दर्द की बारिश सही मद्धम , ज़रा आहिस्ता चल ।
दिल की मिट्टी है अभी तक नम, जरा आहिस्ता चल।
बोल लेने दे सबको ख़िलाफ़ तेरे ,
अभी देख दुबिया की रीत, जरा आहिस्ता चल।
कॉम है तेरा मज़हब, कॉम ही दस्तूर है,
मत मिटा इसे, सम्हल, जरा आहिस्ता चल।
रुख देख कर दरिया का, बदल गए है सभी,
तू मत देख दुनिया, जरा आहिस्ता चल।
इश्क भी मासूम है, तू भी मासूम अभी ,
वक़्त का कर तकाजा , जरा आहिस्ता चल।
अज्म हो फौलाद का तो, फौकियत आती ही है,
कौन रोकेगा तुझे, अब मत आहिस्ता चल।
प्यार करना बहुत ही सहज है, जैसे कि ज़ुल्म को झेलते हुए ख़ुद को लड़ाई के लिए तैयार करना. -पाश
Thursday, September 3, 2009
tum par
क्या लिखूं मैं तुमपर,
सांझ का इकरार हो तुम-
तुम में ही.
क्या लिखूं मैं तुमपर,
मेरे नीड़ के निर्माण का सपना हो तुम,
उसकी हर ईंट में छुपा प्यार,
और उसका दीपक भी......
सब तुम्ही तो हो.
मेरी बिन तारों की,
अंधियाती जिंदगी का चाँद,
मुरझाती रूह को जल
और टूटते सब्र को बाँध.
सब तुम्ही तो हो.
उंगलियों के बीच की जगह
हमेशा तुम्हारी उँगलियों से भरना चाहता हूँ में,
फिर क्या लिखू तुम्हारे बारे में,
जब सब ही तो तुम हो.......और
में ही तुम हो.
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