Thursday, November 24, 2011

तुम्हारे लिए!!

इश्क 
इश्क क्या है?
कुछ हंसते पल,
कुछ मिलकर बांटे गम
...और साथ रहने के सारे वादे!
फिर उम्र भर की दूरियां!
इससे ज्यादा कुछ और हो तो
मुझे समझा दो तुम.


दूरियां!
दूरियां
दो लोगों के दूर रहना नहीं,
पास रह पसरी ख़ामोशी है!
देखो, मीलों दूर रह भी
कितने पास हैं हम!
.....और मैं अपने से
कितना हूँ दूर!


ख़ामोशी...
ख़ामोशी से
मेरे जीवन के कुछ धागे
तेरी ज़िन्दगी से उलझ गये!
फिर मिल हमने कई सारे 
रंग भर लिए!
क्या हर रंग पर
कालिख पोतना ज़रूरी है अब!


अब  
अब तक 
हम का मतलब 'हम' था,
अब 'हम' को मत बांटों.
मैं 'हम' से 'मैं'
नहीं होना चाहता!
कच्ची रस्सी के 
कुछ पक्के धागे जुड़े थे,
उन्हें खोना नहीं चाहता!


तुम्हारे लिए!!
तुम कहते थे ना
चाहकर भी नही लिखना चाहता.
देखो, लिख दी
बिन चाहे ही...
ये छोटी सी कविता,
तुम्हारे लिए!!

याद कहानी सी


अब भी याद आता है वो आँगन
वो अमरुद का पेड़
और वो चंद दीवारों से तृप्त 
छोटा सा घर.....
जैसे बचपन में ही
वहीं कहीं समा गया हूँ!
जैसे दिल वहीं कहीं
अटका के आ गया हूँ.

अब भी उलझी-सुलझी नींद में
तुम्हारी थपकी सुनता हूँ,
ख्वावों की कश्ती भी
अक्स पर तुमपर रूकती है.
जब भी खुद को चुनता हूँ,
हर रंग तुम्हारे चुनता हूँ.
तुम्हारे वो भारी हाथ
और तुम्हारा वो प्यार!
जैसे दिल वहीं कहीं 
अटका के आ गया हूँ.

पक्की कठोर सड़कों से
मिट्टी ज्यादा भली क्यूँ?
क्यूँ भीड़ में मैं
अपनापन ढूंढूं?
क्यूँ आँख तले सपने में
अपना गाँव बुनता हूँ!
क्यूँ यादों में बिखरा बिखरा
मिटकर रोज ही बनता हूँ!

दूर भले हो लेकिन
तुम्हारे लफ्ज़ मन से
चिपके हैं येसे-
दोराहे पर समझाते
झूठे सच से तो अच्छा हूँ मैं!

कभी पार पा गया हूँ,
कभी डूब कर तुममे ही
समा गया हूँ!
जैसे दिल वहीं कहीं
अटका के आ गया हूँ.


Friday, November 18, 2011

The Busy-Man's Show

ONE GAZAL


एक गुलाम देश का सिरमोर बादशाह थोडा मजबूर हो सकता है, थोड़ा अदूरदर्शी हो सकता है, लेकिन जिसकी बजुयों में बाबर का खून दोड़ता हो वो बुजदिल नहीं हो सकता.....और जो अकबर का वंशज हो वो फनकार न हो एसा नहीं हो सकता......फिलहाल इक उजड़ी सल्तनत के उजड़े बादशाह अबू ज़फर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह ज़फर उर्फ़ Bahadur Shah Zafar की ये ग़ज़ल.


लगता नहीं है जी मेरा उजड़े दयार में
किसकी बनी है आलम-ए-नापायेदार में

बुलबुल को पासबाँ से न सैयाद से गिला
क़िस्मत में क़ैद लिखी थी फ़स्ल-ए-बहार में

इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में

इक शाख़-ए-गुल पे बैठ के बुलबुल है शादमाँ
काँटे बिछा दिये हैं दिल-ए-लालाज़ार में

उम्र-ए-दराज़ माँगके लाए थे चार दिन
दो आरज़ू में कट गए, दो इन्तज़ार में

दिन ज़िन्दगी के ख़त्म हुए शाम हो गई
फैला के पाँव सोएँगे कुंज-ए-मज़ार में

कितना है बदनसीब “ज़फ़र″ दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में.



ज़फर को जब भी पढता हूँ, ये बरवस ही मुंह पे आ जाता है.


दो पल हसरती हो सोचता हूँ मैं,
की छू लूं तुझे भी वक़्त रोककर....
पर हसरतें रंगीन नकाब पहन,
बस हसरती ही रह गईं...
वक़्त के तकाज़े में आरजू बह गई.
ख्वाबों में घुली तेरी खुशबू रह गई.


ONE QOUTE


Life is like riding a bicycle. To keep your balance you must keep moving.


---Albert Einstein 



ONE PIC

my last day in college....see, i have camera in my hand.....
 how much cheerful we were..... :)
missing you all.....



SOMETHING VERY CREATIVE


i know, if you are techno-savvy or from technical field, you definitely watched is hundred times....
but still watch once again, coz in aug-2012 (ya, before dooms day, so keep smiling) you can buy such products......:)






and at last.......
I am really sorry that im not frequent on my page but ads you know i am busy with The gold Class Training :) so, ts not by choice.
but thanks for your support and hits on TCM.


love you all....
have a good time. take care.
.........and be purple^. :) :)


^ Here purple represents for middle-way 
not a support for LGBT. :P                                                                                                          
                                                                                                                ~V!Vs