अजीब लगता है जब एक चलताऊ कविता पे तालियां पड़ती है तो.... शायद लोगों को अर्थपूर्ण कविताओं से ज्यादा संता-बनता जोक्स कहना-सुनना ज्यादा अच्छे लगते हैं. लेकिन गलती इनकी भी नहीं, क्यूंकि आधा देश भरपेट रोटी कि जद्दोजहद में डूबा तो आधा देश को रोटी कि कीमत क्षोभ और तनाव से चुकानी पड़ती है. लोग घर आ दुनियादारी के बारे में सोचना नहीं, बस दो पल मुस्कुराना चाहते है. फ़िलहाल, एक चलताऊ कविता-
मेरी आँखों को उसकी आँखों से
मिलने के अरमान बहुत है, मगर...
कमबख्त कभी मेरा चश्मा बीच आ जाता है,
कभी उसका चश्मा बीच आ जाता है.
हमने सोचा,
ऑंखें चार करते हैं,
अपने-अपने चश्मे उतार देते हैं.
लेकिन फिर,
न उसे कुछ नज़र आता है,
न मुझे कुछ नज़र आता है. ~V!Vs