Saturday, September 13, 2014

हक़



मैं तुम्हारे ज़िस्म में
अनाज उगा दूंगा,
धान बो दूंगा
फिर कहूँगा-
तुम ज़मीन हो
और इसपर मेरा हक़ है.

हक़ हमेशा का सबल का होता है
देखो धर्म में भी यही लिखा है.
सात अक्षौहिणी सेनाएं
जिनके तमाम सैनिक मारे गए,
तमाम विधवाएं बिलखती रहीं.
उनके बच्चे आज भी सड़क पर
भीख मांगते हैं,
कचरा बीनते हैं.
लेकिन हक़ पांडवों के हाथ आया.
यश, साम्राज्य, जीत, सबकुछ.
और देखो उनके साथ ईश्वर था,
कृष्ण चक्र और बांसुरी लिए साथ खड़े थे.
बांसुरी से विधवाएं बहला रहे थे
चक्र से आंदोलन-कारियों को डरा रहे थे.
देखो, मैंने कहा था न,
भगवान सबल के साथ होता है.

हाँ, तो तुम जब
मेरे हक़ में आ जाओगे
तो मैं तुम्हारे चारों तरफ
नालियां खोद दूंगा,
जिनमें तुम्हारा खून बहेगा, पानी नहीं.
जो तुम्हें ज्यादा उर्वरक बनाएगा
और मुझे ज्यादा फायदा पहुँचायेगा.

क्यूंकि मुझे बस फायदे से मतलब है
चाहे तुम मरो,
देश बिके
या खण्ड खण्ड हो.
तेलंगाना, झारखण्ड हो,
उन्तीस खण्ड या हज़ार खण्ड हो.
क्यूंकि मैं
सरकार हूँ, निकम्मा हूँ.
मेरे पांव के नीचे
भुखमरी से लाशें बिछ जाती हैं
और मैं दूरबीन ले
अन्न बांटने गरीब तलाशता रहता हूँ,
फायदा इसी दूरदर्शिता से आता है,
सरकारें ऐसे ही बनती हैं,
नेता महान ऐसे ही होते हैं,
और इतिहास के पन्नों में जगह पाते हैं.

हज़ार साल से
कवि चिल्ला रहा है.
पहले चंदबरदाई चिल्लाया,
राजा नहीं बदले
औरतें पाने बलि चढ़ गए,
पृथ्वीराज मारा गया.
फिर कबीर चिल्लाया
न हिन्दू बदले, न मुस्लमान,
तब भी कट रहे थे,
आज भी कट रहे हैं.
बाद मैं रैदास चिल्लाया-
'सब जन इक समाना'
लेकिन अछूत आज भी अछूत ही हैं!

चिल्लाते-चिल्लाते ये कवि भी मर जाएगा,
वो धान बो देंगे,
तुम्हें ज़मीन बना देंगे
तुम न बने तो
धर्म से बहका देंगे,
खरीद लेंगे.
क्यूंकि उनके पास बल है
और हक़ और ईश्वर सबल का है!