की आँखों में गुस्सा है,
हाथ में पत्थर
और दिल में मजबूत इरादे हैं.
सरकारो, तुम्हें बदलना होगा,
क्यूंकि मुल्क की गुलाम जनता
अपनी नियति अपने हाथ से
लिखने पे आमदा है,
आज मजबूत इरादा कर के आई है.

सरकार बिलबिलाती है,
थोड़ा शोर, फिर ठहर जाती है.
हा! हा! कर जोर से
अट्ठहास लगाती है
और मुझे विक्षिप्त कहती है.
मैं समझ नहीं पाता हूँ
क्यूंकि कवि सरकारें नहीं होते
सच होते हैं,
और सरकारें कवि नहीं होती
प्रपंच होती हैं.

मैं यानि कवि की कलम
किसी नाली में टूटी मिलती है
और मेरी लाश
किसी चौराहे पे लटकती.

वह समाज जो बदलने पे आमदा था,
उसका नेता फरार है,
शायद कभी लौट के न आ पाये.
समाज, जनता सब चुप हैं,
जैसे दही जमा हो होंटों पे
या सौ-सौ के कई नोटों को
मुंह में चिपका
उनकी बोलती बंद कर दी गयी हो.

हे! क्रान्तिकारियो,
ग़दर का चिराग जलाने से पहले
ज़रा बचना, सोचना
क्यूंकि ये सरकारें
तुम्हें भी खरीदना जानती हैं.

हे! युवको, युवतियों
कोई भी आंदोलन
समाज के उत्थान के लिए करना
अपने स्वार्थ के लिए नहीं,
अपने नैतिक पतन के लिए नहीं.

कवि तो जन्म से वैधव्य ओढ़ के आया है
उसके कहे का असर नहीं होता,
उसका मरना खबर नहीं होती.
पर तुम बचा लो,
अपनी नैतिकता, अपना कल,
अपनी क्रांति, अपना मुल्क.


Thursday, September 11, 2014

"Be Yourself" : Enrique Iglesias





Well I am, what I am, what I am, could be who you are?
Is your pain, when you smile 'cos you built a wall around your heart?
Do the thoughts in your head keep you up 'cos you feel alone?
(Thoughts in your head, thoughts in your head, thoughts in your head)
And are you strong enough to be yourself?
(Be yourself)


My papa used to say
You're just a loser
And you're never gonna have what it takes
Mama used to say
All that loud music you play ain't gonna get you nowhere


Na naa, you gotta be yourself
Na naa, you gotta be yourself


If you cried, would you hide?
Would you want all the world to know?
And if you believe in love, would you let it show?
Are you in, are you hip, are you cool?
Do you try too hard
Or are you strong enough to be yourself?
(Be yourself)
Wait


My papa used to say
You're just a loser
And you're never gonna have what it takes
Mama used to say
All that loud music you play ain't gonna get you nowhere


My papa used to say
You're just a loser
And you're never gonna have what it takes
Mama used to say
All that loud music you play ain't gonna get you nowhere


Na naa, you gotta be yourself
Na naa, you gotta be yourself
(Be yourself, be yourself)


If you can't, can't oh, be yourself what are you living for?
If you can't, can't oh, be yourself you're gonna lose it all
If you can't, can't oh, be yourself what are you living for?
You're gonna find someday, you gotta run away
You gotta run, run, run, run away


My papa used to say
You're just a loser
And you're never gonna have what it takes
Mama used to say
All that loud music you play ain't gonna get you nowhere


Na naa, you gotta be yourself
Na naa, you gotta be yourself
Na naa, you gotta be yourself
Na naa, you gotta be yourself

Wednesday, September 10, 2014

छल



परेशानी ये है
कि बिम्बिसार है महत्वपूर्ण
श्रेणिक बन जैनों में, बिम्बिसार बन बौद्धों में
और ब्राह्मणों में.
परेशानी ये है
कि अजातशत्रु ने पिता बिम्बिसार का
कर वध पाया साम्राज्य,
फिर भी पायेगा मोक्ष एक दिन
हर मतानुसार.
असल परेशानी ये है
धर्म बढ़ता है राजनीति के संरक्षण में
और राजनीति को भी चाहिए
धर्म की ओट.

परेशानी ये है
कि मुझे प्रेम है 'साहिरा' से
वो मुस्लिम, मैं हिन्दू!
परेशानी ये है
सत्तापक्ष ने कहा है इसे 'लव जिहाद'.
अल्पसंख्यक समूह भी
करना चाहता है हमारा क़त्ल.
परेशानी ये है
अब हमारा प्रेम हमारे घर वालों की बस
परेशानी नहीं रहा
न रहा हम तक सीमित.
परेशानी ये है
राजनीति ने धर्म की ओट ली
धर्म ने राजनीति का संरक्षण.

उस टीले पे, जहां
चारों तरफ बिखरी पड़ी हैं लाशें,
मैं कतार में खड़ा
हमारी बारी का इंतज़ार कर रहा हूँ
मेरे पीछे खड़ी है 'साहिरा'.
मेरे कंधे की ओट से
आँखों में डर, दया और बेचारगी ले
झांक रही है.
उसे शायद अब भी यकीन होगा कि
मेरा पौरुष उसे बचा लेगा.

परेशानी ये है कि
सामने धर्मांध खड़े हैं,
सिकंदर नहीं कि
किसी हारे पुरू के पौरुष पे
अभयदान मिले.

परेशानी ये है
कि धर्म डर से चलता है
धर्मांध डरपोक होते हैं
जो अपना डर आमजन तक फैलाते हैं.

मुझे मौत से पहले
गांधी का कहा याद आता है-
'स्वतंत्रता वे डरपोक लोग छीनते हैं,
जिन्हें स्वतंत्रता छिनने का डर रहता है.'

हमारी लाशें जुलूस बन जाती हैं,
गन्दगी, जिसे समाज कहते हैं
हमारा उदाहरण ले सबको डराती है.
हमारे वालिद भी मौत पे
आंसू नहीं बहाते.
किसी भी थाने में हमारी हत्या का केस
दर्ज़ नहीं!

परेशानी ये है
जब राजनीति को धर्म की ओट
और धर्म को राजनीति का संरक्षण मिलता है
समाज छला जाता है.


Saturday, September 6, 2014

मैं निर्णय हूँ अपना, समाज का नहीं




अब मैं निर्णय हूँ अपना, समाज का नहीं,
मैं अपना कल था, कल हूँ, आज भी.
कांटे, पत्थर, प्रलय, प्रकोप,
ज्वालायें, जेवर सब, ताज भी.
मैं जिम्मा हूँ सबका, सबकुछ मेरे जिम्मे,
मैं राजन अपना, स्वयं राज भी!

पथ-प्रवर्तित उर का काव्य यही-
कर्म तू , कर्ता हृदय का भाव्य भी
रस कर्म का निकले जो भी,
अंगीकृत कर श्राप भी, श्राद्ध भी!

मैं निर्णय हूँ अपना, समाज का नहीं,
मैं अपना कल था, कल हूँ, आज भी.


Friday, September 5, 2014

अकाल और उसके बाद - नागार्जुन



कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास
कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास
कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त
कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।

दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद
धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद
चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद
कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद।


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हरिजन गाथा - नागार्जुन


(1977 में बिहार में हुए हरिजन-नरसंहार के बाद, जिसमें 13 लोग ज़िंदा जलाये गए थे.)

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(एक)

ऐसा तो कभी नहीं हुआ था !
महसूस करने लगीं वे
एक अनोखी बेचैनी
एक अपूर्व आकुलता
उनकी गर्भकुक्षियों के अन्दर
बार-बार उठने लगी टीसें
लगाने लगे दौड़ उनके भ्रूण
अंदर ही अंदर
ऐसा तो कभी नहीं हुआ था

ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि
हरिजन-माताएँ अपने भ्रूणों के जनकों को
खो चुकी हों एक पैशाचिक दुष्कांड में
ऐसा तो कभी नहीं हुआ था...

ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि
एक नहीं, दो नहीं, तीन नहीं--
तेरह के तेरह अभागे--
अकिंचन मनुपुत्र
ज़िन्दा झोंक दिये गए हों
प्रचण्ड अग्नि की विकराल लपटों में
साधन सम्पन्न ऊँची जातियों वाले
सौ-सौ मनुपुत्रों द्वारा !
ऐसा तो कभी नहीं हुआ था...

ऐसा तो कभी नहीं हुआ था कि
महज दस मील दूर पड़ता हो थाना
और दारोगा जी तक बार-बार
ख़बरें पहुँचा दी गई हों संभावित दुर्घटनाओं की

और, निरन्तर कई दिनों तक
चलती रही हों तैयारियाँ सरेआम
(किरासिन के कनस्तर, मोटे-मोटे लक्क्ड़,
उपलों के ढेर, सूखी घास-फूस के पूले
जुटाए गए हों उल्लासपूर्वक)
और एक विराट चिताकुंड के लिए
खोदा गया हो गड्ढा हँस-हँस कर
और ऊँची जातियों वाली वो समूची आबादी
आ गई हो होली वाले 'सुपर मौज' मूड में
और, इस तरह ज़िन्दा झोंक दिए गए हों

तेरह के तेरह अभागे मनुपुत्र
सौ-सौ भाग्यवान मनुपुत्रों द्वारा
ऐसा तो कभी नहीं हुआ था...
ऐसा तो कभी नहीं हुआ था...

(दो)

चकित हुए दोनों वयस्क बुजुर्ग
ऐसा नवजातक
न तो देखा था, न सुना ही था आज तक !
पैदा हुआ है दस रोज़ पहले अपनी बिरादरी में
क्या करेगा भला आगे चलकर ?
रामजी के आसरे जी गया अगर
कौन सी माटी गोड़ेगा ?
कौन सा ढेला फोड़ेगा ?
मग्गह का यह बदनाम इलाका
जाने कैसा सलूक करेगा इस बालक से
पैदा हुआ बेचारा--
भूमिहीन बंधुआ मज़दूरों के घर में
जीवन गुजारेगा हैवान की तरह
भटकेगा जहाँ-तहाँ बनमानुस-जैसा
अधपेटा रहेगा अधनंगा डोलेगा
तोतला होगा कि साफ़-साफ़ बोलेगा
जाने क्या करेगा
बहादुर होगा कि बेमौत मरेगा...
फ़िक्र की तलैया में खाने लगे गोते
वयस्क बुजुर्ग दोनों, एक ही बिरादरी के हरिजन
सोचने लगे बार-बार...
कैसे तो अनोखे हैं अभागे के हाथ-पैर
राम जी ही करेंगे इसकी खैर
हम कैसे जानेंगे, हम ठहरे हैवान
देखो तो कैसा मुलुर-मुलुर देख रहा शैतान !
सोचते रहे दोनों बार-बार...

हाल ही में घटित हुआ था वो विराट दुष्कांड...
झोंक दिए गए थे तेरह निरपराध हरिजन
सुसज्जित चिता में...

यह पैशाचिक नरमेध
पैदा कर गया है दहशत जन-जन के मन में
इन बूढ़ों की तो नींद ही उड़ गई है तब से !
बाक़ी नहीं बचे हैं पलकों के निशान
दिखते हैं दृगों के कोर ही कोर
देती है जब-तब पहरा पपोटों पर
सील-मुहर सूखी कीचड़ की

उनमें से एक बोला दूसरे से
बच्चे की हथेलियों के निशान
दिखलायेंगे गुरुजी से
वो ज़रूर कुछ न कु़छ बतलायेंगे
इसकी किस्मत के बारे में

देखो तो ससुरे के कान हैं कैसे लम्बे
आँखें हैं छोटी पर कितनी तेज़ हैं
कैसी तेज़ रोशनी फूट रही है इन से !
सिर हिलाकर और स्वर खींच कर
बुद्धू ने कहा--
हां जी खदेरन, गुरु जी ही देखेंगे इसको
बताएँगे वही इस कलुए की किस्मत के बारे में
चलो, चलें, बुला लावें गुरु महाराज को...

पास खड़ी थी दस साला छोकरी
दद्दू के हाथों से ले लिया शिशु को
संभल कर चली गई झोंपड़ी के अन्दर

अगले नहीं, उससे अगले रोज़
पधारे गुरु महाराज
रैदासी कुटिया के अधेड़ संत गरीबदास
बकरी वाली गंगा-जमनी दाढ़ी थी
लटक रहा था गले से
अँगूठानुमा ज़रा-सा टुकड़ा तुलसी काठ का
कद था नाटा, सूरत थी साँवली
कपार पर, बाईं तरफ घोड़े के खुर का
निशान था
चेहरा था गोल-मटोल, आँखें थीं घुच्ची
बदन कठमस्त था...
ऐसे आप अधेड़ संत गरीबदास पधारे
चमर टोली में...

'अरे भगाओ इस बालक को
होगा यह भारी उत्पाती
जुलुम मिटाएँगे धरती से
इसके साथी और संघाती 

'यह उन सबका लीडर होगा
नाम छ्पेगा अख़बारों में
बड़े-बड़े मिलने आएँगे
लद-लद कर मोटर-कारों में

'खान खोदने वाले सौ-सौ
मज़दूरों के बीच पलेगा
युग की आँचों में फ़ौलादी
साँचे-सा यह वहीं ढलेगा

'इसे भेज दो झरिया-फरिया
माँ भी शिशु के साथ रहेगी
बतला देना, अपना असली
नाम-पता कुछ नहीं कहेगी

'आज भगाओ, अभी भगाओ
तुम लोगों को मोह न घेरे
होशियार, इस शिशु के पीछे
लगा रहे हैं गीदड़ फेरे

'बड़े-बड़े इन भूमिधरों को
यदि इसका कुछ पता चल गया
दीन-हीन छोटे लोगों को
समझो फिर दुर्भाग्य छ्ल गया

'जनबल-धनबल सभी जुटेगा
हथियारों की कमी न होगी
लेकिन अपने लेखे इसको
हर्ष न होगा, गमी न होगी

' सब के दुख में दुखी रहेगा
सबके सुख में सुख मानेगा
समझ-बूझ कर ही समता का 
असली मुद्दा पहचानेगा

' अरे देखना इसके डर से
थर-थर कांपेंगे हत्यारे
चोर-उचक्के- गुंडे-डाकू
सभी फिरेंगे मारे-मारे

'इसकी अपनी पार्टी होगी
इसका अपना ही दल होगा
अजी देखना, इसके लेखे
जंगल में ही मंगल होगा

'श्याम सलोना यह अछूत शिशु
हम सब का उद्धार करेगा
आज यह सम्पूर्ण क्रान्ति का
बेड़ा सचमुच पार करेगा

'हिंसा और अहिंसा दोनों
बहनें इसको प्यार करेंगी
इसके आगे आपस में वे
कभी नहीं तकरार करेंगी...'

इतना कहकर उस बाबा ने
दस-दस के छह नोट निकाले
बस, फिर उसके होंठों पर थे
अपनी उँगलियों के ताले

फिर तो उस बाबा की आँखें
बार-बार गीली हो आईं
साफ़ सिलेटी हृदय-गगन में
जाने कैसी सुधियाँ छाईं

नव शिशु का सिर सूंघ रहा था
विह्वल होकर बार-बार वो
सांस खींचता था रह-रह कर 
गुमसुम-सा था लगातार वो

पाँच महीने होने आए
हत्याकांड मचा था कैसा !
प्रबल वर्ग ने निम्न वर्ग पर
पहले नहीं किया था ऐसा !

देख रहा था नवजातक के
दाएँ कर की नरम हथेली
सोच रहा था-- इस गरीब ने
सूक्ष्म रूप में विपदा झेली

आड़ी-तिरछी रेखाओं में
हथियारों के ही निशान हैं
खुखरी है, बम है, असि भी है
गंडासा-भाला प्रधान हैं

दिल ने कहा-- दलित माँओं के
सब बच्चे अब बागी होंगे
अग्निपुत्र होंगे वे अन्तिम
विप्लव में सहभागी होंगे

दिल ने कहा--अरे यह बच्चा
सचमुच अवतारी वराह है
इसकी भावी लीलाओं की
सारी धरती चरागाह है

दिल ने कहा-- अरे हम तो बस
पिटते आए, रोते आए !
बकरी के खुर जितना पानी
उसमें सौ-सौ गोते खाए !

दिल ने कहा-- अरे यह बालक
निम्न वर्ग का नायक होगा
नई ऋचाओं का निर्माता
नए वेद का गायक होगा

होंगे इसके सौ सहयोद्धा
लाख-लाख जन अनुचर होंगे
होगा कर्म-वचन का पक्का
फ़ोटो इसके घर-घर होंगे

दिल ने कहा-- अरे इस शिशु को
दुनिया भर में कीर्ति मिलेगी
इस कलुए की तदबीरों से
शोषण की बुनियाद हिलेगी

दिल ने कहा-- अभी जो भी शिशु
इस बस्ती में पैदा होंगे
सब के सब सूरमा बनेंगे
सब के सब ही शैदा होंगे

दस दिन वाले श्याम सलोने
शिशु मुख की यह छ्टा निराली
दिल ने कहा--भला क्या देखें
नज़रें गीली पलकों वाली
थाम लिए विह्वल बाबा ने
अभिनव लघु मानव के मृदु पग
पाकर इनके परस जादुई
भूमि अकंटक होगी लगभग
बिजली की फुर्ती से बाबा
उठा वहां से, बाहर आया
वह था मानो पीछे-पीछे
आगे थी भास्वर शिशु-छाया

लौटा नहीं कुटी में बाबा
नदी किनारे निकल गया था
लेकिन इन दोनों को तो अब
लगता सब कुछ नया-नया था

(तीन)

'सुनते हो' बोला खदेरन
बुद्धू भाई देर नहीं करनी है इसमें
चलो, कहीं बच्चे को रख आवें...
बतला गए हैं अभी-अभी
गुरु महाराज,
बच्चे को माँ-सहित हटा देना है कहीं
फौरन बुद्धू भाई !'...
बुद्धू ने अपना माथा हिलाया
खदेरन की बात पर
एक नहीं, तीन बार !
बोला मगर एक शब्द नहीं
व्याप रही थी गम्भीरता चेहरे पर
था भी तो वही उम्र में बड़ा
(सत्तर से कम का तो भला क्या रहा होगा !)
'तो चलो !
उठो फौरन उठो !
शाम की गाड़ी से निकल चलेंगे
मालूम नहीं होगा किसी को...
लौटने में तीन-चार रोज़ तो लग ही जाएँगे...
'बुद्धू भाई तुम तो अपने घर जाओ
खाओ,पियो, आराम कर लो
रात में गाड़ी के अन्दर जागना ही तो पड़ेगा...
रास्ते के लिए थोड़ा चना-चबेना जुटा लेना
मैं इत्ते में करता हूं तैयार
समझा-बुझा कर
सुखिया और उसकी सास को...'

बुद्धू ने पूछा, धरती टेक कर
उठते-उठते--
'झरिया,गिरिडिह, बोकारो
कहाँ रखोगे छोकरे को ?
वहीं न ? जहाँ अपनी बिरादरी के
कुली-मज़ूर होंगे सौ-पचास ?
चार-छै महीने बाद ही
कोई काम पकड़ लेगी सुखिया भी...'
और, फिर अपने आप से
धीमी आवाज़ में कहने लगा बुद्धू
छोकरे की बदनसीबी तो देखो
माँ के पेट में था तभी इसका बाप भी
झोंक दिया गया उसी आग में...
बेचारी सुखिया जैसे-तैसे पाल ही लेगी इसको
मैं तो इसे साल-साल देख आया करूँगा
जब तक है चलने-फिरने की ताकत चोले में...
तो क्या आगे भी इस कलु॒ए के लिए
भेजते रहेंगे खर्ची गुरु महाराज ?...

बढ़ आया बुद्धू अपने छ्प्पर की तरफ़
नाचते रहे लेकिन माथे के अन्दर
गुरु महाराज के मुंह से निकले हुए
हथियारों के नाम और आकार-प्रकार
खुखरी, भाला, गंडासा, बम तलवार...
तलवार, बम, गंडासा, भाला, खुखरी...


-नागार्जुन बाबा (१९७७)